भारत में विधि का शासन


                        भारत में विधि का शासन

        एडवर्ड काक के द्वारा प्रतिपादित विधि के शासन को प्रोफेसर डायसी ने विस्तृत व्याख्या कर अर्थ स्पष्ट किया और प्रायः दुनिया के सभी देशों मंे उनके अभिमत को स्वीकार कर अपने संविधान का अभिन्न अंग बनाया है।

        विधि के शासन में सभी व्यक्ति विधि के समक्ष समान है और सभी का संरक्षण विधि बिना किसी भेदभाव के करती है लेकिन इसमें  वर्ग विभेद को विधि के विपरीत नहीं माना गया है और एक वर्ग विशेष और व्यक्ति के लिए भिन्न कानून और व्यवस्था की जा सकती है, जिसे युक्तियुक्त वर्गीकरण कहा जाता है । 

        विधि के शासन के अंतर्गत राज्य का प्रत्येक अधिकारी अपने आप को विधि के अधीन समझेगा और कानून का पालन करेगा । इसमें राज्य के तीनों अंग कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तीनों कानून के अनुसार कार्यवाही किए जाने के लिए बाध्य है ।

        विधि के शासन के अंतर्गत व्यक्ति संबंधी सभी स्वतंत्रताऐं इसमें शामिल मानी गई है और इसे संविधान का महत्वपूर्ण अंग माना गया है । विधि के शासन के अंतर्गत राज्य कर्मचारियों के द्वारा संवैधानिक सीमाओं के अंदर अपनी कार्यपालक शक्तियों का प्रयोग किया जाएगा । यदि उनकेे द्वारा अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं किया जाता है या सीमा से अधिक किया जाता है तो जनता उनके आचरण को चुनौती दे सकती है और न्यायालय उनके आचरण में सुधार करेगें ।

        विधि के शासन के अंतर्गत सरकारी अधिकारियों को मनमाना विवेकाधिकार प्राप्त नहीं होंता है, किसी भी व्यक्ति के पास विवेकाधिकार की असीमित शक्तियां नहीं होती हैं। सभी व्यक्तियों को विवेकाधिकार का प्रयोग विधि के अनुसार दी गई शक्तियों के अंतर्गत करना होता है । 

        विधि के शासन के अंतर्गत सभी विधि के उल्लंघन करने वाले को दण्डित किया जाता है । सभी व्यक्तियों पर देश का संपूर्ण कानून लागू बराबरी से लागू होता है, कोई भी व्यक्ति विधि के उपर नहीं माना जाता है, किसी भी सरकारी अधिकारी-कर्मचारी, नेता को विशेष छूट नहीं होती है  ।  
       इस संबंध में 1959 में दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कमीशन आॅफ ज्यूरिस में भारत के संबंध में विधि के शासन को लागू किए जाने के लिए कमेटीयां बनाई गई थीं, जो निम्नलिखित हैं:-

        (1) व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा विधि का शासन
        (2) राज्य के संबंध में विधि का शासन
        (3) आपराधिक प्रशासन के संबंध में विधि का शासन
        (4) सुनवाई तथा परीक्षण  के संबध्ंा में विधि का शासन         
      
(1) व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विधि का शासन लागू करने के संबंध में निम्नलिखित घोषणाऐं की गई हैंः-
1. राज्य पक्षपातपूर्ण विधि नहीं बनाएगा,
2.राज्य धार्मिक विश्वास पर हस्तक्षेप नहीं करेंगे,
3. राज्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध नहीं लगाऐंगे ।

(2) राज्य के संबंध में विधि का शासन लागू करने के संबध्ंा में निम्नलिखित घोषणाऐं की गई हैंः-
1.राज्य द्वारा प्रभावशाली सरकार दी जाएगी,
2.राज्य सरकार विधि के अनुसार चलेगी,
3. राज्य सरकार व्यक्ति की सुरक्ष देगी,
4. राज्य द्वारा बुराईयों का अंत किया जाएगा ।

(3) आपराधिक प्रशासन के संबंध में विधि का शासन लागू किए जाने के संबंध में निम्नलिखित घोषणाऐं की गई हैंः-
1.बिना विधिक प्रावधानों के गिरफतार नहीं किया जाएगा,
2. आरोप साबित होने पर जांच एजेन्सी व्यक्ति को निर्दोष मानेगी
3. युक्ति को अपने विरूद्ध आरोप में सुनवाई  का पूरा अवसर दिया जाएगा
4. व्यक्ति का परीक्षण विधि अनुसार होगा ।

(4) सुनवाई तथा परीक्षण करने के संबध्ंा में विधि का शासन लागू किए जाने के संबंध में  निम्नलिखित घोषणाऐं की गई हैंः-ः-
1. न्यायालय स्वतंत्र रूप से कार्य करेंगी ।
2. न्यायालय और न्यायाधीश निष्पक्ष और निर्भिक होकर न्याय प्रदान करेंगे ।
3. .विधि का व्यवसाय स्वतंत्र रूप से किया जाएगा ।

        इस प्रकार विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार न्यायालय प्रशासन द्वारा न्याय प्रदान करना ही विधि का शासन है, जिसमें बिना डर, दबाव, पक्षपात के न्याय प्रदान किया जाएगा । इसके अंतर्गत कानून किसी के साथ विभेद नहीं करेगा, सभी पर समान रूप से लागू होंगा और सभी को समान और संपूर्ण संरक्षण प्रदान किया जाएगा ।
      














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