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आपराधिक षडयंत्र

                                       आपराधिक षडयंत्र

        ’’आपराधिक षडयंत्र’’  का अपराध भारतीय दण्ड संहिता की धाा-120क में परिभाषित है, जबकि संहिता की धारा-120ख उक्त अपराध के लिए दण्ड उपबन्धित करती है ।

 आपराधिक षडयंत्र के अपराध की आधारशिला दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य किसी अवैध कृत्य या कोई कृत्य, जो स्वयं अवैध नहीं है, अवैध  साधनों के माध्यम से पूर्ण/करने के लिए सहयोग हेतु अनुबंध होता है । 

ऐसा अनुबंध या मस्तिष्कां का मिलन एंव सबूत का संबंध या कारित करने हेतु मुख्य अपराध अन्यथ, जो षडयंत्र हो सकेगा, आपराधिक षडयंत्र का अपराध कारित किया स्थित होता है।

        आपराधिक षडयंत्र के अपराध का प्रत्यक्ष सबूत से अधिक नहीं उपलब्ध होगा और ऐसे अपराध का सबूत दिये प्रकरण की स्थापित परिस्थितियों से अनुमान की प्रक्रिया द्वारा विनिश्चित किया जाना चाहिए । उक्त अपराध के आवश्यक संषटक, इसके कारित करने के सबूत की अनुज्ञेय रीति एंव इस संबंध में न्यायालयों की पहंुच निःशेषित रूप से इस न्यायालय द्वारा कई उद्घोषणाओ में विचारण की गई है,

 जो दृष्टांत रूप से ई.के चन्द्रसेनन बनाम केरल राज्य, 1995 भाग-2 एस.सी.सी. 99, केहर सिंह और अन्य बनाम राज्य दिल्ली प्रशासन, 1988  भाग-3 एस.सी.सी. 60, अजय अग्रवाल बनाम भारत का संघ, 1993 भाग-3 एस.सी.सी. 609 और यश पाल मित्तल बनाम पंजाब राज्य, 1977 भाग-4 एस.सी.सी. 540 में संन्दर्भित किये जा सके ।

        विवि की प्रतिपादनाएं जो उपर्युक्त प्रकरणांे से निकली है, किसी रूप से आधारात्मक रूप से भिन्न नहीं है, जो हमारे द्वारा एतस्मिन उपर कहा गया । आपराधिक षडयंत्र का अपराध अपराध के कारित करने का या विधिपूर्ण उददेश्य अविधिपूर्ण साधनों सेप्राप्त करने का  अनुबंध होता है । 

ऐसा षडयंत्र कभी-कभार खुला होगा एंव इसलिए प्रत्यक्ष साक्ष्य इसे स्थापित करने हमेशा उपलब्धनहीं होगा । ऐसे षडयंत्र का सबूत या अन्यथा अनुमान का मामला है एंव न्यायालय को ऐसा अनुमान लगाने में यह विचारण करना चाहिए कि क्या मूल तथ्य अर्थात परिस्थितियां जिनसे अनुमान लगाना चाहिए, समस्त युक्तियुक्त शंका से परे साबित है एंव इसके पश्चात क्या ऐसी साबित एंव स्थापित परिस्थितियों से कोई अन्य निष्कर्ष सिवाये इसके कि अभियुक्त अपराध कारित करने के लिए सहमत था, निकाला जा सकता है। प्राकृतिक रूप से अभियुक्त के प्रतिकूल किसी अनुमान लगाने के प्रयोजनो हेतु साबित परिस्थियां मूल्यांकित करते हुए, किसी शंका का लाभ जो आ सकेगा, अभियुक्त् को जाना चाहिए ।

भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha

umesh gupta