भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha  ]



2010भाग-3 म0प्र0लाॅ0ज0 151 म0प्र0 आकांक्षा बनाम वीरेन्द्र, एं 2000 भाग-1 म0प्र0 लाॅ0ज0 86ः2000 भाग-1 एम0पी0जे0आर0 148 मधु उर्फ संजीव कुमार बनाम श्रीमती ललिता बाई  में अभिनिर्धारित किया था कि अंतरिम भरण पोषण का आदेश सारवान तौर पर दोनो पक्षों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है । यह स्वीकृत स्थिति है कि यदि पति इसका पालन नहीं करता है तो उसकी सम्पत्ति को कुर्क किया जा सकता है अथवा उसको जेल भेजा जा सकता है । अतः अंतरिम भरण पोषण के विरूद्ध पुनरीक्षण प्रचलनशील है ।

दण्ड अपराध के समानुपातिक

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. आरोपी को दिया गया दण्ड उसके अपराध के समानुपातिक होना चाहिए:-
        माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा बार-बार यह निर्दिष्ट किया गया है कि अधिरोपित दण्ड का अपराध की गम्भीरता के साथ समानुपातिक होना आवष्यक है, ताकि उसका यथोचित प्रभाव पड़े एवं समाज में भी सुरक्षा की भावना उत्पन्न हो,
 संदर्भ:- मध्यप्रदेष राज्य विरूद्ध संतोष कुमार, 2006 (6) एस.एस.सी.-1.

’अधिनियम’ की धारा-163 (क)

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      ’अधिनियम’ की धारा-163 (क)के अंतर्गत प्रतिकर संबंधित उत्तरदायित्व निर्धारण के लिए यह स्थापित किया जाना पर्याप्त है कि संबंधित वाहन से आवेदक को शारीरिक क्षति कारित हुई अथवा किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई । ऐसे मामलों में यह प्रमाणित किया जाना आवश्यक नहीं है कि दुर्घटना किसी की लापरवाही के कारण हुई। संदर्भ-
1-    राजस्थन स्टेट रोडवेज कार्पोशन वि. पीडित महिला अनीता आदि 2001 (3) एम.पी.एल.जे. 147.

 
 ऐसे मामले में प्रतिकर निर्धारण के लिए अधिनियम के अंतग्रत दी गई अनुसूची का उपयोग किया जाना चाहिए ।


 2-     कैलाश विरूद्ध ओमप्रकाश यादव- 2003 (3) एम.पी.एच.टी.-58.

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umesh gupta