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दुष्प्रेरण की विधिक स्थिति

भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha
1.. दुष्प्रेरण की विधिक स्थिति पर दृष्टिपात करना आवष्यक है, जिसे ’संहिता’ की धारा 306 एवं 107 में प्रतिपादित एवं इंगित किया गया है। उक्त प्रावधानों के अनुसार आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण का तात्पर्य स्पष्ट प्रोत्साहन द्वारा ऐसा कृत्य करने के लिये उद्धृत करने या ऐसा करने के लिये सहायता करने से है,
 संदर्भ:- महावीर सिंह आदि विरूद्ध म.प्र.राज्य, 1987 जे.एल.जे. 645.
 उक्त परिप्रेक्ष्य में यह देखना होगा कि क्या वर्तमान  अभियुक्तगण  आत्महत्या करने के लिये प्रोत्साहित या उद्धृत किया अथवा ऐसा करने में उसकी प्रत्यक्ष या परोक्ष सहायता की अथवा इस हेतु कोई षडयंत्र किया ?

2...         पंचमसिंह विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य, 1971 जे.एल.जे.शार्ट नोट 80 के मामले में अभियुक्त का प्रेम संबंध किसी महिला से चल रहा था जिसके कारण वह अपनी पत्नी के प्रति उदासीन रहता था तथा पत्नी ने स्वयं पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आत्महत्या कर ली। मामले की परिस्थितियों में अभियुक्त के व्यवहार को आत्महत्या के दुष्प्रेरण की परिधि में नहीं माना गया।
 न्याय दृष्टांत तेजसिंह विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य, 1985 करेन्ट क्रिमिनल लाॅ जजमेंट्स 201 के मामले में यह ठहराया गया कि मात्र इसलिये कि अभियुक्त का मृतक के साथ झगड़ा हुआ था, उक्त कृत्य को आत्महत्या का दुष्प्रेरण नहीं माना जा सकता है।

3.. न्याय दृष्टांत मध्यप्रदेष राज्य विरूद्ध रूपसिंह, 1991(2) एम.पी.जे.आर. शार्ट नोट 04 में जहा अभियुक्त के द्वारा मारपीट करने के कारण मृतक ने आत्महत्या कर ली थी, यह प्रतिपादित किया गया है कि सामान्यतः किसी व्यक्ति को आत्महत्या के दुष्प्रेरण के अपराध के लिये केवल इस आधार पर दोषसिद्ध ठहराना कठिन होगा कि उसने आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की मारपीट की तथा उसके कारण जिस व्यक्ति की मारपीट की गयी उसने आत्महत्या का रास्ता चुना, क्योंकि ऐसा करने पर अचंभित करने वाले परिणाम निकलेंगे। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति केवल इसलिये भी आत्महत्या कर सकता है कि दूसरे व्यक्ति ने उसे धमकी दी है अथवा चांटा मारा है। 

4...न्याय दृष्टांत दीपक बनाम म.प्र.राज्य, 1994 क्रिमिनल लाॅ जज. 677 के मामले में अभियुक्त मृतिका के कमरे में अचानक घुस गया, उसको पकड़ लिया तथा उसके साथ संभोग करने की इच्छा प्रकट की जिसके लिये उस महिला ने इंकार कर दिया बाद में उस महिला ने बदनामी के डर से स्वयं पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आत्महत्या कर ली, लेकिन अभियुक्त के कृत्य को आत्महत्या के दुष्प्रेरण की परिधि में नहीं माना गया।
5....न्याय दृष्टांत दिनेषचंद्र विरूद्ध म.प्र.राज्य, 1988 (2) एम.पी.वी.नो. नोट 84 के मामले में मृतक ने यह कथन दिया था कि वह अपने पिता, भाई एवं भाभी के द्वारा परेषान किये जाने के कारण आत्महत्या कर रहा है लेकिन पिता, भाई एवं भाभी को आत्महत्या के दुष्प्रेरण का दोषी नहीं माना गया।

6...... न्याय दृष्टांत राजलाल उर्फ कमलेष विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य, 1999(1) एम.पी.एल.जे. नोट 43 के मामले में अभियुक्त ने मृतक के साथ दुव्र्यवहार किया था तथा उसके प्रति कुछ अमर्यादित बातें कही थी जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली लेकिन अभियुक्त के कृत्य को आत्महत्या के दुष्प्रेरण की परिधि में नहीं माना गया।

7.....        न्याय दृष्टांत महावीर सिंह आदि विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य, 1987 जे.एल.जे.-645  यह प्रतिपादित किया गया है कि आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण का तात्पर्य स्पष्ट प्रोत्साहन द्वारा ऐसा कृत्य करने के लिये उकसाने या ऐसा कृत्य करने के लिये सहायता करने से है।

8..... न्याय दृष्टांत पंचमसिंह विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य, 1971 जे.एल.जे.शार्ट नोट 80 के मामले में अभियुक्त का प्रेम संबंध किसी महिला से चल रहा था जिसके कारण वह अपनी पत्नी के प्रति उदासीन रहता था तथा पत्नी ने स्वयं पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आत्महत्या कर ली। मामले की परिस्थितियों में अभियुक्त के व्यवहार को आत्महत्या के दुष्प्रेरण की परिधि में नहीं माना गया। 

9.....न्याय दृष्टांत तेजसिंह विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य, 1985 करेन्ट क्रिमिनल लाॅ जजमेंट्स 201 के मामले में यह ठहराया गया कि मात्र इसलिये कि अभियुक्त का मृतक के साथ झगड़ा हुआ था, उक्त कृत्य को आत्महत्या का दुष्प्रेरण नहीं माना जा सकता है। 

10....न्याय दृष्टांत मध्यप्रदेष राज्य विरूद्ध रूपसिंह, 1991(2) एम.पी.जे.आर. शार्ट नोट 04 में जहाॅं अभियुक्त के द्वारा मारपीट करने के कारण मृतक ने आत्महत्या कर ली थी, यह प्रतिपादित किया गया है कि सामान्यतः किसी व्यक्ति को आत्महत्या के दुष्प्रेरण के अपराध के लिये केवल इस आधार पर दोषसिद्ध ठहराना कठिन होगा कि उसने आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की मारपीट की तथा उसके कारण जिस व्यक्ति की मारपीट की गयी उसने आत्महत्या का रास्ता चुना, क्योंकि ऐसा करने पर अचंभित करने वाले परिणाम निकलेंगे। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति केवल इसलिये भी आत्महत्या कर सकता है कि दूसरे व्यक्ति ने उसे धमकी दी है अथवा चांटा मारा है। 

12.        न्याय दृष्टांत दीपक बनाम म.प्र.राज्य, 1994 क्रिमिनल लाॅ जज. 677 के मामले में अभियुक्त, मृतिका के कमरे में अचानक घुस गया, उसको पकड़ लिया तथा उसके साथ संभोग करने की इच्छा प्रकट की जिसके लिये उस महिला ने इंकार कर दिया बाद में उस महिला ने बदनामी के डर से स्वयं पर मिट्टी का तेल छिड़ककर आत्महत्या कर ली, लेकिन अभियुक्त के कृत्य को आत्महत्या के दुष्प्रेरण की परिधि में नहीं माना गया। 

13...न्याय दृष्टांत दिनेषचंद्र विरूद्ध म.प्र.राज्य, 1988 (2) एम.पी.वी.नो. नोट 84 के मामले में मृतक ने यह कथन दिया था कि वह अपने पिता, भाई एवं भाभी के द्वारा परेषान किये जाने के कारण आत्महत्या कर रहा है लेकिन पिता, भाई एवं भाभी को आत्महत्या के दुष्प्रेरण का दोषी नहीं माना गया। 

14.....न्याय दृष्टांत राजलाल उर्फ कमलेष विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य, 1999(1) एम.पी.एल.जे. नोट 43 के मामले में अभियुक्त ने मृतक के साथ दुव्र्यवहार किया था तथा उसके प्रति कुछ अमर्यादित बातें कही थी जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली, लेकिन अभियुक्त के कृत्य को आत्महत्या के दुष्प्रेरण की परिधि में नहीं माना गया।

15.        न्याय दृष्टांत अषोक कुमार सवादिया विरूद्ध मध्यप्रदेष राज्य, एम.पी.डब्ल्यू.एन. 2001(प्) नोट-93 में मृतक को अभियुक्तों द्वारा खुलेआम पीटा गया था तथा अपमानित किया गया था, जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली तथा यह पत्र भी छोड़ा कि अभियुक्तगण के द्वारा मारपीट किये जाने तथा अपमानित किये जाने के कारण वह आत्महत्या कर रहा है। इसके बावजूद अभियुक्तगण के कृत्य को आत्महत्या के दुष्प्रेरण की परिधि में नहीं माना गया।








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