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’‘ अभियुक्त के आचरण की सुसंगतता

’‘ अभियुक्त के आचरण की सुसंगतता के संदर्भ में साक्ष्य अधिनियम की धारा-8के विस्तार को समझाईए । ‘‘

        भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा-8 के अनुसार कोई भी तथ्य, जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसगंत तथ्य का हेतु या तैयारी का या पश्चात का दर्शित या गठित करता है , सुसंगत है । 

        किसी वाद या कार्यवाही के किसी पक्षकार या किसी पक्षकार के अभिकर्ता का ऐसे वाद  या कार्यवाही के बारे में या उसमें विवाद्यक तथ्य या उससे सुसगंत किसी तथ्य के बारे में आचरण और किसी ऐसेे व्यक्ति का आचरण जिसके विरूद्ध कोई अपराध किसी कार्यवाही का विषय है ,सुसंगत है । यदि ऐसा आचरण किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य को प्रभावित करता  है या उससे प्रभावित होता है, चाहे वह उससे पूर्व का हो  या पश्चात का।

    स्पष्टीकरण 1- इस धारा में ’’आचरण’’ शब्द के अतंर्गत कथन नहीं आते, जब तक
कि वे कथन उन कथनो से भिन्न कार्यो के साथ-साथ और उन्हें स्पष्ट करने वाले न हो ,किन्तु इस अधिनियम के किसी अन्य धारा के अधीन उन कथनो की सुसगंति पर इस स्पष्टीकरण का प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

    स्पष्टीकरण 2- जब किसी व्यक्ति का आचरण सुसंगत है, तब उसस,े या उसकी उपस्थिति और श्रवणगोचरता में किया गया कोई भी कथन, जो उस आचरण पर प्रभाव डालता है, सुसंगत है ।

         किसी व्यक्ति के ‘आचरण’ से तात्पर्य उसके बाहरी व्यवहार से है जो कि चरित्र से बिल्कुल भिन्न है । किसी अभियुक्त का अपराध के पूर्व अथवा पश्चात् कोई आचरण प्रकरण में परिस्थिति जन्य साक्ष्य होने के नाते सुसंगत हो सकता है क्योंकि इससे न्यायालय किसी तथ्य के संबंध में एक अवधारणा सृजित कर सकता है और किसी निष्कर्ष पर पहॅुच सकता है । अतः ऐसे प्रकरणों में जहाॅ कि साक्ष्य स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष न हो वहाॅ धारा 8 के संदर्भ में अभियुक्त का आचरण अतिमहत्वपूर्ण हो जाता है । 

        धारा-8 के अंतर्गत आचरण सुसगंत हैः-
         किसी  कार्यवाही के  
    1-     किसी पक्षकार का ,
    2-    उसके अभिकर्ता का
    3-    उसके अभियुक्त का,
         आचरण ऐसी कार्यवाही के संबंध में विवाद्यक तथ्य या सुसंगत है ।
    1-    आचरण जो पूर्वतन है,           
    2-    आचरण जो पश्चातवर्ती है,   
 
        किसी ऐसे व्यक्ति का आचरण जिसके विरूद्ध कोई अपराध  किसी कार्यवाही की विषय वस्तु है । जब आचरण किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य पर प्रभाव  डालता हो, या वह उससे प्रभावित होता हो ।इस धारा के अंतर्गत आचरण सुसगंत तथ्यों और आचरण के विवाद्यक व सुसगंत तथ्यों के संबंध में या उनसे प्रभावित होना चाहिये ।

        आचरण के अंतर्गत कथन और कार्य दोनो आते हैं ,लेकिन विशेष परिस्थितियों में कथन तब तक नहीं आते है, जब तक वे किसी कार्य का स्पष्टीकरण न करे और कार्य तथा कथन दोनो साथ हो । केवल कथन मात्र आचरण नहीं है । 

        आचरण चाहे वे तथ्य के पहले का हो या बाद का हो दोनो दशाओं में सुसंगत है । उसे साबित किया जा सकता है । लेकिन उसके लिये आवश्यक है तथ्य से आचरण प्रभावित हुआ है या आचरण से तथ्य प्रभावित  हुआ है । 

        प्रथम सूचना रिपोर्ट इस धारा के अंतर्गत आचरण के रूप में ग्राहय है ।  अपराध किये जाने के विषयक में  दी गई । प्रथम इत्तला रिपोर्ट से यह मालूम होता है कि विचाराधीन मामले की जांच जिस विषय वस्तु के आधार पर प्रारंभ की गई और घटना के  संबंध में उस रिपोर्ट  में उस समय क्या कहा गया इसलिये केवल घटना के पक्षकार के आचरण साक्ष्य में ग्राहय है ।

        जहाॅ अपनी ही पत्नी की हत्या करने के बाद अभियुक्त ने पुलिस को यह सूचना दी कि उसने आत्महत्या कर ली थी और उसने ऐसा कथन किया जो उसके पक्ष में था इस प्रकार ऐसी प्रथम सूचना रिपोर्ट धारा 8 के अधीन सुसंगत है क्योंकि इससे दोषी व्यक्ति का आचरण स्पष्ट होता है । 

        आचरण के संबंध में ग्राहयता कि आरोपी का आचरण केवल उसके दोषी करने के लिये सुसगंत तथ्य है । अपराध में फसने वाले आचरण संबंधी उसी बात को माना जा सकता है जिसके बारे में उसके द्वारा कोई युक्तियुक्त स्पष्टीकरण न दिया गया हो कि अभियुक्त दोषी है ।     

        धारा-8 के स्पष्टीकरण-एक के अनुसार  कहे गये कथन किसी दशा में सुसंगत होगें तब वे आचरण को करते समय कहे गये या ऐसे आचरण की व्याख्या करते हैं । यदि कोई   घायल व्यक्ति हमलावर का नाम बताते हैं । घटना विवरण देते भाग रहा था । उसके कथन और कार्य दोनो आचरण के रूप में धारा-8 के स्पष्टीकरण ’एक के अनुसार सुसगंत  है  ।

        इसी प्रकार स्पष्टीकरण-दो के अनुसार पक्षकार को या उसकी उपस्थिति में उसे सुनाया, कहे गये कथन जो उसके आचरण को प्रभावित करते है सुसंगत है । यदि किसी व्यक्ति पर आरोप लगाया जाता है, जिसका वह असत्य होने का विरोध कर सकता है, किन्तु वह आरोप सुनकर मौन रहता है अथवा भाग जाता है या झूंठा कथत करता है । ऐसा आचरण उसके कथन के साथ सुसगंत है ।

         संकेतो को मौखिक साक्ष्य मानते हुये ग्राहय किया जा सकता है, किन्तु उन्हें आचरण की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है । यदि किसी व्यक्ति के साथ कोई अपराध किया जाता है और घटना के शीघ्र पश्चात वह परिवाद करता है तो परिवाद करने का कार्य आचरण के रूप में सुसंगत है किन्तु यदि व्यक्ति परिवाद नही करता मात्र कथन करता है तो धारा-8 के अधीन कथन संुसगत नहीं है क्योकि वह आचरण का स्पष्टीकरण नहीं करता है।


        धारा 8 के अंतर्गत  पक्षकार , उसके अभिकर्ता ऐसा व्यक्ति जिसके विरूद्ध कोई अपराध की किसी कार्यवाही के अनुसरण में उनके आचरण धारा 8 के सुसगंत तथ्य है यदि एक व्यक्ति आरोपी है और अपराध के तुरन्त पश्चात वह घर से फरार हो जाता है तो धारा 8 के अधीन उसका फरार हो जाना आचरण के विपरीत सुसगंत तथ्य है । 


        इस संबंध में मान्नीय उच्चतम न्यायालय द्वारा ए.आई.आर. 1971 सुप्रीम कोर्ट 1871 थिम्मा विरूद्ध स्टेट आफ मेसूर में निर्धारित किया है कि


 ज्ीवनही जीम बवदकनबज व िंबबनेमक पद ंइेबवदकपदह पउउमकपंजमसल ंजिमत जीम वबबनततमदबम व िजीम वििमदबम पे तमसमअंदज मअपकमदबमए ंे पदकपबंजपदह जव ेवउम मगजमदज ीपे हनपसजल उपदकए पज पे दवज बवदबसनेपअम व िजींज ंिबज इमबंनेम मअमद पददवबमदज चमतेवद ूीमद ेनेचमबजमक उंल इम जमउचजमक जव ेनबी बवदकनमज जव ंअवपक ंततमेज
        ण्‘‘फरार’’ (ंइेबवदकपदह) शब्द का अर्थ अपने को छिपाना है जिसे स्पष्ट करते हुए, माननीय उच्चतम न्यायालय ने ए.आई.आर. 1976 सुप्रीम कोर्ट 76 कार्तिकेय विरूद्ध स्टेट आफ यू.पी. में अभिनिर्धारित किया है कि ज्व इम ंद ंइेबवदकमतए पद जीम मलम व िसंूए पज पे दवज दमबमेेंतल जींज ं चमतेवद ेीवनसक ींअम तनद ंूंल तिवउ ीपे ीवउमए पज पे ेनििपबपमदज प िीम ीपकमे ीपउेमस िजव मअंकम जीम चतवबमेे व िसंूए मअमद प िजीम ीपकपदह चसंबम इम ीपे वूद ीवउमण्    



        इस संबंध में मान्नीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा ए.आई.आर. 1972 सुप्रीम कोर्ट 110 रेहमान विरूद्ध स्टेट आफ यू.पी में अभिनिर्धारित किया है कि ैनइेमुनमदज बवदकनबज व िंबबनेमक ।इेबवदकपदह इल पजेमस िपे दवज बवदबसनेपअम मपजीमत व िहनपसज वत व िहनपसजल बवदेबपमदबमण्इस प्रकार केवल ऐसे आचरण कि साक्ष्य अर्थात जो उसकी निर्दोषिता की  उपधारणा समाप्त कर दे ।


        परंतु घटना के उपरांत अभियुक्त की अनुपस्थिति यदि स्पष्ट कर दी जाए तो उसका यह आचरण उसके अभियोजन के विरूद्ध ढाल के रूप में प्रयुक्त की जा सकती है । भारतीय साक्ष्यअधिनियम की धारा 9 के दृष्टांत (ग) के अनुसार
        क एक अपराध का अभियुक्त है ।


        यह तथ्य कि उस अपराध के किये जाने के तुरंत पश्चात क अपने घर से फरार हो गया, धारा-8 के अधीन विवावद्यक तथ्यों के पश्चातवर्ती और उनसे प्रभावित आचरण के रूप में सुसंगत है ।


        यह तथ्य कि उस समय, जब वह घर से चला था, उसका उस स्थान में, जहा वह गया था, अचानक और अर्जेन्ट कार्य था, उसके अचानक घर से चले जाने के तथ्य के स्पष्टी करण की प्रवृत्ति रखने के कारण सुसंगत है । जिस काम के लिए वह चला उसका ब्यौरा सुसंगत नहेीं है सिवाय इसके कि जहां तक वह यह दर्शित करने के लिए आवश्यक हो कि वह काम अचानक और अर्चेन्ट था।   

            
        इसी प्रकार यदि किसी की हत्या की गई है और यह तथ्य किसी अन्य व्यक्ति के व्दारा  पूर्व में हत्या करने वाले व्यक्ति की इस जानकारी से लोप विलुप्त करने की धमकी देता है । धन प्राप्त करता है । तो उसका यह कार्य आचरण के विपरीत है । जैसे अपराध किये जाने के पश्चात नष्ट किया जाना, छिपाना मिथ्या साबित करना, आचरण के विपरीत सुसंगत है । अपराध किये जाने के बाद पत्र प्राप्त होना कि अपराध की जांच की जा रही है। इसके बाद फरार हो जाना । उस पत्र की अन्तर्वस्तु आचरण  के विपरीत सुसगंत है ।


         प्रकाश चंद विरूद्ध दिल्ली राज्य ए0आई0आर1979 एस0सी0-400 में मान्नीय सर्वोच्य न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित  किया गया है कि आरोपी के द्वारा पुलिस  को उस स्थान पर ले जाकर जहां चुराई गई वस्तु या हथियार जिनका उपयोग अपराध में किया गया है । छिपाना धारा 8 के अधीन  आचरण के रूप में ग्राहय है । भले ही उसका कथन धारा 27 की परिधि में न आता हो ।

        न्यायालय के अनुसार ज्ीमतम पे ं बसमंत कपेजपदबजपवद इमजूममद जीम बवदकनबज व िं चमतेवद ंहंपदेज ूीवउ ंद वििमदबम पे ंससमहमकए ूीपबी पे ंकउपेेपइसम नदकमत ैमबजपवद 8 व िजीम म्अपकमदबम ।बजए प िेनबी बवदकनबज पे पद. सिनमदबमक इल ंदल ंिबज पद पेेनम वत तमसमअंदज ंिबज ंदक जीम ेजंजमउमदज उंकम जव ं च्वसपबम व्ििपबमत पद जीम बवनतेम व िंद पदअमेजपहंजपवद ूीपबी पे ीपज इल ैमबजपवद 162 ब्तपउपदंस च्तवबमकनतम ब्वकमण् ॅींज पे मगबसनकमक इल ैमबजपवद 162ए ब्तपउपदंस च्तवबमकनतम ब्वकम पे जीम ेजंजमउमदज उंकम जव ं च्वसपबम व्ििपबमत पद जीम बवनतेम व िपदअमेजपहंजपवद ंदक दवज जीम मअपकमदबम तमसंजपदह जव जीम बवदकनबज व िंद ंबबनेमक चमतेवद ;दवज ंउवनदजपदह जव ं ेजंजउमदजद्ध ूीमद बवदतिवदजमक वत ुनमेजपवदमक इल ं च्वसपबम व्ििपबमत कनतपद जीम बवनतेम व िंद पदअमेजपहंजपवदण् थ्वत मगंउचसमए जीम मअपकमदबम व िजीम बपतबनउेजंदबमए ेपउचसपबपजमतए जींज ंद ंबबनेमक चमतेवद समक ं च्वसपबम व्ििपबमत ंदक चवपदजमक वनज जीम चसंबम ूीमतम ेजवसमद ंतजपबसमे वत ूमंचवदे ूीपबी उपहीज ींअम इममद नेमक पद जीम बवउउपेेपवद व िजीम वििमदबम ूमतम विनदक ीपककमदए ूवनसक इम ंकउपेेपइसम ंे बवदकनबजए नदकमत ैमबजपवद 8 व िजीम म्अपकमदबम ।बजए पततमेचमबजपअम व िूीमजीमत ंदल ेजंजमउमदज इल जीम ंबबनेमक बवदजमउचवतंदमवनेसल ूपजी वत ंदजमबमकमदज जव ेनबी बवदकनबज ंिससे ूपजीपद जीम चनतअपमू व िैमबजपवद 27 व िजीम म्अपकमदबम ।बजण्
        ।बजण् ।प्त् 1969 ।दकीण्च्तंण् 271 क्पेजपदहए ।प्त् 1972 ैब् 975 ंदक ।प्त् 1954 ैब् 15 ंदक ।प्त् 1954 ैब् 322 ंदक ।प्त् 1958 ैब् 61 त्मसण् वद
        ए.आई.आर. 1975 सुप्रीम कोर्ट 972 हिमाचल प्रदेश प्रशासन विरूद्ध ओमप्रकाश के मामले में  अभिनिर्धारित किया है कि । ंिबज कपेबवअमतमक ूपजीपद जीम उमंदपदह व िैमबजपवद27 उनेज तममित जव ं उंजमतपंस तंबज जव ूीपबी जीम पदवितउंजपवद कपतमबजसल तमसंजमेण् ज्ींज पदवितउंजपवद ूीपबी कवमे दवज कपेजपदबजसल बवददमबज ूपजी जीम ंिबज कपेबवअमतमक वत जींज चवतजपवद व िजीम पदवितउंजपवद ूीपबी उमतमसलमगचसंपदे जीम उंजमतपंस जीपदह कपेबवअमतमक पे दवज ंकउपेेपइसम नदकमत ैमबजपवद 27 ंदक बंददवज इम चतवअमकण् बंेम संू कपेबनेेमकण्


        अपराध में फसाने वाला पश्चातवर्ती आचरण - किसी अभियुक्त के अपराध में फसाने वाले पश्चातवर्ती आचरण का श्री वाई0यू0एच0 राव ने अपनी पुस्तक मंे इस प्रकार विश्लेषण  किया है -


    1-     अपराध के पश्चात अपनी अनन्यता छिपाना
    2-     अपराध के पश्चात फरार हो जाना
    3-     सच्चा साक्ष्य सामने न आने देना
    4-     परिवर्तीत रूप धारण करना
    5-     झूंठा साक्ष्य गढ़ना
    6-     अपराध की परिस्थितियोंके बारे में विरोधात्मक या मिथ्या कथन करना          इसके अंतर्गत न्यायिक परिप्रश्न के उत्तर में किये गये प्रश्न नहीं आते हैं
    7-     अपराध में धन मिलने के कारण अकस्मात धनी हो जाना
    8-     ससंर्ग किये जाने पर या संसर्ग का आभास होने पर भाग जाना और संसर्ग         न होने देना
    9-     प्रश्नो का उत्तर न देना और उनके पूंछे जाने पर मौन रहना
    10-     अपराध से ससक्त सम्पतियो लिखतो और अन्य वस्तुओं को प्रस्तुत  नकरना
    11-     प्रश्न किये जाने पर भय और उत्तेजित भावं- भंगिमा  प्रदर्शित करना
    12-     अपराध से संसक्त स्थानो संपत्तियों लिखतो और अन्य वस्तुओं का भेद         देना
    13-     अपराध के फलस्वरूप पाई गई वस्तऐ अभियुक्त के कब्जे में होना ,इसके         अंतर्गत  वे वस्तुऐ नहीं आती है जो विधि के अनुसार तलाशी के परिणाम         स्वरूप अभियुक्त के पास मिलती है
    14-     अपराध से संबंधित औजार आदि का अभियुक्त के कब्जे में होना, इसके         अतर्गत वे औजार या वस्तुऐ नहीं आयेगी जो विधि के अनुसार तलाशी के         परिणाम स्वरूप अभियुक्त के पास  मिलती है
    15-     अन्वेषण को निष्फल बनाना
    16-     स्वांग करना
    17-     अभियोजन का तोड फोड करना ।

        अधिनियम की धारा 8 में हेतु संबोधित तथ्य आचरण के संबधित सुसगंत तथ्य माने गये हैं । हेतु वह मानसिंक दशा है जिसके अधीन अपराधी सचेत होता है । इसका पता लगाया जाना कठिन कार्य है । क्योंकि केवल कर्ता को ही सर्वोत्तम ज्ञान होता है । शत्रुता, बैमनुष्य, धन का लालच ,कामुकता उत्तेजना आदि महत्वपूर्ण घटक जो हेतु का निर्माण करते हैं । 


        सीधे शब्दो में हेतु वह है जिसके कारण मनुष्य किसी कार्य को करने के लिये विवश होता है ,हेतु अपराध को साबित करने की महत्वपूर्ण कड़ी है परन्तु अपराध का महत्वपूर्ण अंग नहीं होता , इसलिये अभियोजन का मामला संदेह से परे सिद्ध होने पर हेतु की असफलता अभियोजन मामले को प्रभावित  नहीं करती है । इस प्रकार हेतु की साक्ष्य धारा 8 के अंतर्गत आचरण की सुंसगता है।

        अधिनियम की धारा-8 के अंतर्गत एक तथ्य जो किसी विवाद्यक तथ्य पर सुंसगत तथ्य के लिये तैयारी करने के लिये गठित करते हैं । आचरण के रूप में सुंसगत है। अपराध के आवश्यक तथ्य अपराध करने का आशय उस अपराध करने की तैयारी और उसे करने के लिये प्रयत्न इन तीन बातों से अपराध पूर्ण होता है और तैयारी के अंतर्गत वे सभी बातें और कार्य आते हैं जो अपराध करने के लिये आवश्यक साक्ष्य जुटाने से संबधित है अथवा अपराध करने के लिये उपायों को ढूंढने सेसंबंधित हैं । 

        अपराध करने के काम में आने वाली वस्तुओं ओैर सामान जैसे जहर , हथियार आदि पर किसी व्यक्ति का अधिकार दिखाने के लिये कि आरोपी ने अपराध करने के लिये तैयारी की थी । सदैव आचरण के रूप में ग्राहय है। अपराध करने के बाद  उस अपराध को छिपाने और अपने को बचाने की तैयारी भी धारा-8 में आचरण के रूप में सुसगंत हैं । 

        उदाहरण के लिये क द्वारा ख की हत्या करने के लिये क का विचारण किया जा रहा है जिसमें यह तथ्य सुसंगत है कि मृत्यु के बाद ख को मार दिया जैसे विष दिया था। 

        इसी प्रकार यदि प्रश्न है कि क्या प्रमुख दस्तावेज क की वसीयत है तो यह तथ्य सुसंगत है कि उस वसीयत की तारीख से थोड़े दिन पहले बाद में वकीलों से परामर्श किया , प्रारूप बनवाये जिन्हें उन्हें पंसद नहीं किया ।

        साक्ष्य अधिनियम की धारा 6,7,8 जो प्रत्यक्ष साक्ष्य से संबंधित नहीं है जिसमें एक ही सहव्यवहार के भाग न होने वाले तथ्यों की सुसगंति दर्शाई गई है। उसी कड़ी में हेतु तैयारी और पूर्व के पश्चात का आचरण अधिनियम की धारा-8 में सुंसगंत माना गया और उसके संबंध में साक्ष्य दी जा सकती है ।
       
   
   








भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha

umesh gupta