अभियोजन चलाने की अनुमति के बारे में

  अभियोजन चलाने की अनुमति के बारे में

        अभियोजन चलाने की अनुमति कई बार जिला मजिस्ट्रेट के स्थान पर अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दी होती है और तब यहप्रश्न उत्पन्न होता है कि ऐसी अनुमति वैधानिक नहीं हे ।

 इस संबंध में आर्मस रूल्स 1962 का नियम 2 एफ 2 अवलोकनीय है जिसके अनुसार जिला मजिस्ट्रेट में उस जिले का अतिरिक्त जिला मजिस्टे्रट या अन्य अधिकारी जिसे राज्य सरकार ने विशेष रूप से सशक्त किया हो शामिल होते है ।

        न्याय दृष्टांत विजय बहादुर उर्फ बहादुर विरूद्ध स्टेट आफ एम.पी. 2002 भाग-4 एम.पी.एच.टी. 167, भी इसी संबंध में अवलोकनीय है जिसमें उक्त नियम की व्याख्या की गइ्र है और यह प्रतिपादित किया गया है कि अतिरिक्त जिला मजिस्टे्रट द्वारा दी गई मंजूरी उक्त नियम के तहत वैध मंजूरी है प्रतिरक्षा के तर्को को अमान्य किया गया । अतः जब कभी विचारण के दौरान उक्त स्थिति उत्पन्न हो तभी यह ध्यान रखना चाहिए की जिला मजिस्टे्रट में अतिरिक्त जिलामजिस्टे्रट और अन्य अधिकारी यदि राज्य सरकार द्वारा सशक्त किया गया हो तो वह भी शामिल होता है ।


        कई बार  ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि संबंधित जिला मजिस्टे्रट को अभियोजन चलाने की अनुमति प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य में उपस्थित नहीं किया जाता है इस संबध में न्याय दृष्टांत माननीय उच्च न्यायालय का स्टेट आफ एम0पी0 विरूद्ध जीया लाल आई0एल0आर0 2009 एम0पी0 2487  अवलोकनीय है । जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि अभियोजन चलाने की अनुमति का आदेश स्पष्ट रूप से जिला मजिस्टे्रट ने उसके पदीय कर्तव्य के निर्वहन के दौरान जारी किया इस लिए उपधारणा की जायेगी की यह कार्य सदभाविक तरीके से किया गया है

        जिला मजिस्टे्रट को गवाह के रूप में परिक्षित कराया जाना अभियोजन के लिए आवश्यक नहीं है । यह न्याय दृष्टांत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 पर आधारित है लेकिन अभियोजन चलाने की अनुमति के सबंध में इससे मार्गदर्शन लिया जा सकता है और जो वैधानिक स्थिति उक्त अधिनियम के बारे में प्रतिपादित की गई है वहीं आयुध अधिनियम के बारे में भी समान रूप से लागू होती है ।


        न्याय दृष्टांत स्टेट विरूद्ध नरसिंम्हाचारी, ए0आई0आर0 2006 एस0सी0 628 में यह प्रतिपादित किया गया है कि अभियोजन चलाने की अनुमति एक लोक दस्तावेज होता है और इसे धारा 76 से 78भारतीय साक्ष्य अधिनियम में बतलाये तरीके से प्रमाणित किया जा सकता है । 

        न्याय दृष्टांत शिवराज सिंह यादव विरूद्ध स्टेट आफ एम0पी0 2010 भाग-4 एम0पी0जे0आर0 49 डी0बी0 में माननीय म0प्र0 उच्च न्यायालय ने अभियोजन चलाने के आदेश को एक लोक दस्तावेज माना है और उसका प्रस्तुत किया जाना ही उसका प्रमाणित होना माना जायेगा अनुमति देने वाले अधिकारी का परीक्षण करवाना आवश्यक नहीं होगा यह प्रतिपादित किया है ।

        न्याय दृष्टांत स्टेट आफ एम0पी0 विरूद्ध हरिशंकर भगवान प्रसाद त्रिपाठी, 2010 भाग-8 एस0सी0सी0 655 में यह प्रतिपादित किया गया है कि अभियोजन चलाने की अनुमति देते समय संबंधित अधिकारी के लिए यह आवश्कय नहीं है कि वह आदेश में यह इंडिकेट करे की उसने व्यक्तिगत रूप से संबंधित पत्रावली की छानबीन की है और यह संतोष किया है कि अनुमति देनी चाहिए ।

        न्याय दृष्टांत सी0एस0 कृष्णामूर्ति विरूद्ध स्टेट आफ कर्नाटका 2005 भाग-4 एस0सी0 सी0 81 में यह प्रतिपादित किया गया है कि तथ्य जो अपराध गठित करते है वे अनुमति आदेश में रेफर किये गये अभियोजन के लिए यह प्रमाणित करना आवश्यक नहीं है कि सारी सामग्री अनुमति देने वाले अधिकारी के सामने रखी गई थी । 

        यद्यपि उक्त सभी न्याय दृष्टांत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 पर आधारित है लेकिन अनुमति से संबंधित होने से इनसे मार्गदर्शन लिया जा सकता है ।

        न्याय दृष्टांत गुरूदेव सिंह उर्फ गोगा विरूद्ध स्टेट आफ एम0पी0 आई0एल0आर0 2011 एम0पी0 2053  में माननीय म0प्र0 उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने यह प्रतिपादित किया है कि अभियोजन चलाने की मंजूरी लेते समय आयुधो को प्रस्तुत करना आवश्यक नहीं होता है । और प्राधिकारी द्वारा उनका परीक्षण भी आवश्यक नहीं होता है ।

 इस न्याय दृष्टांत में न्याय दृष्टांत राजू दुबे विरूद्ध स्टेट आफ एम0पी0 1998 भाग-1 जे0एल0जे0 236  एंव श्रीमती जसवंत कौर विरूद्ध स्टेट आफ एम0पी0 1999 सी0आर0एल0आर0 एम0पी0 80 प्रभु दयाल विरूद्ध स्टेट आफ एम0पी0 2002 सी0आर0एल0आर एम0पी0 192 को इस न्याय दृष्टांत में ओवर रूल्ड कर दिया गया है

 अतः ये न्याय दृष्टांत यदि इस संबंधमें प्रस्तुत होते है कि जप्त शुदा हथियार अभियेाजन चलाने की मंजूरी लेते समय प्रस्तुत नहीं किये गये है तो यह प्रतिरक्षा मान्य नहीं की जायेगी क्योंकि जप्तशुदा हथियार का अभियोजन चलाने की मंजूरी लेते समय प्रस्तुत किया जाना आवश्यक नहीं है ।



           

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