ग्राम न्यायालय
भारत 120 करोड़ वाला देश है । जहां पर अधिकांश आबादी गांव में
रहकर अपना जीवनयापन करती है । शिक्षा, अज्ञानता, परम्परावादी, रूढीवादी होने के कारण इनमें आपस में विवाद होते रहते हैं । प्राचीन परम्पराओं के चलते गांव के मामले गांव में निपट जाते थे । गाॅव में पंचायत व्यवस्था थी । पंच को परमेश्वर मानकर विवादो का निपटारा हो जाता था । पंच भी जुम्मन शेख और अलगू चैधरी के बीच में हिन्दु,मुस्लिम, सिख, इसाई का अंतर न रखते हुए जाति, धर्म, भाषा का भेदभाव भुलाकर न्यायोचित फैसला देते थे ।
इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुये भारत में ग्राम न्यायालय की स्थापना की गई । गांव के लोग गांव में ही न्याय प्राप्त कर सकें और उन्हें न्याय पाने के लिये अपनेे दिन भर का काम-धंधा छोड़कर शहर के चक्कर न काटने पड़े, नागरिकों को उनके घरों तक न्याय उपलब्ध हो । इस प्रयोजन से ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अंतर्गत ग्राम न्यायालय की स्थापना की गई है ।
ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 में इस बात का ध्यान रखा गया है कि किसी भी नागरिक को सामाजिक, आर्थिक या अन्य निःशक्त्ता के कारण न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित नहीं किया जाए । इसके लिए अधिनियम में विधिक सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है ।
ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अंतर्गत राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के बाद अधिसूचना द्वारा किसी जिले में माध्यमिक स्तर पर प्रत्येक पंचायत या पंचायतो के समूह या ग्राम पंचायतो के समूह के लिये एक ग्राम न्यायालय स्थापित करेगी । जिसका मुख्यालय उस पंचायत में स्थित होगा । प्रत्येक न्यायालय के लिये न्याय अधिकारी के रूप में प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी को नियुक्त किया जावेगा जिसमें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति स़्त्री तथा अन्य वर्ग के समुदाय के सदस्यों को बराबर का प्रतिनिधित्व दिया जावेगा ।
न्याय अधिकारी का कर्तव्य होगा कि वह अपनी अधिकारिता के अंतर्गत आने वाले ग्रामों के अंदर दौरा करें और ऐसे स्थान पर विचारण या कार्यवाही संचालित करे जिसे वह उस स्थान से निकट समझते हो जहां पक्षकार निवास करते हो ,ग्राम न्यायालय को मुख्यालय से बाहर चलित न्यायालय लगाने की भी शक्ति प्राप्त है । गाम न्यायालय को सिविल ओर दांडिक दोनो प्रकरणों की अधिकारिता प्रदान की गई है ।
ग्राम न्यायालय में अधिनियम की अनुसूची-1 के अनुसार दिये गये दांडिक प्रकरणों का एंव दूसरी अनुसूची में दिये गये सिविल प्रकरणों का निराकरण किया जावेगा ।
आपराधिक मामलो में भारतीय दण्ड संहिता 1860 के अंतर्गत निम्नलिखित अपराध ग्राम न्यायालय के क्षेत्राधिकार में रखे गये है । जिन्हें अनुसूची एक में दर्शाया गया है ।
1. ऐेसे अपराध जो मृत्यु दण्ड आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय नहीं है,
2. भारतीय दण्ड संिहता 1860 की धारा-379, धारा 380 या धारा-381के अधीन, चोरी, जहां चुराई गई सम्पत्ति का मूल्य बीस हजार रूपये से अधिक हीं है,
3. भारतीय दण्ड संिहता 1860 की धारा-411 के अधीन, चुराई गयी सम्पत्ति को प्राप्त करना या प्रतिधारित करना, जहां ऐसी सम्पत्ति का मूल्य बीस हजार रूपये से अधिक नहीं है,
4. भारतीय दण्ड संिहता 1860 की धारा-41 के अधीन, चुराई गई सम्पत्ति को छुपाने या उसका व्ययन करने में सहायता करना, जहां ऐसी सम्पत्ति का मूल्य बीस हजार रूपये से अधिक नहीं है,
5. भारतीय दण्ड संिहता 1860 की धारा-454 और धारा-456 के अधीन अपराध,
6. धारा-504 के अधीन शांति के भंग का प्रकोपन करने के आशय से अपमान और भारतीय दण्ड संिहता 1860 का 45 की धारा-506 के अधीन ऐसी अवधि के, जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, कारावास से या जुर्माने से या क्षेत्रों से दण्डनीय आपराधिक अभित्रास,
7. पूर्वोक्त अपराधों में से कोई अपराध करने का प्रयत्न, जब ऐसा प्रयत्न अपराध हो,
इसके अलावा अन्य केन्द्रीय अधिनियमों के अधीन अपराध और अनुतोष संबंधि मामले रखे गये है जो निम्नलिखित हैः-
1. ऐसे किसी कार्य द्वारा गठित कोई अपराध, जिसकी बावत पशु अतिचार अधिनियम, 1871 कर 1 की धारा-20 के अधीन परिवाद किया जा सकेगा,
2. मजदूरी संदाय अधिनियम 1936 का 34,
3. न्यूनतम मजदरूी अधिनियम 1948 का 11,
4. सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 का,
5. दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973-1974 का 2 के अध्याय 9 के अधीन पत्नियों, बालकों और माता-पिता के भरण-पोषण के लिए आदेश,
6. बन्धित श्रम पद्धति उत्सादन अधिनियम, 1976 का 19,
7. समान पारिश्रमिक अधिनियम,1976 का 25,
8.. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 20058 का 43,
दांडिक मामलो का विचारण करते समय ग्राम न्यायालय दं0प्र0सं0 मेंदी गई संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुुसरण करेगें और संक्षिप्त प्रक्रिया अपनाते हुये मामलों का निपटारा करेगें। इस संबंध में सौदा अभिवाक् से संबंधित अध्याय 21क दं0प्र0सं0 के प्रावधान पूर्णतः ग्राम न्यायालय को लागू होगें । सरकार की तरफ से ग्राम न्यायालय में दांडिक मामलो का संचालन करने के लिये सहायक लोक अभियोजन अधिकारी कार्य कर सकेंगे और न्यायालय की इजाजत से परिवादी अपना अधिवक्ता नियुक्त कर सकते हैं ।
ग्राम न्यायालय विधिक सेवा प्रणिकरण के माध्यम से पक्षकारो को निशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध करायेगी और मामले के निर्णय की निःशुल्क प्रति तत्काल दोनो पक्षकारो को दी जावेगी । निर्णय विचारण समाप्ति के 15 दिन के अन्दर सुनाया जाएगा । ग्राम न्यायालय में भारतीय साक्ष्य अधिनियम कठोरता से लागू नहीं की जाएगी । साक्षियों की साक्ष्य विस्तार से अभिलिखित न कर संक्षेप में लिपिबद्ध की जाएगी । औपचारिक प्रकृृति की साक्ष्य को शपथ पत्र पर प्रकट किए जाने की अनुमति दी जाएगी।
ग्राम न्यायालय द्वारा प्रत्येक सिविल विवादो में विशेष प्रक्रिया का पालन किया जावेगा, 100/-कोर्टफीस के साथ दावा ग्राम न्यायालय में प्रस्तुत किया जावेगा, सिविल वाद का निराकरण 6 माह की अवधि के अंदर किया जावेगा और तर्क सुनने के ठीक 15 दिन के अंदर निर्णय पारित किया जावेगा, निर्णय की प्रतिलिपि तीन दिन के अंदर निःशुल्क दी जावेगी ग्राम न्यायालय द्वारा पारित निर्णय डिक्री का निष्पादन सिविल प्रक्रिया के तहत होगा लेकिन इसमें नैसर्गिक न्याय के सिद्वांतो का अनुरण किया जावेगा ।
ग्राम न्यायालय अनुसूची दो में दिये गये सिविल प्रकृति के मामले में सुनवाई करेगी ।
1- सिविल विवाद-क-सम्पत्ति क्रय करने का अधिकार, ख- आम चारागाहों का उपयोग, ग-सिंचाई सरणियों से जल लेने का विनियमन और समय,
2- सम्पत्ति विवाद-क-ग्राम और फार्म हाउस कब्जा, ख-जलसरणियां, ग- कुंए या नलकूप से जल लेने का अधिकार,
3- अन्य विवाद-
क- मजदूरी संदाय अधिनियम 1948 के अधीन दावे,
ख- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अधीन दावे,
ग- व्यापार संव्यवहार या साहूकारी से उद्भूत धन संबंधी वाद,
घ- भूमि पर कृषि में भागीदारी से उद्भूत विवाद,
ड- ग्राम पंचायतों के निवासियों द्वारा वन उपज के उपयोग के संबंध में विवाद,
केन्द्री और राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के धारा-14 की उपधारा-1 के अधीन अधिसूचित केन्द्रीय और राज्य अधिनियमों के अधीन दावे और विवाद ।
ग्राम न्यायालय प्रथम दो अवसर पर यह प्रयास करेगी कि प्रत्येक वाद या कार्यवाही समझौते से निपटाई जावे । पक्षकारो के बीच समझौता कराये जाने का प्रयास किया जायेगा । इसके लिये सुलाहदारों की नियुक्ति जिला मजिस्ट्ेट के परामर्श से की जावेगी ।
ग्राम न्यायालय की भाषा अंग्रेजी से भिन्न राज्य भाषाओं में से एक राज्य भाषा होगी ,भारत के संविधान की अनुसूची-8 में 22 भाषा राज्य भाषा के रूप में शामिल हैं। जिनमें असमी, बांगला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी, कोकंडी मैथली, मलयालयम्, मणीपुरी, मराठी, नेपाली, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलगु, उर्दू, शामिल है ।
ग्राम न्यायालय के किसी भी निर्णय दंडाज्ञा या आदेश के विरूद्ध अपील सेंशन न्यायालय में 30 दिन के अंदर होगी जिसे सेंशन न्यायालय 6 माह के अंदर निपटाएगी । सेंशन न्यायालय के निर्णय या विश्लेषण के विरूद्व अपील नहीं होगी रिट याचिका को वर्जित नहीं किया गया है ।
अपराधिक प्रकरण में यदि आरोपी ने अपराध स्वीकार किया है तो उस दोषसिद्धी के विरूद्ध अपील नहीं होगी । इसी प्रकार ग्राम न्यायालय एक हजार रूपये से कम का जुर्माना किया है तो उसके विरूद्ध अपील नहीं होगी ।
सिविल मामलो में अन्तर्वती आदेश को छोड़कर अंतिम आदेश के विरूद्ध जिला न्यायाधीश के न्यायालय में 30 दिन के अंदर अपील होगी, जिला न्यायालय 6 माह के अंदर सिविल अपील का निपटारा करेंगे । अपील न्यायालय के आदेश के विरूद्ध कोई अपील या पुनरीक्षण नहीं होगी । सिविल मामलों में यदि कोई आदेश पक्षकारो की सहमति से पारित किया गया है तो विवादित विषय वस्तु का मूल्य एक हजार रूपये से कम है तो वहां अपील नहीं होगी यदि विवादित विषय वस्तु का मूल्य पांच हजार रूपये से कम है तो विधि के प्रश्न पर अपील होगी ।
ग्राम न्यायालय पुलिस सहायता प्राप्त कर सकेगी अपने कृत्यों के निर्वहन के लिये राजस्व अधिकारियों, सरकारी सेवक की सहायता प्राप्त कर सकती हैं । न्यायाधिकारी और कर्मचारी को लोक सेवक समझा जावेगा, प्रत्येक 6 माह में एक बार ग्राम न्यायालय का वरिष्ठ अधिकारी निरीक्षण करेगें
इस प्रकार न्याय प्राणाली को मजबूत करने और जन स्तर तक न्याय पहुंचाने के लिये तथा समाज के व्यक्तियों को त्वरित और सस्ता सुलभ न्याय उपलब्ध हो सके इसके लिये ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 की स्थापना की गई है।
भारत 120 करोड़ वाला देश है । जहां पर अधिकांश आबादी गांव में
रहकर अपना जीवनयापन करती है । शिक्षा, अज्ञानता, परम्परावादी, रूढीवादी होने के कारण इनमें आपस में विवाद होते रहते हैं । प्राचीन परम्पराओं के चलते गांव के मामले गांव में निपट जाते थे । गाॅव में पंचायत व्यवस्था थी । पंच को परमेश्वर मानकर विवादो का निपटारा हो जाता था । पंच भी जुम्मन शेख और अलगू चैधरी के बीच में हिन्दु,मुस्लिम, सिख, इसाई का अंतर न रखते हुए जाति, धर्म, भाषा का भेदभाव भुलाकर न्यायोचित फैसला देते थे ।
इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुये भारत में ग्राम न्यायालय की स्थापना की गई । गांव के लोग गांव में ही न्याय प्राप्त कर सकें और उन्हें न्याय पाने के लिये अपनेे दिन भर का काम-धंधा छोड़कर शहर के चक्कर न काटने पड़े, नागरिकों को उनके घरों तक न्याय उपलब्ध हो । इस प्रयोजन से ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अंतर्गत ग्राम न्यायालय की स्थापना की गई है ।
ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 में इस बात का ध्यान रखा गया है कि किसी भी नागरिक को सामाजिक, आर्थिक या अन्य निःशक्त्ता के कारण न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित नहीं किया जाए । इसके लिए अधिनियम में विधिक सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है ।
ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अंतर्गत राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के बाद अधिसूचना द्वारा किसी जिले में माध्यमिक स्तर पर प्रत्येक पंचायत या पंचायतो के समूह या ग्राम पंचायतो के समूह के लिये एक ग्राम न्यायालय स्थापित करेगी । जिसका मुख्यालय उस पंचायत में स्थित होगा । प्रत्येक न्यायालय के लिये न्याय अधिकारी के रूप में प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी को नियुक्त किया जावेगा जिसमें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति स़्त्री तथा अन्य वर्ग के समुदाय के सदस्यों को बराबर का प्रतिनिधित्व दिया जावेगा ।
न्याय अधिकारी का कर्तव्य होगा कि वह अपनी अधिकारिता के अंतर्गत आने वाले ग्रामों के अंदर दौरा करें और ऐसे स्थान पर विचारण या कार्यवाही संचालित करे जिसे वह उस स्थान से निकट समझते हो जहां पक्षकार निवास करते हो ,ग्राम न्यायालय को मुख्यालय से बाहर चलित न्यायालय लगाने की भी शक्ति प्राप्त है । गाम न्यायालय को सिविल ओर दांडिक दोनो प्रकरणों की अधिकारिता प्रदान की गई है ।
ग्राम न्यायालय में अधिनियम की अनुसूची-1 के अनुसार दिये गये दांडिक प्रकरणों का एंव दूसरी अनुसूची में दिये गये सिविल प्रकरणों का निराकरण किया जावेगा ।
आपराधिक मामलो में भारतीय दण्ड संहिता 1860 के अंतर्गत निम्नलिखित अपराध ग्राम न्यायालय के क्षेत्राधिकार में रखे गये है । जिन्हें अनुसूची एक में दर्शाया गया है ।
1. ऐेसे अपराध जो मृत्यु दण्ड आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय नहीं है,
2. भारतीय दण्ड संिहता 1860 की धारा-379, धारा 380 या धारा-381के अधीन, चोरी, जहां चुराई गई सम्पत्ति का मूल्य बीस हजार रूपये से अधिक हीं है,
3. भारतीय दण्ड संिहता 1860 की धारा-411 के अधीन, चुराई गयी सम्पत्ति को प्राप्त करना या प्रतिधारित करना, जहां ऐसी सम्पत्ति का मूल्य बीस हजार रूपये से अधिक नहीं है,
4. भारतीय दण्ड संिहता 1860 की धारा-41 के अधीन, चुराई गई सम्पत्ति को छुपाने या उसका व्ययन करने में सहायता करना, जहां ऐसी सम्पत्ति का मूल्य बीस हजार रूपये से अधिक नहीं है,
5. भारतीय दण्ड संिहता 1860 की धारा-454 और धारा-456 के अधीन अपराध,
6. धारा-504 के अधीन शांति के भंग का प्रकोपन करने के आशय से अपमान और भारतीय दण्ड संिहता 1860 का 45 की धारा-506 के अधीन ऐसी अवधि के, जो दो वर्ष तक की हो सकेगी, कारावास से या जुर्माने से या क्षेत्रों से दण्डनीय आपराधिक अभित्रास,
7. पूर्वोक्त अपराधों में से कोई अपराध करने का प्रयत्न, जब ऐसा प्रयत्न अपराध हो,
इसके अलावा अन्य केन्द्रीय अधिनियमों के अधीन अपराध और अनुतोष संबंधि मामले रखे गये है जो निम्नलिखित हैः-
1. ऐसे किसी कार्य द्वारा गठित कोई अपराध, जिसकी बावत पशु अतिचार अधिनियम, 1871 कर 1 की धारा-20 के अधीन परिवाद किया जा सकेगा,
2. मजदूरी संदाय अधिनियम 1936 का 34,
3. न्यूनतम मजदरूी अधिनियम 1948 का 11,
4. सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 का,
5. दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973-1974 का 2 के अध्याय 9 के अधीन पत्नियों, बालकों और माता-पिता के भरण-पोषण के लिए आदेश,
6. बन्धित श्रम पद्धति उत्सादन अधिनियम, 1976 का 19,
7. समान पारिश्रमिक अधिनियम,1976 का 25,
8.. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 20058 का 43,
दांडिक मामलो का विचारण करते समय ग्राम न्यायालय दं0प्र0सं0 मेंदी गई संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुुसरण करेगें और संक्षिप्त प्रक्रिया अपनाते हुये मामलों का निपटारा करेगें। इस संबंध में सौदा अभिवाक् से संबंधित अध्याय 21क दं0प्र0सं0 के प्रावधान पूर्णतः ग्राम न्यायालय को लागू होगें । सरकार की तरफ से ग्राम न्यायालय में दांडिक मामलो का संचालन करने के लिये सहायक लोक अभियोजन अधिकारी कार्य कर सकेंगे और न्यायालय की इजाजत से परिवादी अपना अधिवक्ता नियुक्त कर सकते हैं ।
ग्राम न्यायालय विधिक सेवा प्रणिकरण के माध्यम से पक्षकारो को निशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध करायेगी और मामले के निर्णय की निःशुल्क प्रति तत्काल दोनो पक्षकारो को दी जावेगी । निर्णय विचारण समाप्ति के 15 दिन के अन्दर सुनाया जाएगा । ग्राम न्यायालय में भारतीय साक्ष्य अधिनियम कठोरता से लागू नहीं की जाएगी । साक्षियों की साक्ष्य विस्तार से अभिलिखित न कर संक्षेप में लिपिबद्ध की जाएगी । औपचारिक प्रकृृति की साक्ष्य को शपथ पत्र पर प्रकट किए जाने की अनुमति दी जाएगी।
ग्राम न्यायालय द्वारा प्रत्येक सिविल विवादो में विशेष प्रक्रिया का पालन किया जावेगा, 100/-कोर्टफीस के साथ दावा ग्राम न्यायालय में प्रस्तुत किया जावेगा, सिविल वाद का निराकरण 6 माह की अवधि के अंदर किया जावेगा और तर्क सुनने के ठीक 15 दिन के अंदर निर्णय पारित किया जावेगा, निर्णय की प्रतिलिपि तीन दिन के अंदर निःशुल्क दी जावेगी ग्राम न्यायालय द्वारा पारित निर्णय डिक्री का निष्पादन सिविल प्रक्रिया के तहत होगा लेकिन इसमें नैसर्गिक न्याय के सिद्वांतो का अनुरण किया जावेगा ।
ग्राम न्यायालय अनुसूची दो में दिये गये सिविल प्रकृति के मामले में सुनवाई करेगी ।
1- सिविल विवाद-क-सम्पत्ति क्रय करने का अधिकार, ख- आम चारागाहों का उपयोग, ग-सिंचाई सरणियों से जल लेने का विनियमन और समय,
2- सम्पत्ति विवाद-क-ग्राम और फार्म हाउस कब्जा, ख-जलसरणियां, ग- कुंए या नलकूप से जल लेने का अधिकार,
3- अन्य विवाद-
क- मजदूरी संदाय अधिनियम 1948 के अधीन दावे,
ख- न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के अधीन दावे,
ग- व्यापार संव्यवहार या साहूकारी से उद्भूत धन संबंधी वाद,
घ- भूमि पर कृषि में भागीदारी से उद्भूत विवाद,
ड- ग्राम पंचायतों के निवासियों द्वारा वन उपज के उपयोग के संबंध में विवाद,
केन्द्री और राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के धारा-14 की उपधारा-1 के अधीन अधिसूचित केन्द्रीय और राज्य अधिनियमों के अधीन दावे और विवाद ।
ग्राम न्यायालय प्रथम दो अवसर पर यह प्रयास करेगी कि प्रत्येक वाद या कार्यवाही समझौते से निपटाई जावे । पक्षकारो के बीच समझौता कराये जाने का प्रयास किया जायेगा । इसके लिये सुलाहदारों की नियुक्ति जिला मजिस्ट्ेट के परामर्श से की जावेगी ।
ग्राम न्यायालय की भाषा अंग्रेजी से भिन्न राज्य भाषाओं में से एक राज्य भाषा होगी ,भारत के संविधान की अनुसूची-8 में 22 भाषा राज्य भाषा के रूप में शामिल हैं। जिनमें असमी, बांगला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी, कोकंडी मैथली, मलयालयम्, मणीपुरी, मराठी, नेपाली, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलगु, उर्दू, शामिल है ।
ग्राम न्यायालय के किसी भी निर्णय दंडाज्ञा या आदेश के विरूद्ध अपील सेंशन न्यायालय में 30 दिन के अंदर होगी जिसे सेंशन न्यायालय 6 माह के अंदर निपटाएगी । सेंशन न्यायालय के निर्णय या विश्लेषण के विरूद्व अपील नहीं होगी रिट याचिका को वर्जित नहीं किया गया है ।
अपराधिक प्रकरण में यदि आरोपी ने अपराध स्वीकार किया है तो उस दोषसिद्धी के विरूद्ध अपील नहीं होगी । इसी प्रकार ग्राम न्यायालय एक हजार रूपये से कम का जुर्माना किया है तो उसके विरूद्ध अपील नहीं होगी ।
सिविल मामलो में अन्तर्वती आदेश को छोड़कर अंतिम आदेश के विरूद्ध जिला न्यायाधीश के न्यायालय में 30 दिन के अंदर अपील होगी, जिला न्यायालय 6 माह के अंदर सिविल अपील का निपटारा करेंगे । अपील न्यायालय के आदेश के विरूद्ध कोई अपील या पुनरीक्षण नहीं होगी । सिविल मामलों में यदि कोई आदेश पक्षकारो की सहमति से पारित किया गया है तो विवादित विषय वस्तु का मूल्य एक हजार रूपये से कम है तो वहां अपील नहीं होगी यदि विवादित विषय वस्तु का मूल्य पांच हजार रूपये से कम है तो विधि के प्रश्न पर अपील होगी ।
ग्राम न्यायालय पुलिस सहायता प्राप्त कर सकेगी अपने कृत्यों के निर्वहन के लिये राजस्व अधिकारियों, सरकारी सेवक की सहायता प्राप्त कर सकती हैं । न्यायाधिकारी और कर्मचारी को लोक सेवक समझा जावेगा, प्रत्येक 6 माह में एक बार ग्राम न्यायालय का वरिष्ठ अधिकारी निरीक्षण करेगें
इस प्रकार न्याय प्राणाली को मजबूत करने और जन स्तर तक न्याय पहुंचाने के लिये तथा समाज के व्यक्तियों को त्वरित और सस्ता सुलभ न्याय उपलब्ध हो सके इसके लिये ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 की स्थापना की गई है।
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