भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha
फास्ट टेªक न्यायालय
आज देश के उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों में करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं। इन्हीं मामलों को निपटाने के लिये सरकार ने फास्ट टेªक जैसी कोर्ट पर भरोसा किया। आंकड़ों को देखे और जानकारों की मानें तो फास्ट टेªक कोर्ट का कान्सेप्ट देश में सफल तो रहा है, लेकिन हमें अभी इसका बहुत अधिक फायदा नहीं मिल पाया है।
फास्ट टेªक अदालतों की शुरूआत भारत में वर्ष 2001 में पुराने पेंडिंग पड़े मामलों को निपटाने के लिये की गई थी। सरकार को लंबित मामलों के निपटारे के लिये यह एक अच्छा विकल्प नजर आया था। आंकड़ों की माने तो यह प्रयास काफी सफल भी रहा है। 2001 के गठन के बाद से अब तक इन अदालतों ने 30 लाख से अधिक मामलां का निपटारा किया है। जजों और अदालतों की संख्या थोड़ी और बढ़ जाए तो इसके परिणाम बेहद अच्छे हो सकते हैं
फास्ट टेªक कोर्ट को अब तक 38.90 लाख पेंडिंग वाले केस ट्रांसफर किये गये हैं। फास्ट टेªक कोर्ट ने अब तक 32.34 लाख केसों का निपटारा किया है। फास्ट टेªक कोर्टस में भी अभी 6.56 लाख केस पेंडिंग हैं।
फास्ट टेªक अदालतों ने इंसाफ के मामलों में बहुत संतोषजनक नतीजे नहीं दिए हैं, ऐसी अदालतें जल्दबाजी में मामलों के तकनीकी पहलुओं पर ध्यान नहीं देती है। कई अदालतों में जज सेवानिवृत्त के बाद भी काम कर रहे हैं, जो गलत फैसले में किसी भी मामले के उपरी न्यायालयों के प्रति पूरी तरह जवाबदेय नहीं है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि लंबित मामलों में कमी करने के लिहाज से ये अदालतें काफी सफल रही हैं। न्यायालयों में न्यायधीशों की कमी इसी तरह बनी रही तो लंबित मामलों के निपटारे में 450 सालों से भी अधिक का समय लग जाएगा। भारत की न्याय प्रणाली का यह रोना नया नहीं है।
देश में जब भी लंबित मामलों के निपटारे की चर्चा होती है तो फास्ट टेªक कोर्ट अदालतों के गठन की बात होती है, लेकिन कुछ ऐसी समस्याएॅ हैं, जो फास्ट टेªक कोर्ट की राह में अक्सर आ जाती हैं:-
आकड़े बताते हैं, कि देश में मार्च 2012 तक करीब 1200 फास्ट टेªक अदालतें काम कर रही थीं, जबकि मार्च 2005 में देश में करीब 1562 फास्ट टेªक अदालतें थीं। अच्छा काम करने के बावजूद देश में इनकी संख्या लगातार कम हुई है, जबकि उधर पेंडिंग केसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यानी देश को वर्तमान लंबित केसों को देखते हुए और फास्ट टेªक अदालतों की जरूरत है।
दूसरी दिक्कत यह है, कि देश में फास्ट टेªक कोर्ट में नए मामले तो आते हैं, लेकिन जज नहीं। विभिन्न मामलों के लिये मौजूदा जजों और वकीलों को ही केस के लिये नियुक्त कर दिया जाता है, जबकि यदि जजों की भर्ती होगी तभी मामले तेजी से निपटेंगे। वैसे भी वर्तमान में देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 32 फीसदी ओर निचली अदालतों में 21 फीसदी पद खाली हैं।
फास्ट टेªक अदालतों के सामने तीसरी और शायद सबसे बड़ी समस्या पैसों की है। केन्द्र सरकार ने 400 करोड़ रूपये से धिक की लागत के साथ देश में फास्ट टेªक कोटस की शुरूआत की थी, ताकि लंबित मामलों को जल्दी निपटाया जा सके, लेकिन मार्च 2011 में उसने इस योजना के मद में पैसे का आबंटन बंद कर दिया। अब इन अदालतों को चलाने का खर्च राज्य सरकारों को वहन करना था। नतीजा यह हुआ कि कुछ राज्यों ने इन अदालतों को ही बंद कर दिया।
फास्ट टेªक न्यायालय
आज देश के उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों में करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं। इन्हीं मामलों को निपटाने के लिये सरकार ने फास्ट टेªक जैसी कोर्ट पर भरोसा किया। आंकड़ों को देखे और जानकारों की मानें तो फास्ट टेªक कोर्ट का कान्सेप्ट देश में सफल तो रहा है, लेकिन हमें अभी इसका बहुत अधिक फायदा नहीं मिल पाया है।
फास्ट टेªक अदालतों की शुरूआत भारत में वर्ष 2001 में पुराने पेंडिंग पड़े मामलों को निपटाने के लिये की गई थी। सरकार को लंबित मामलों के निपटारे के लिये यह एक अच्छा विकल्प नजर आया था। आंकड़ों की माने तो यह प्रयास काफी सफल भी रहा है। 2001 के गठन के बाद से अब तक इन अदालतों ने 30 लाख से अधिक मामलां का निपटारा किया है। जजों और अदालतों की संख्या थोड़ी और बढ़ जाए तो इसके परिणाम बेहद अच्छे हो सकते हैं
फास्ट टेªक कोर्ट को अब तक 38.90 लाख पेंडिंग वाले केस ट्रांसफर किये गये हैं। फास्ट टेªक कोर्ट ने अब तक 32.34 लाख केसों का निपटारा किया है। फास्ट टेªक कोर्टस में भी अभी 6.56 लाख केस पेंडिंग हैं।
फास्ट टेªक अदालतों ने इंसाफ के मामलों में बहुत संतोषजनक नतीजे नहीं दिए हैं, ऐसी अदालतें जल्दबाजी में मामलों के तकनीकी पहलुओं पर ध्यान नहीं देती है। कई अदालतों में जज सेवानिवृत्त के बाद भी काम कर रहे हैं, जो गलत फैसले में किसी भी मामले के उपरी न्यायालयों के प्रति पूरी तरह जवाबदेय नहीं है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि लंबित मामलों में कमी करने के लिहाज से ये अदालतें काफी सफल रही हैं। न्यायालयों में न्यायधीशों की कमी इसी तरह बनी रही तो लंबित मामलों के निपटारे में 450 सालों से भी अधिक का समय लग जाएगा। भारत की न्याय प्रणाली का यह रोना नया नहीं है।
देश में जब भी लंबित मामलों के निपटारे की चर्चा होती है तो फास्ट टेªक कोर्ट अदालतों के गठन की बात होती है, लेकिन कुछ ऐसी समस्याएॅ हैं, जो फास्ट टेªक कोर्ट की राह में अक्सर आ जाती हैं:-
आकड़े बताते हैं, कि देश में मार्च 2012 तक करीब 1200 फास्ट टेªक अदालतें काम कर रही थीं, जबकि मार्च 2005 में देश में करीब 1562 फास्ट टेªक अदालतें थीं। अच्छा काम करने के बावजूद देश में इनकी संख्या लगातार कम हुई है, जबकि उधर पेंडिंग केसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यानी देश को वर्तमान लंबित केसों को देखते हुए और फास्ट टेªक अदालतों की जरूरत है।
दूसरी दिक्कत यह है, कि देश में फास्ट टेªक कोर्ट में नए मामले तो आते हैं, लेकिन जज नहीं। विभिन्न मामलों के लिये मौजूदा जजों और वकीलों को ही केस के लिये नियुक्त कर दिया जाता है, जबकि यदि जजों की भर्ती होगी तभी मामले तेजी से निपटेंगे। वैसे भी वर्तमान में देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 32 फीसदी ओर निचली अदालतों में 21 फीसदी पद खाली हैं।
फास्ट टेªक अदालतों के सामने तीसरी और शायद सबसे बड़ी समस्या पैसों की है। केन्द्र सरकार ने 400 करोड़ रूपये से धिक की लागत के साथ देश में फास्ट टेªक कोटस की शुरूआत की थी, ताकि लंबित मामलों को जल्दी निपटाया जा सके, लेकिन मार्च 2011 में उसने इस योजना के मद में पैसे का आबंटन बंद कर दिया। अब इन अदालतों को चलाने का खर्च राज्य सरकारों को वहन करना था। नतीजा यह हुआ कि कुछ राज्यों ने इन अदालतों को ही बंद कर दिया।
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