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वसीयत

                                                             वसीयत
1.     रानी पूर्णिमादेवी एवं एक अन्य विरूद्व नारायण देव अयांगर ‘ए0आई0आर0 1962 सु0को0 567 में यह प्रतिपादित किया गया है कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 63 में वसीयत में अनुप्रमाणन के बारे में दिए गए उपबंधों के अनुसार वसीयत को प्रमाणित किया जाना चाहिए तथा यह प्रमाण भार वसीयत-ग्रहीता पर है
 एवं संदेहजनक परिस्थितियों के अभाव में वसीयतकर्ता की क्षमता एवं हस्ताक्षरों को प्रमाणित किया जाना पर्याप्त है

,लेकिन जहां संदेहकारक परिस्थितियां हैं वहां वसीयतकर्ता को न्यायालय में समाधानप्रद रूप से यह दर्षाना होगा कि वसीयत वास्तविक एवं स्वीकार किए जाने योग्य है। 

यदि वसीयत के संबंध में अनुचित प्रभाव,धोखा या दबाव के आक्षेप हैं, तो उसे साबित करने का भार ऐसे आक्षेप कर्ता पर होगा, 

लेकिन जहां ऐसे आक्षेप नहीं लगाए गए हैं,लेकिन परिस्थितियां संदेहजनक है वहां न्यायालय के विवेक की तुष्टि करते हुए वसीयतनामा को प्रमाणित किया जाना चाहिए।

 उक्त मामले में उन परिस्थितियों का संदर्भ भी किया गया है, जो संदेहकारक हो सकती हैं यथा-

1 वसीयतकर्ता के हस्ताक्षरों का संदिग्ध होना,
 2वसीयतकर्ता की मनःदषा अथवा स्वास्थ्य की स्थिति खराब होना,
 3वसीयत में सम्पत्ति अप्राकृतिक एवं अस्वाभाविक रूप से दिया जाना तथा
4वसीयत के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा वसीयत के निष्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना।
 2....... गुरूदयाल कौर विरूद्व करतार कौर ‘1998 (2)एम0पी0डब्यलू0एन0,नोट 87 सु0को0  

भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha

umesh gupta