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सूचना का अधिकार अधिनियम-2005-एक परिचय umeshgupta

    सूचना का अधिकार अधिनियम-2005-एक    परिचय             
        भारत के संविधान मंे लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की गई है, जिसमें जनता में से जनता के द्वारा जनता के लिए, चुने व्यक्तियों द्वारा राज्य किया जाता है । इस प्रकार जनता का राज्य होता है । ऐसे राज्य मंे प्रत्येक नागरिक, वर्ग, को यह जानने का अधिकार है कि उसके खून-पसीने की कमाई से एकत्र किये गये टैक्स को सरकार किस प्रकार खर्च कर रही है । उससे प्राप्त राशि का किस प्रकार लोक  प्राधिकारी लोक संस्थाएं उपयोग कर रही है । ऐसी सूचना की पारदर्शिता की अपेक्षा प्रत्येक व्यक्ति सरकार से करता है । इसी पारदर्शिता को लागू करने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की स्थापना की गई है । जिसे आगे संक्षिप्त में आर.टी.आई. कानून कहा गया है ।

        लोक सूचना अधिनियम की धारा-1 की उपधारा-(3) के अनुसार राष्ट्रपति महोदय की स्वीकृति 15 जून, 2005 को होने के पश्चात् 21 जून, 2005 को भारत के असाधारण राजपत्र भाग-प्प् खण्ड-1 पार्ट-प्प्, अनुसार-1 दिल्ली में प्रकाशित होने के तत्काल प्रभाव से इसकी धारायें धारा 4 की उपधारा- (1) तथा धारा-5 की उपधारा- (1) और  (2),  धारायें 12,13,15,16,24,27,28 लागू हो गई थीं, शेष धारायें इसके अधिनियमित होने के 120  (एक सौ बीस दिन बाद) प्रवृत्त हो गई है । मध्य प्रदेश में यह कानून 12 अक्टूबर 2005 को लाग हुआ है ।

        इस अधिनियम में 31 धारायें है । अधिनियम की धारा-27 के अंतर्गत राज्य सरकार को नियम बनाने की शक्ति दी गई है जिसके अंतर्गत सूचना अधिकार  (फीस और लागत का विनियमन) नियम, 2005 बनाया गया है । जिसके अंतर्गत 10 रूपये आवेदन के साथ फीस दी जायेगी जो नगद मांग देय, ड्राफट या बेंकर चैक के रूप में लोक प्राधिकरण के लेखाधिकारी को संदेय होगा । 

        नियम 4 के अनुसार धारा-7 की उपधारा (1) के अधीन किसी सूचना को
उपलब्ध कराने के लिए फीस, निम्नलिखित दर पर, जो समुचित रसीद के विरूद्ध नकद के रूप में या मांग देय ड्राफट या बैंकर चैक के रूप में होगी जो लोक प्राधिकरण के किसी लेखा अधिकारी को संदेय हागा, प्रभारित की जाएगीः-

     (क)    तैयार किए गए या प्रतिलिपि किए गए प्रत्येक  (ए-4 या ए-3 आकार)
        कागज के लिये दो रूपये,
     (ख)    बडे आकार के कागज में किसी प्रतिलिपि का वास्तविक प्रभार या लागात            कीमत,
     (ग)    नमूनो या माडलों के लिए वास्तविक लागत या कीमत, और
     (घ)    अभिलेखों के निरीक्षण के लिए, पहले घंटे के लिए कोई फीस नहीं, तथा
        उसकेे पश्चात प्रत्येक घंटे  (या उसके भाग) के लिए रूपये पांच,

        नियम 5 के अनुसार धारा-7 की उपधारा (5) के अधीन किसी सूचना को उपलब्ध कराने के लिए फीस, निम्नलिखित दर पर, जो समुचित रसीद के विरूद्ध नकद के रूप में या मांग देय ड्राफट या बैंकर चैक के रूप में होगी जो लोक प्राधिकरण के किसी लेखा अधिकारी को संदेय हागा, प्रभारित की जाएगीः-

     (क)    डिस्केट या फ्लाॅपी में सूचना उपलब्ध कराने के लिए, प्रति डिस्केट या     फ्लाॅपी,          पचास रूपये, और
     (ख)    मुद्रित प्ररूप में दी गई सूचना के लिए, ऐसे प्रकाशन के लिए नियत कीमत
        पर या ऐसे प्रकाशन से उद्धरणें की फोटो प्रति के प्रति पृष्ठ के लिए दो
        रूपये ।

इस अधिनियम की धारा-2एफ के अनुसार सूचना से अभिप्राय किसी इलेक्ट्ानिक रूप में धारित 

अभिलेख,
दस्तावेज,
ज्ञापन,
ई-मेल,
मत,
सलाह,
प्रेस विज्ञप्ति,
परिपत्र,
आदेश,
लागबुक,
संविदा,
रिपोर्ट,
कागजपत्र,
नमूने,
माडल,
आंकडो, सबंधी सामग्री

और किसी प्राइवेट निकाय से संबंधित ऐसी सूचना सहित, जिस तक तत्समय प्रवृत्त, किसी अन्य विधि के अधीन किसी लोक प्राधिकारी की पहंुच हो सकती है, किसी रूप में कोई सामग्री अभिप्रेत है ।

        इस प्रकार सूचना के अंतर्गत मूल्यांकन उत्तरपुस्तिका , फाइल की टिप्पणी 

आदि शामिल है । लोक प्राधिकारी में शामिल हैे । कृषि उपज मण्डी समिति, गैर सरकारी संगठन सोसायटी जिनका सरकार द्वारा वित्त पोषण होता है ।

        अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार होगा सूचना के अधिकार को धारा-2आई में परिभाषित किया गया है ।

        जिसके अनुसार सूचना का अधिकार से अभिप्रेत है इस अधिनिमय के अधीन पहंुच योग्य सूचना का जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा या उसके नियंत्रणाधीन धारित है, अधिकार अभिप्रेत है और जिसमें निम्नलिखित का अधिकार सम्मिलित है-
    1-    कृति, दस्तावेजो, अभिलेखों का निरीक्षण,
    2-    दस्तावेजो या अभिलेखों के टिप्पण, उद्धरण या प्रमाणित प्रतिलिपि लेना,
    3-    सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना,
    4-    डिस्केट, फलापी, टेप, वीडियों कैसेट के रूप में या किसी अन्य इलेक्ट्ानिक             रीति में
        या प्रिंटआउट के माध्यम से सूचना को, जहां ऐसी सूचना किसी कम्प्यूटर
        या किसी अन्य युक्ति में भण्डारित है,
        अभिप्राप्त करना,
        अधिनियम की धारा-8 में सूचना के प्रकट किये जाने से छूट प्रदान की गई है जिसमें लोक प्राधिकारियों को सूचना देने की बाध्यता नहीं होगी । वह निम्नलिखित है-
    क-    सूचना जिसके प्रकटन से
        भारत की प्रभुता और अखण्डता,
        राज्य की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हित, विदेश से संबध पर             प्रतिकूल प्रभाव पडता हो
         या किसी अपराध को करने का उददीपन होता हो,
        अपराध के उद्दीपन को भा.द.सं. की धारा-383 में परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को कोई क्षति करने के भय में साशय डालता है, और तद्द्वारा इस प्रकार भय मे डाले गए  व्यक्ति को, कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूमि या य हस्ताक्षरित या मुद्रांतिक कोई चीज, जिसे मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके, किसी व्यक्ति को परिदत करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करता है, वह उद्दापन करता है ।
        इस प्रकार यदि अवैध वसूली के लिए कोई जानकारी मांगी जाती है तो वह उद्दीपन की श्रेणी में आएगी ।
        भा.दं.सं. की धारा-384 से लेकर 389 तक में उद्दीपन को विभिन्न रूपांे में दण्डित किया है जिसमें  उदद्पन करने के लिए किसी व्यक्ति को क्षति के भय में डालना, किसी व्यक्ति को मृत्यु का घोर उपहति के भय में डालकर उदद्पन, उदद्पन करने के लिए किसी व्यक्ति को मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालना, मृत्यु या आजीवन कारावास, आदि से दण्डनीय अपराध का अभियोग लगाने की धमकी देकर उदद्पन, उदद्पन करने के लिए किसी व्यक्ति को अपराध का अभियोग लगाने के भय में डालना शामिल है ।
    ख-    सूचना, जिसके प्रकाशन को किसी न्यायालय
        या अधिकरण द्वारा अभिव्यक्त रूप से निषिद्ध किया गया है
        या जिसके प्रकटन से न्यायालय का अवमान होता है ।
    ग-    सूचना जिसके प्रकटन से
        संसद
        या किसी राज्य के विधान मण्डल 
        के विशेषाधिकार का भंग कारित होगा,
    घ-    सूचना जिसमें वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार गोपनीयता
        या बौद्धिक संपदा सम्मिलित है,
        जिसके प्रकटन से किसी पर व्यक्ति की प्रतियोगी स्थिति को
        नुकसान होता है,
        जब तक कि सक्षम प्राधिकारी का यह समाधान नहीं हो
        जाता है कि ऐसी सूचना के प्रकटन से विस्तृत लोक हित का समर्थन     होता है,
    ड-    किसी व्यक्ति को उसकी वैश्वासिक नातेदारी में उपलब्ध सूचना,
        जब तक
        कि सक्षम प्राधिकारी का यह समाधान नहीं हो जाता है
        कि ऐसी सूचना के प्रकटन से विस्तृत लोक हित का समर्थन होता है,
    च-    किसी विदेश सरकार से विश्वास में प्राप्त सूचना,
    छ-    सूचना जिसका प्रकट करना किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को             खतरे में डालेगा
        या जो विधि प्रवर्तन
        या सुरक्षा प्रयोजनो के लिए विश्वास में दी गई किसी सूचना
        या सहायता के स्त्रोत की पहचान करेगा,
    ज-    सूचना, जिससे अपराधियों के अन्वेषण, पकडे जाने
        या अभियोजन की क्रिया में अडचन पडेगी,
    झ-    मंत्रिमण्डल के कागजपत्र,
        जिसमें मंत्रिपरिषद, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार विमर्श के अभिलेख         सम्मिलित है,
        परन्तु यह कि मंत्रिपरिषद के विनिश्चय, उनके कारण तथा वह सामग्री जिसके         आधार पर विनिश्चय किए गए थे,

        विनिश्चय किए जाने और विषय के पूरा या समाप्त होने के पश्चात जनता को         उपलब्ध कराए जाएगे,
        परन्तु यह और कि वे विषय जो इस धारा में विनिर्दिष्ट छूटों के अंतर्गत आते हैं         प्रकट नहीं किए जाएगें,

    ञ-    सूचना जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है,
        जिसका प्रकटन किसी लोक    क्रियाकलाप
        या हित से सबंध नहीं रखता है
        या जिससे व्यक्ति की एकांतता पर अनावश्यक अतिक्रमण होगा,
        जब तक कि, यथास्थिति केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना         अधिकारी   
        या अपील प्राधिकारी का यह समाधान नहीं हो जाता है
        कि ऐसी सूचना का प्रकटन विस्तृत लोक हित में न्यायोचित है,
        परन्तु ऐसी सूचना के लिए, जिसको, यथास्थिति, संसद
        या किसी विधान- मण्डल को देने से इंकार नहीं किया जा सकता है, किसी             व्यक्ति का इंकार नहीं किया जा सकेगा ।


2-        शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923- 1923 का 19 में उपधारा-1 के     अनुसार         अनुज्ञेय किसी छूट में किसी बात के होते हुए भी,
        किसी लोक प्राधिकारी को सूचना तक पहंुच अनुज्ञात की जा सकेगी,
        यदि सूचना के प्रकट में लोकहित, संरक्षित हितों के नुकसान से अधिक है 

3-        उपधारा-1 के खण्ड क, खण्ड ग, और खण्ड झ के उपबंधों के अधीन रहते             हुए, किसी ऐसी घटना, वृत्तांत या विषय से संबंधित कोई सूचना जो उस             तारीख से, जिसको धारा-6 के अधीन कोई अनुरोध किया जाता है, बीस वर्ष             पूर्व घटित हुई थी या हुआ था उस धारा के अधीन अनुरोध करने वाले किसी             व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाएगी ।

        परन्तु यह कि जहां उस तारीख के बारे में, जिससे बीस वर्ष की उक्त     अवधि             को संगठित किया जाता है, कोई प्रश्न उदभूत होता है, वहां इस अधिनियम में         उसके लिए उपबंधित प्रायिक अपीलों के अधीन रहते हुए केन्द्रीय सरकार का             विनिश्चय अंतिम होगा ।

        अधिनियम की धारा-9 के अनुसार वहां पर भी सूचना नहीं दी जायेगी जहां             राज्य से भिन्न किसी व्यक्ति के अस्तित्वयुक्त प्रतिलिप्यधिकार का उल्लंघन             अन्तर्वलित करेगा । 


        अधिनियम की धारा-10 के अनुसार जितने भाग की सूचना अधिनियम में नहीं दी जा सकती है । उस भाग को छोडकर शेष भाग की सूचना पृथककरण कर के दी जाएगी।

        अधिनियम की धारा-11 के अनुसार परव्यक्ति के संबंध में सूचना उससे पांच दिन के अंदर जानकारी ली जाने के बाद की क्या वह सूचना प्रकट की जानी चाहिए या नहीं। यदि वह गोपनीय रखने कहता है तो तीसरे पक्ष के हित का ध्यान रखते हुए सूचना दी जाएगी । अधिनियम की धारा-19 के अनुसार तीसरे पक्ष को अपील का अधिकार प्राप्त है । चालीस दिन का समय तीसरे पक्ष को दिया जाएगा ।

        अधिनियम की धारा-6 के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए लिखित मे  अनुरोध किया जाएगा । अनुरोध प्राप्ति के 30 दिन के भीतर ऐसी फीस संदाय किये जाने पर सूचना उपलब्ध कराई जाएगी । 

        यदि जानकारी किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है तो वह 48   घंटे के अंदर उपलब्ध कराई जायेगी ।
         अधिनियम की धारा-19 के अंतर्गत 30 दिन के अंदर अपील की जाएगी। दूसरी अपील 90 दिन के अंदर केन्द्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को दी जाएगी।


         अधिनियम की धारा-20 के अंतर्गत बिना किसी युक्तियुक्त कारण के सूचना न देने पर कोई आवेदन प्राप्त किये जाने पर निश्चित समय पर सूचना न दिये जाने पर असदभावना पूर्वक सूचना दिये जाने पर, जानबूझकर गलत, अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है या उस सूचना को नष्ट कर दिया है, जो अनुरोध का विषय थी या किसी रीति से सूचना देने में बाधा डाली है तो वह ऐसे प्रत्येक दिन के लिए जब तक आवेदन प्राप्त किया जाता है या सूचना दी जाती है, दो सौ पचास रूपये की शास्ति अधिरोपित करेगा, तथापि ऐसी शास्ति की कुल रकम पच्चीस हजार रूपये से अधिक नहीं होगी ।
         अधिनियम को अध्यारोही प्रभाव दिया गया है । अन्य न्यायालय की अधिकारिता वर्जित की गई है । 

        आम व्यक्ति को लोकहित में सूचना का अधिकार प्रदान किया गया है । जो विषय वस्तु लोकहित से संबंधित है । वह सूचना के अधिकार में शामिल है । सूचना के अधिकार से आम जनता को यह लाभ प्राप्त है कि लोक प्राधिकारी जो कार्य करेंगे उसकी जानकारी रहेगी । यदि वह मनमाने तौर पर काम करते है तो उस पर रोक लगाई जा सकेगी । यदि उनके द्वारा सरकारी कार्य करने में हीला हवाला किया जाता है, वे कार्य में उपेक्षा बरतते है, जिससे शासकीय कार्य में मनमानी भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, भाई-भतीजावाद को बढावा देते है तो उन पर रोक लगाई जा सकेगी ।   
     
        आर.टी.आई एक्ट से यह भी लाभ है कि लोकहित के कार्यो की सुनवाई समय पर हो सकेगी । समुचित राहत आम नागरिकों को समय पर प्राप्त होगी। सराकरी सेवको में कर्तव्य परायणता, जनसेवा की भावना जागृत होगी । जो इस अधिनियम का मूल्य उददेश्य है।

        सूचना के अधिकार से देश को यह लाभ है कि लोक प्राधिकारी के कृत्यों में पारदर्शिता आएगी तथा नागरिकों के प्रति जवाबदेही बढेगी । उचित ढंग से कार्य करने की भावना/मानसिकता विकसित होगी ।    

        देश को स्वच्छ प्रशासन प्राप्त होगा । नागरिकों की सामान्य सुविधाए प्राप्त करने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करना पडेगा लोकहित में मानक स्तर के कार्य होंगे । घटिया निर्माण कार्य पर रोक लगेगी । यही कारण है कि सूचना का अधिकार ’’सुशासन की कुंजी’’ माना गया है । इसके लिए आवश्यक है कि सरकारी रिकार्ड चुस्त दुरूस्त सूची बद्ध कम्प्यूटरीकृत रखे जावे ।

आर.टी.आई. कानून लागू होने के बाद सरकारी विभागों से मांगी जा रही सूचनाओं के कारण अनेक घोटालों का पर्दाफास हुआ है । घोटालो में  फसने वाले नेताओं और अफसरों की नींद हराम हुई है । आर.टी.आई. की सूचना जुटाकर घोटालों का भंडफोड करने में अनेक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा है । पुलिस प्रशासन द्वारा उन्हें समय-समय पर डराया धमकाया जाता है । समाज के संगठन काम करने वाले ऐसे आर.टी.आई. कार्यकताओं की सुरक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है । सरकार ऐसे कार्यकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करें ।

        आर.टी.आई. कानून ने भ्रष्ट नेता और अफसरों की नाक में दम कर रखा है । सही कारण है कि अवैध खनन करने वालो के कारनामों को उजागर करने वाले गुजरात के अमित जेठवा जमीन घोटालों का सच सामने लाने वाले पुणें के सतीश सेठी औरअहमदाबाद के नदीम सैयद जैसे तमाम कार्यकर्ताओं को अपनी जान तक गवानी पडी है । सूचना का अधिकार कानून जैसे-जैसे सशक्त बन कर उभर रहा है । वैसे-वैसे भ्रष्ट लोगों की लाॅबी भी सामने आ रही है । लेकिन चंद लोगों की हत्या या कुछ लोगों को डराने धमकाने से सूचना के अधिकार की मुहीम रूकने वाली नहीं है ।

        जरूरत है तो ऐसे लोगों का साथ देने का और ऐसे प्रशासन पर दबाव बनाने की कि वह भ्रष्ट नेता, अफसरों, के प्रभाव में आकर ऐसा कोई काम न करने पायें जिससे कानून से खिलवाड होता दिखाई दे            

भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha

umesh gupta