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भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha
                                                          परिसीमा:-

1.......         गनपतराम शर्मा विरूद्ध गायत्री देवी ए.आई.आर. 1987 एस.सी. 2017  के मामले में माननीय शीर्षस्थ न्यायालय ने परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 66 की प्रयोज्यता का विष्लेषण करते हुये निर्णय की कण्डिका 22 एवं 23 में यह सुस्पष्ट अभिनिर्धारण किया है कि स्थावर सम्पत्ति के कब्जे के लिये जब वादी किसी समपहरण या शर्त भंग के कारण कब्जे का अधिकारी होने का अभिकथन कर रहा हो, वहाॅं परिसीमा काल ऐसे समपहरण के ज्ञान की तारीख से प्रारम्भ होगा


2---- रमती देवी विरूद्ध यूनियन आॅफ इंडिया, 1995(1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. नोट-186 में माननीय शीर्षस्थ न्यायालय की त्रि-सदस्यीय पीठ के द्वारा यह सुस्पष्ट विधिक प्रतिपादन किया गया है कि विक्रय का पंजीकृत विलेख न्यायालय द्वारा समुचित घोषणा द्वारा रद्द अथवा शूनय घोषित किये जाने तक विधि मान्य रहता है तथा पक्षकारों पर आबद्धकर है।

3-- उक्त मामले में यह प्रतिपादन भी किया गया है कि परिसीमा अधिनियम के अनुच्छेद-59 के परिप्रेक्ष्य में रजिस्ट्रीकृत विक्रय विलेख रद्द कराने के लिये यदि वाद तीन वर्ष के अंदर संस्थित नहीं किया गया है तो ऐसा वाद समय बाधित है।

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umesh gupta