भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha
द0प्र0सं0 311
न्याय दृष्टांत जाहिरा हबीबुल्ला विरूद्ध गुजरात राज्य (2004) 4 एस.सी.सी.-158 में अभिनिर्धारित किया गया है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 311 के प्रावधान किसी पक्ष को यह अधिकार नहीं देते हैं कि वे किसी साक्षी को परीक्षण, पुनः परीक्षण या प्रतिपरीक्षण हेतु बुलाये, अपितु यह शक्ति न्यायालय को इस उद्देष्य से दी गयी है ताकि न्याय के हनन को तथा समाज एवं पक्षकारों को होने वाली अपूर्णीय क्षति को रोका जा सके, इन प्रावधानों का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिये जब न्यायालय मामले के सम्यक् निर्णयन हेतु तथ्यों के प्रमाण की आवष्यकता महसूस करे।
द0प्र0सं0 311
न्याय दृष्टांत जाहिरा हबीबुल्ला विरूद्ध गुजरात राज्य (2004) 4 एस.सी.सी.-158 में अभिनिर्धारित किया गया है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 311 के प्रावधान किसी पक्ष को यह अधिकार नहीं देते हैं कि वे किसी साक्षी को परीक्षण, पुनः परीक्षण या प्रतिपरीक्षण हेतु बुलाये, अपितु यह शक्ति न्यायालय को इस उद्देष्य से दी गयी है ताकि न्याय के हनन को तथा समाज एवं पक्षकारों को होने वाली अपूर्णीय क्षति को रोका जा सके, इन प्रावधानों का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिये जब न्यायालय मामले के सम्यक् निर्णयन हेतु तथ्यों के प्रमाण की आवष्यकता महसूस करे।
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