घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 umesh

                घरेलू हिंसा
        हमारा भारत सदियों से पुरूष प्रधान समाज रहा है । जहां पर महिलाओं को अनउपयोगी मानते हुए घर और परिवार में पैरो की जूती मानते हुये हमेशा से प्रताडि़त किया गया है और उन्हे ं  घर के अंदर रहकर कामकाज करने वाली और परिवार, बच्चों का भरण-पोषण करने वाली वस्तु माना गया है और यही कारण है कि इनके साथ घर के अंदर घरेलू ंिहंसा की जाती है जिससे घर के आस-पास रहने वाले और उनके परिवार के सदस्यों को ज्ञान नहीं होता है । ऐसी घरेलू हिंसा से निपटने के लिये जो कुटुम्ब के भीतर होने वाली जो ंिहंसा से पीडि़त है। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम  2005 बनाया गया है जो 26 अक्टूबर 2006 से लागू  किया गया है ।

        इस अधिनियम की धारा 3 में घरेलू हिंसा को परिभाषित किया गया है जिसके अंतर्गत अनावेदक का कोई कार्य या लोप, आचरण घरेलू हिंसा घटित करेगा जिनसे व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ, सुरक्षा जीवन को हानि पहुंचती है तो क्षति पहुंचाने वाला संकट उत्पन्न करता है तो उसके विरूद्ध शारीरिक, लैंगिक मौखिक रूप से उत्पीडि़त करना शामिल है । 

किसी से दहेज व अन्य संपत्ति की मांग करने पर उसकी पूर्ति के लिये उत्पीडि़त करना घरेलू ंिहसा कहलायेगी ।
    1-    शारीरिक दुरूपयोग:- से ऐसा कोई कार्य या आचरण अभिप्रेत है जो ऐसी प्रकृति का है जो व्यथित व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा अपहानि या उसके जीवन अंग स्वास्थ को खतरा  कारित करता हे या उसके अधिक स्वास्थ या विकास का हाॅस होता है और इसके अंतर्गत हमला,आप0 अभित्रास और आपराधिक बल भी है ।       

    2-    लैंगिक दुरूपयोग:-  से लैंकिग प्रकृति का कोई आचरण ,अभिप्रेत है जो महिला की गरिमा का दुरूपयोग ,अपमान, त्रिस्कार, करता है या उसका अन्यथा अतिक्रमण करता है ।

    3-    मौखिक और भावनात्मक दुरूपयोग के अन्तर्गत निम्नलिखित है-

    क-    अपमान, उपहास, तिरस्कार गाली और विशेष रूप से संतान या नर बालक के न होने के संबंध में अपमान या उपहास और
    ख-    किसी ऐेसे व्यक्ति को शारीरिक पीडा कारित करने की लगातार धमकिया देना, जिसमें व्यथित व्यक्ति हितबद्ध है,
    4-    आर्थिक दुरूपयोग के अंतर्गत निम्नलिखित है ।

    क-    ऐसे सभी या किन्हीं आर्थिक या वित्तीय संसाधनों जिनके लिए व्यथित व्यक्ति किसी विधि या रूढि के अधीन
 हकदार है, चाहे वे किसी न्यायालय के किसी आदेश के अधीन या अन्यथा संदेय हो या जिनकी व्यथित व्यक्ति किसी आवश्यकता के लिए जिसके अंतर्गत व्यथित व्यक्ति और उसके बालकों यदि कोई हों, के घरेलू आवश्यकताएं भी हैं, किन्तु जो उन तक सीमित नहीं है, स्त्रीधन, व्यथित द्वारा संयुक्त रूप से या पृथकतः स्वामित्व वाली सम्पत्ति, साझी गृहस्थी और उसके रखरखाव से संबंधित भाटक के संदाय, से वंचित करना,

    ख-    गृहस्थी की चीजबस्त का व्ययन, आस्तियों का चाहे वे जंगम हो या स्थावर, मूल्यवान वस्तुओं, शेयरों , प्रतिभूतियों बंधपत्रों और इसके सदृश या अन्य सम्पत्ति का कोई अन्य संक्रामण, जिसमें व्यथित व्यक्ति काई हित रखता है या घरेलू नातेदारी के आधार पर उनके प्रयोग के लिए हकदार है या जिसकी व्यथित व्यक्ति  या उसकी संतानो द्वारा युक्तियुक्त रूप से अपेक्षा की जा सकती है या उसका स्त्रीधन या व्यथित व्यक्ति द्वारा संयुक्तः या पृथकतः धारित करने वाली कोई अन्य संपत्ति और

    ग-    ऐसे संसाधनों या सुविधाओं तक जिनका घरेलू नातेदारी के आधार पर कोई व्यथित व्यक्ति, उपयोग या उपभोग करने के लिए हकदार है, जिसके अंतर्गत साझी गृहस्थी तक पहंुच भी है , लगातार पहंुच के लिए प्रतिषेध या निर्बन्धन ।
    स्पष्टीकरण 2-यह अवधारित करने के प्रयोजन के लिए कि क्या प्रत्यर्थी का कोई कार्य, लोप या कुछ करना या आचरण इस धारा के अधीन ’’घरेलू हिंसा’’ का गठन करता है, मामले के सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार किया जाएगा ।

        घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत धारा  12 के अंतर्गत मजिस्ट्ेट को आवेदन दिये जाने पर या संरक्षण अधिकारी की रिपोर्ट प्राप्त होने पर न्यायालय द्वारा एक आदेश जारी किया जावेगा जो अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत संरक्षण आदेश जारी किया जावेगा जिसमें घरेलू हिंसा के कार्यो को रोकने के आदेश दिये जावेगें तथा आदेश धारा 19 के अंतर्गत पारित किया जा सकता है ।

   





















   

कोई टिप्पणी नहीं:

भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha

umesh gupta