खुली अथवा अचानक लडाई धारा-34 और 149 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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खुली अथवा अचानक लडाई धारा-34 और 149

               खुली अथवा अचानक लडाई



                                                             अभिनिर्धारित सिंद्धांतो के अनुसार अचानक


 पारस्पिरिक लडाई के मामले में भा00विकी 


धारा-34 

 और 149  दोनो लागू नहीं होती है । सभी व्यक्त 




 अपने अपने द्वारा किए गये कार्य के लिए 


उत्तरदायी ठहराये जाते हैं । उपस्थित हो जाने मात्र से 



सामान्य आशय का गठन नहीं होता है । इसके


 लिए पूर्व नियोजन आवश्यक है । मात्र अपराध के 




समय एक साथ रहने से यदि व्यक्ति अचानक कोई


 घटना कर बैठे तो व्यक्ति को 34, 149 में


 दोषी नही ठहराया जा सकता । इसके लिए




 उसका पूर्व नियोजित होना आवश्यक है ।






 


सामान्य उददेश्य का अभिनिर्धारण के लिए निम्नलिखित बातो को 

 देखा जाएगा-


1. समूह की प्रकृति

 
2. घटना स्थल पर ले जाये जाने वाले हथियार 

 
3. आरोपीगण का घटना के पूर्व व पश्चात का व्यवहार,


4. सदस्यों के कृत्य

 
5. सदस्यों द्वारा मौके पर ग्राहय आचरण 

 


एक समूह जो प्रारंभ में विधिपूर्ण था बाद में अविधिपूर्ण हो सकता

 है और मौके पर भी सामान्य आशय तथा उददेश्य का गठन किया जा सकता है । 

 
यदि अचानक लडाई में घटना हुई हो तो अन्य अभियुक्तगण यदि 


मौके पर उपस्थित नहीं है तो विधि विरूद्ध जमाव का गठन 

प्रमाणित नहीं माना जा सकता । यदि आहत को चोट पहंुचाने के

 सबंध में मस्तिष्को के मिलने बावत तर्कपूर्ण साक्ष्य का अभाव है तो


 धारा-149 में दोष सिद्धि नही की जा सकती । 

 
अचानक लडाई में एक दूसरे को प्रकोपन और दोनो ओर से प्रहार 

किये जाते है । लडाई के लिए 

कोई पूर्व विचार विमर्श या चिन्तन आवश्यक नहीं होते हैं । लडाई 


अचानक होती है जिसके लिए 

दोनो पक्ष दोषी होते है 
 
सामान्य उददेश्य पूर्व मिलन की अपेक्षा नहीं करता इसके लिए 


जरूरी है कि 5 या 5 से अधिक 

सदस्य सामान्य उददेश्य बनाये और उस उददेश्य को हासिल 


करने उस समूह में स्वयं कृत्य करें 

यहां समूह का कृत्य ही सबको बराबर का उत्तरदायी बनाता है । 


इसकी प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं 

होती है । इसे आरोपीगण के कृत्य, आचरण सुसंगत परिस्थितियों 


के आधार पर देखा जाता है ।

 इसमें आरोपीगण के 

कृत्य पहंुचाई गई क्षतियां प्रयुक्त हथियार, कार्य की प्रकृति और


 आरोपीगण का आचरण मुख्य 

तथ्य है। इसके लिए समूह की प्रकृति, समूह के सदस्यों द्वारा ले

 जाए जाने वाले हथियार, घटना के


 समय अथवा घटना के नजदीक सदस्यों का व्यवहार देखा जाना

 चाहिए। 

 
अचानक लडाई के मामले में धारा-300 के भाग-4 के अंतर्गत 


मामला प्रमाणित माना जाता है । इस संबंध में यह सुस्थापित


 विधि है कि भा..सं. की धारा-300 के स्पष्टीकरण 4 को लागू

 किये जाने के लिए आवश्यक है कि आरोपी यह साबित करे कि 

जो लडाई हुई है 


वह-

- पूर्व चिंतन के बिना,



- अकस्मात लडाई में,



- अपराधी द्वारा अनुचित लाभ प्राप्त किये बिना 


या कू्रर या अप्रायिक रीति में कार्य किये 


बिना 



और,



- मारे गये व्यक्ति के साथ लडाई होनी चाहिए ।





लडाई दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य आयुधो के



 साथ या बिना मुठ भेड होती है। यह संभव नहीं 



है




 कि इस बारे में कोई सामान्य नियम प्रतिपादित 




किया जाये कि अकस्मात झगडा किसको माना 


जाये । यह तथ्य का प्रश्न है और यह बात कि



 कोई झगडा अकस्मात हुआ या नहीं, आवश्यक


 रूप 



 से 



प्रत्येक मामले के साबित तथ्यों पर निर्भर होगा ।



अपवाद 4 को लागू करने के लिए यह दर्शित किया जाना पर्याप्त 


नहीं है कि अकस्मात झगडा हुआ


 था और उसके लिए पूर्व चिंतन नहीं किया गया था । यह भी 



दर्शित किया जाना चाहिए कि 

अपराधी ने अनुचित लाभ नहीं लिया या उसने कू्रर या 


अप्रायिक रीति में कार्य नहीं किया । 

अभिव्यक्ति अनुचित लाभ जैसा कि उपंबध में प्रयुक्त किया गया है


 का अर्थ है अऋजू लाभ । उपरोक्त 

सिद्धांत मान्नीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गलीवेंकटयया बनाम आंध्र


 प्रदेश राज्य 2008 भाग-6 

 .सी.सी. 370 मंे प्रतिपादित किया है।



इस मामले में मान्नीय न्यायालय द्वारा यह भी अभिनिर्धारित किया 

है कि दंड संहिता की धारा-300 

 का चैथा अपवाद अकस्मात हाथापाई में किये गये कार्यो को 


आच्छादित करता है। यह अपवाद इसी 

सिद्धांत पर आधारित है कि दोनो में ही पूर्वचिंतन का अभाव है ।

जबकि अपवाद 1 के मामले में आत्म नियंत्रण का पूर्ण अभाव है

 और स्पष्टीकरण 4 के मामले में केवल 

आवेश की तीव्रता का उल्लेख है जो व्यक्तियों के सौम्य संतुलन को

 प्रभावित करती है और उनको 

उन कार्यो को करने के लिए प्रेरित करती है । जिन्हें वे अन्यथा 

नहीं करेंगे । अपवाद 4 में प्रकोपन 

को उपबंधित किया गया है ।जैसा कि अपवाद 1 में है किन्तु 

कारित क्षति उस प्रकोपन का प्रत्यक्ष 

परिणाम नही है ।

वास्तव में अपवाद 4 के अधीन ऐसे मामलो पर विचार किया गया 

है जिनमें इस बात के होते हुए भी

 कि प्रहार किया गया है या विवाद के उदगम में कुछ प्रकोपन 


दिया 

गया है या किसी भी रीति में 

झगडे से उत्पन्न हुआ है तथापि दोनो पक्षों का पश्चातवर्ती आचरण

 उनके अपराध के संबंध में समान


 आधार पर रख देता है । अकस्मात लडाई में एक दूसरे को 


प्रकोपन और दोनो ओर से प्रहार


 विवक्षित है । तब कारित मानववध स्पष्टतः एक पक्षीय प्रकोपन के


 अंतर्गत नहीं आता है और न ही 

ऐसे मामलो में सम्पूर्ण दोष किसी एक पक्ष पर डाला जा सकता है 


। ऐसा होता हो जो अपवाद 



अधिक उपयुक्त रूप से लागू होगा वह अपवाद 1 है । लडाई के

 लिए कोई पूर्व विचार विमर्श या 

अवधारण नहीं होता है लडाई अचानक होती है जिसके लिए लगभग


दोनो ही पक्ष दोषी होते हैं । 


अचानक लडाई के मामले में जब परस्पर प्रकोपन का मामला हो

 यह निष्कर्ष निकालना कठिन है कि 


दोनो पक्षों में कौन ज्यादा जिम्मेदार है तो धारा 304 के अपवाद


 में मामला माना जायेगा । महेश 

विरूद्ध एम.पी.राज्य ए.आई.आर. 1996 सु.को. 3315 इसी प्रकार पूर्व


 चिंतन पूर्व रंजिश के अभाव में 

यदि क्षति पहंुचाई जाती है तो प्रकृति के सामान्य अनुक्रम में


 मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त 

नहीं है और चिकित्सीय सहायता द्वारा अभियुक्त को बचाया जा


 सकता था तो यह कार्य आपराधिक 

मानव वध माना जायेगा । 


 
धारा-149 एक विनिर्दिष्ट अपराध सृजित करती है और उस अपराध 


हेतु दण्ड व्यवहत करती है । जब

 कभी न्यायलाय किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को धारा-149 की



 सहायता से अपराध हेतु दोषसिद्ध 


करती है । जमाव के सामान्य उददेश्य के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष

 दिया जाना चाहिए एंव चर्चा किया 


गया साक्ष्य न केवल सामान्य उददेश्य की प्रकृति दर्शाना चाहिए ।



 बल्कि यह भी कि उददेश्य विधि 


विरूद्ध था । भा..सं. की धारा-149 के तहत दोषसिद्धि अभिलिखित



 करने के पूर्व, भा..सं. की 


धारा-141 के आवश्यक संघटक स्थापित किये जाने चाहिए ।


141 विधिविरूद्ध जमाव- पांच याअधिक व्यक्तियों का जमाव 


विधिविरूद्ध जमाव कहा जाता है यदि उन

 व्यक्तियों का जिनसे वह जमाव गठित हुआ है, सामान्य उददेश्य



 हो-


पहला- केन्द्रीय सरकार को या किसी राज्य सरकार को संसद को 

या किसी राज्य के विधान मंडल

 को या किसी लोक सेवक को जब कि वह ऐसे लोक सेवक की 



विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा 

हो, आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा

 आतंकित करना अथवा

दूसरा- किसी विधि के या किसी वैध आदेशिका के निष्पादन का 

प्रतिशेध करना अथवा

तीसरा- किसी रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध का 


रना अथवा

चैथा- किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के


 प्रदर्शन द्वारा किसी सम्पत्ति का 

कब्जा लेना या अभिप्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के


 अधिकार के उपभोग से या जल 

का उपभोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से जिसका


 वह कब्जा रखता हो, या उपभोग

 करता हो, वंचित करना या किसी अधिकार या अनुमति अधिकार



 को प्रवर्तित करना अथवा

पांचवा- आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा 


किसी व्यक्ति को वह करने के लिए

 जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो या उसका लोप



 करने के लिए जिसे करने का वह 

वैध रूप से हकदार हो विवश करना ।

स्पष्टीकरण- कोई जमाव जो इकट्ठा होते समय विधि विरूद्ध नहीं था


 बाद को विधि विरूद्ध जमाव हो 


सकेगा ।

धारा-149 आकर्षित करने के अनुसरण में, यह देखा जाना चाहिए 




कि फंसाने वाला कृत्य विधि 



विरूद्ध जमाव के सामान्य उददेश्य को पूर्ण करने के लिए किया 

या 

था और यह अन्य सदस्यों के 

ज्ञान में होना चाहिए यथा सामान्य उददेश्य को पूर्ण करने के लिए 



किया गया था और यह अन्य 

सदस्यों के ज्ञान में होना चाहिए । यथा सामान्य उददेश्य के 


अग्रसरण में कारित किया होना चाहिए । 

यदि जमाव के सदस्य जानते या सामान्य उददेश्य के अग्रसरण में



 कारित होते हुए विशिष्ट अपराध 

की सम्भावना से अवगत थे, वे भा.दं.सं. की धारा-149 के तहत


 इसके लिए उत्तरदायी होगे ।

धारा-149 भा... के प्रमाणन के लिए दो बाते साबित की जाना 


आवश्यक है ।

पहला- किसी विधि विरूद्ध जमाव के किसी सदस्य के द्वारा अपराध

 किया जाना चाहिए।


दूसरा- उस अपराध को उस समूह के सामान्य उददेश्य की


 अग्रसरता में होना चाहिए अथवा इस 

प्रकार होना चाहिए कि उस समूह के सभी सदस्य यह जानते थे 


कि यह कारित होना प्रतीत होता 


था।

सामान्य उददेश्य के अपराध के गठन के लिए आवश्यक है कि 



उसके सदस्यों द्वारा उसमें कोई भाग



 लिया गया है । मात्र उपस्थिति से इसकी उपधारणा नहीं की जा 


सकती है । यदि सदस्य को 

सामान्य उददेश्य की जानकारी नहीं है तो अपराध घटित नहीं हो 


सकता है । अतः विधि के 


सुस्थापित सिद्धांतो के अनुसार अचानक लडाई के मामले में 


पक्षकार एक दूसरे को प्रकोपन देते है 


और दोनो ओर से प्रहार किये जाते हैं । लडाई के लिए कोई पूर्व


 विचार विमर्श या चिन्तन का 


अभाव रहता है । लडाई अचानक होती है इसके लिए दोनो पक्ष 


दोषी होते हैं । अचानक पारस्पिरिक


 लडाई के मामले में भा00वि0 की धारा-34 और 149 दोनो लागू




 नहीं होती है ।


भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha

umesh gupta