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विधिक प्रतिनिधि

                                                                     विधिक प्रतिनिधि

    आदेष 22 नियम 4 के अनुसार जब दो या दो से अधिक प्रतिवादी होने से एक की मृत्यु हो जाती है और वाद लाने का अधिकार अकेला वादी के विरूद्ध बचा रहता है वहां पर न्यायालय मृत प्रतिवादी के  को पक्षकार बनाएगा । आदेष 22 नियम 4 उप नियम 2 के अनुसार इस प्रकार  पक्षकार बनाया गया कोई भी व्यक्ति जो मृत प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि के नाते अपनी हेसियत के लिए समुचित प्रतिरक्षा कर सेंकेंगे ।

        सिविल प्रक्रिया संहिता के संषोधन अधिनियम 1976 की धारा-73‘4‘ के द्वारा उप नियम 4 एंव उप नियम 5 नयेसंषोधन किये गये है जो 1/फरवरी/1977 से लागू हुये हैं ।

        संषोधन के पूर्व में जो प्रतिवादी वादोत्तर प्रस्तुत नहीं करता था अथवा वादोत्तर प्रस्तुति के बाद वाद में कभी उपस्थित नहीं होता था उसकी मृत्यु के बाद इस नियम के अधीन वादी को उसके विधिक प्रतिनिधि के संबंध में कार्यवाही करना आवष्यक हो जाता है । 

        संषोधन के पष्चात इस उपनियम के अधीन वादी को ऐसे प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को अभिलेख पर लाये जाने के संबंध में न्यायालय छूट दे सकता है ।     

        यदि मृत प्रतिवादी ने समुचित प्रतिरक्षा नहीं की है तो वह अपनी प्रतिरक्षा कर सकता है ।यदि मृत प्रतिवादी ने उसके अधिकारो के विरूद्ध प्रतिरक्षा की हैे तो वह अपने अधिकारो के संबंध में लिखित कथन पेष कर सकता है । 

        इस प्रकार यदि मृत प्रतिवादी ने अपने हितो का ध्यान नहीं रखा है तो वह अपने हितो के संरक्षण के लिए अतिरिक्त कथन प्रस्तुत कर सकता है। इस प्रकार मृत प्रतिवादी का विधिक प्रतिनिधि सम्पूर्ण बचाव पेष कर सकता है । यह आवष्यक नहीं है कि वह मृत प्रतिवादी की प्रतिरक्षा के अनुसार ही बचाव पेष करे लेकिन वहमृत प्रतिवादी के व्यक्तिगत अधकारो के संबंध में अलग से कोई बचाव पेष नहीं कर सकता है । और उनके सामूहिक हित के संबंध में ही कोई विपरीत प्रतिरक्षा प्रस्तुत नहीं कर सकता है ं।

        आदेष 7 नियम 8 के अंतर्गत प्रतिवादी के लिखित कथन के पष्चात कोई भी लिखित कथन न्यायालय की इजाजत से प्रस्तुत किया जा सकता है । और प्रतिरक्षा का कोई भी आधार जो वाद संस्थित किये जाने के बाद पैदा हुआ है और प्रतिवादी आदेष 7 नियम 8 के अंतर्गत प्रतिरक्षा नहीं उठा सकता है । 

         सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा-11 जो पूर्व न्याय से संबंधित है उसका स्पष्टीकरण 4 के अनुसार ऐसे किसी भी विषय के बारे में जो ऐसे पूर्ववर्ती वाद में प्रतिरक्षा या आक्रमण का आधार बनाया जा सकता था और बनायाजाना चाहिये था । यदि मृत प्रतिवादी के द्वारा इस प्रकार का कोईा आधार नहीं उठाया गया है तो धारा-11 के स्पष्टीकरण 4 के अनुसार विधिक प्रतिनिधि प्रतिरक्षा का ऐसे आधार से उठा सकता है ताकि उनका मामला पूर्व न्याय के सिद्धात के अनुसार वर्जित नहीं माना जाये ।
        इस प्रकार एक अधिकार के रूप में मृत प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि अपने बचाव प्रस्तुत कर सकते हैं ए0आई0आर0 1972 सुप्रीम कोर्ट 2528 में यह बात स्पष्ट रूप से अभिनिर्धारित किया गया है । 

        यदि मूल प्रतिवादी पूर्व से एक पक्षीय हो तो मृत प्रतिवादी के विधिक प्रतिनिधि को अभिलेख में षामिल करना आवष्यक नहीं है ।

        प्रस्तुत प्रष्न के अनुसार विधिक प्रतिनिधि प्रतिवादी द्वारा उठाये गये बचाव के संबंध में अभिवाक ले सकता है अपना नया अभिवाक प्रस्तुत नहीं कर सकता है । यह सिद्धांत थ परन्तु विधिक प्रतिनिधि अपनी प्रतिरक्षा में समुचित बचाव कर सकता है अपने खुद का उचित अभिवाक ले सकता है । किन्तु मृत के व्यक्तिगत संबंध में अभिवाक नहीं लिया जा सकता है ं

        जब वाद किसी मृत किरायेदार से संबंध मे हो तो उसके वारिस केवल वे ही अभिवाक ले सकते हैं और मृतक किरायेदार के द्वारा लिये गये थे उनसे भिन्न अभिवाक किरायेदार के विधिक प्रतिनिधि नहीं लिये जा सकते हैं । मृतक के व्यकितगत अभिवाक विधिक प्रतिनिधि नहींले सकता प्रतिनिधि स्वरूप जो कथन हो वे कर सकने के लिए स्वतंत्र है ।

        ए0आई0आर0 1972 2526जे0सी0 चटर्जी विरूद्ध श्रीकिषन टंडन समुचित प्रतिरक्षा प्रस्तुत कर सकता था वह अपनी व्यक्तिगत हैसियत से बचाव प्रस्तुत कर सकता है । मानो उसके विरूद्ध दावा प्रस्तुत किया गया है ।

        माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ए0आई0आर0 1992 दिल्ली सैययद सिराजुल हसन विरूद्ध सैययद मुर्तुजा अली खान के मामले में यह अभिनिर्धातिर किया गया है कि प्रतिवादी अपनी समुचित प्रतिरक्षा अतिरिक्त परिवाद पत्र प्रस्तुत कर सकता है ।
       

भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha

umesh gupta