घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा यानि ऐसा कोई कार्य या हरकत जो किसी पीडित महिला एवं बच्चों (18 वर्ष से कम उम्र के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा जीवन को खतरा/संकट की स्थिति, आर्थिक नुकसान, क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे दुखी व अपमानित होते हों। इसके तहत् शारीरिक हिंसा, मौखिक व भावनात्मक हिंसा, लैंगिग व आर्थिक हिंसा या धमकी देना आदि शामिल है।
पीडित महिला कौन है ?
विवाहित, अविवाहित के अलावा अन्य रिश्तों में रह रही विवाहित, विधवा, माॅ, बहन, बेटी, बहूंॅ, शादी के बगैर साथ रह रही महिला या दूसरी पत्नी के रूप में रह रही या रह चुकी महिला। धोके से किया गया विवाह/अवैध विवाह वाली महिला का संरक्षण करता है।
शिकायत किसके खिलाफ करा सकते हैं ?
किसी भी व्यस्क पुरुष सदस्य के खिलाफ, जिसके साथ महिला बच्चे का घरेलू रिश्ता है या था, के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
इस कानून की प्रकृति एवं विशेषता
1 यह एक दिवानी कानून है। इस कानून में दोषी को सजा दिलाने के बजाय पीडि़त के संरक्षण एवं बचाव की बात कही गई है। न्यायालय का आदेश न मानने पर दोषी व्यक्ति को एक साल तक की अवधि की सजा या रुपये 20 हजार तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
2 इस कानून के तहत् घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए न्यायाधीश, न्यायालय को आवेदन प्राप्त होने के 03 दिन के भीतर पहली सुनवाई एवं बचावकारी आदेश दे सकते हैं।
3 घरेलू रिश्तों में रहते हुए भी आपत्तिजनक व्यवहारों को सुधारने का पूरा मौका देता है।
4 महिलायें सर छुपाने के लिए एक घर की चाह में बहुत से अनचाहे समझौते करती रहती हैं। यह कानून महिलाओं बच्चों को अपने घर में स्वतंत्र व सुरक्षित रहने का अधिकार देता है, चाहे उस घर पर उनका मालिकाना हक हो या न हो।
5 न्यायालय प्रत्येक आवेदन की प्रथम सुनवाई की तारीख से 60 दिनों के अन्दर निपटारा करने का प्रयास करेगा।
6इस कानून के अनुसार महिला के साथ हुई घरेलू हिंसा के साक्ष्य के प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है। महिला द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों एवं बयानों को ही विश्वसनीय माना जावेगा तथा आधार पर ही न्यायाधीश आदेश दे सकते हैं कि हिंसा रोकी जावे और महिला को संरक्षण प्रदान किया जावे।
7 इस धारा-32 (2) पीडि़ता को, न्यायालय, संबंधित सभी आदेशों की प्रतियां निःशुल्क प्रदाय की जाएगी।
8 यदि न्यायाधीश ऐसा समझते हैं कि परिस्थितियों के कारण मामले की सुनवाई बंद कमरे में किया जाना बेहतर और आवश्यक है तो या पीडि़त पक्ष ऐसी मांग करे तो मामले की कार्यवाही बंद कमरे में की जा सकेगी।
9 यदि न्यायाधीश को पीडि़त व्यक्ति या दोषी से आवेदन प्राप्त होन पर यह समाधान हो जाता है कि परिस्थितियों में सुधार हुआ है तो पूर्व आदेश में परिवर्तन, संशोधन या निरस्त कर सकते हैं।
10 पीडि़ता के पूर्व में चल रहे अदालत के केस के अतिरिक्त भी इस कानून की धारा 18 से 22 तक संरक्षण एवं सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
11 घरेलू हिंसा के केस के साथ अन्य कानून अंतर्गत कार्यवाही भी एक साथ चल सकती है।
12 महिला घटना स्थल या वर्तमान में जहंा निवासरत है, वहां केस दर्ज करा सकती है। पीडि़ता जहंा उचित समझे उस क्षेत्र के मजिस्टेªट को आवेदन दे सकती है।
इस कानून के तहत् मिलने वाली राहत
1 परामर्श - न्यायाधीश यह समझता है कि नियम के तहत किसी पीडि़त व हिंसाकर्ता को अकेले या संयुक्त रूप से सेवा प्रदाता (पुलिस परिवार परामर्श केन्द्र) के किसी सदस्य को परामर्श देने की पात्रता और अनुभव रखते हों से परामर्श लेने का निर्देश दे सकते हैं। परामर्श में हुए समझौते की कार्यवाही अनुसार मजिस्टे््र्रट संरक्षण एवं सहायता के आदेश जारी कर सकते हैं।
2 संरक्षण आदेश (धारा 18) - यदि न्यायाधीश को लगता है कि घरेलू हिंसा हुई है और पीडि़त व्यक्ति को हिंसाकर्ता से आगे भी खतरा है, ऐसी स्थिति में संरक्षण हेतु निम्नलिखित व्यवहारों से रोकने के आदेश हिंसाकर्ता को देगाः-
अ- घरेलू हिंसा करने, हिंसा में सहयोग करने या प्रेरित करने से रोकना। पीडि़त द्वारा उपयोग किए जाने वाले घर में प्रवेश पर रोक, अगर पीडि़त की रिपोर्ट से जज को ऐसा लगता है कि पीडि़त को हिंसाकर्ता से आगे भी खतरा है, तो हिंसाकर्ता (पुरुष) को घर के बारह रहने का ओदश भी दे सकता है या घर के जिस भाग में पीडि़त व्यक्ति का निवास है या विद्यालय/महाविद्यालय में जाने से मना कर सकता है।
ब- किसी भी पुरुष से व्यक्तिगत, मौखिक, लिखित टेलीफोन या अन्य इलेक्ट्राॅनिक माध्यम से सम्पर्क करने से मना करना।
स- पीडि़त पर आश्रित व्यक्ति बच्चों या सहायता करने वाले व्यक्तियों पर हिंसा से रोकना। संयुक्त या
द- जिस संपत्ति पर पीडि़त का हक बनता है ऐसी संपत्तियों का लेन-देन या संचालन पर रोक। स्त्री धन, आभूषण, कपड़ों इत्यादि पर कब्जा देना।
क- आपसी विवाह के संबंध में बात करने या उनकी पसंद के किसी व्यक्ति से विवाह के लिए मजबूर न करना।
ख- दहेज की मांग के लिए परेशान करने से रोकना।
ग- न्यायालय के आदेश के बिना बैंक में संधारित लाॅकर्स एवं संयुक्त बैंक खातों से राशि, सामग्री नहींे निकाल सकेगा।
घ- पीडि़ता और उसके बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई अन्य उपाय।
3- निवास का आदेश (धारा 19) - पीडित का साझी गृहस्थी में रहना महिला का अधिकार है, चाहे उसमें उसका मालिकाना हक न हो। अगर जरूरत महसूस हो तो आदालत आरोपी को यह आदेश दे सकती है कि पीडिता जैसी सुविधा में साझे रूप में निवास कर रही थी वैसा ही किराए का घर उसे रहने के लिए उपलब्ध करावें। पीडिता एवं उसके बच्चे घर में या घर के किसी भाग में निवास करते हैं, या कर चुके हैं, तो उसे घर के उस भाग में रहने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। हिंसाकर्ता उस मकान को न तो बेच सकता है न उस पर ऋण ले सकता है न ही किसी के नाम से हस्तांतरित कर सकता है।
4- बच्चों की अभिरक्षा का आदेश (धारा 21) - न्यायालय पीडि़ता की मांग पर उसे उसके बच्चों को अभिरक्षा में देने का अस्थायी आदेश दे सकता है। पीडि़ता की रिपार्ट से न्यायाधीश यह समझते हैं कि हिंसाकर्ता के बच्चे से मिलने/भंेट करने से खतरा उत्पन्न हो सकता है तो वह हिंसाकर्ता को कहीं भी बच्चों से नहीं मिलने का ओदश दे सकते हैं।
5- आर्थिक राहत एवं क्षतिपूर्ति का आदेश - पीडिता और उसके बच्चों का भरण-पोषण, चिकित्सीय खर्च, कपड़े, हिंसा की वजह से हुए किसी सम्पत्ति का नुकसान या हटाए जाने के कारण हुए नुकसान का मुआवजा देने का ओदश देगा। अदालत मानसिक यातना और भावनात्मक पीड़ा जो रिस्पाडेंट द्वारा घरेलू हिंसा के कृत्याद्वार पहुंचायी गई है कि क्षतिपूर्ति और जीविका की क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए दोषी को आदेश दे सकेगी।
6-आश्रय गृह - सुरक्षा की दृष्टि से या अन्य कारणों से यदि पीडिता अपने परिवार के साथ रहना नहीं चाहती है, तो ऐसी स्थिति में राज्य शासन निःशुल्क आश्रय की सुविधा उपलब्ध करायेगा।
7- चिकित्सा सुविधा - शासन द्वारा अधिकृत चिकित्सा सुविधा प्रदाता पीडि़ता की प्रार्थना/आवेदन पर चिकित्सा सहायता उपलब्ध करायेगा। घरेलू हिंसा की रिपोर्ट न दर्ज होने पर भी चिकित्सा सहायता या परीक्षण के लिए चिकित्सक मना नहीं करेगा और उसकी रिपोर्ट स्थानीय पुलिस थाना एवं संरक्षण अधिकारी (परियोजना अधिकारी, महिला एवं बाल विकास) को भेजेगा।
घरेलू हिंसा यानि ऐसा कोई कार्य या हरकत जो किसी पीडित महिला एवं बच्चों (18 वर्ष से कम उम्र के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा जीवन को खतरा/संकट की स्थिति, आर्थिक नुकसान, क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे दुखी व अपमानित होते हों। इसके तहत् शारीरिक हिंसा, मौखिक व भावनात्मक हिंसा, लैंगिग व आर्थिक हिंसा या धमकी देना आदि शामिल है।
पीडित महिला कौन है ?
विवाहित, अविवाहित के अलावा अन्य रिश्तों में रह रही विवाहित, विधवा, माॅ, बहन, बेटी, बहूंॅ, शादी के बगैर साथ रह रही महिला या दूसरी पत्नी के रूप में रह रही या रह चुकी महिला। धोके से किया गया विवाह/अवैध विवाह वाली महिला का संरक्षण करता है।
शिकायत किसके खिलाफ करा सकते हैं ?
किसी भी व्यस्क पुरुष सदस्य के खिलाफ, जिसके साथ महिला बच्चे का घरेलू रिश्ता है या था, के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
इस कानून की प्रकृति एवं विशेषता
1 यह एक दिवानी कानून है। इस कानून में दोषी को सजा दिलाने के बजाय पीडि़त के संरक्षण एवं बचाव की बात कही गई है। न्यायालय का आदेश न मानने पर दोषी व्यक्ति को एक साल तक की अवधि की सजा या रुपये 20 हजार तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
2 इस कानून के तहत् घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए न्यायाधीश, न्यायालय को आवेदन प्राप्त होने के 03 दिन के भीतर पहली सुनवाई एवं बचावकारी आदेश दे सकते हैं।
3 घरेलू रिश्तों में रहते हुए भी आपत्तिजनक व्यवहारों को सुधारने का पूरा मौका देता है।
4 महिलायें सर छुपाने के लिए एक घर की चाह में बहुत से अनचाहे समझौते करती रहती हैं। यह कानून महिलाओं बच्चों को अपने घर में स्वतंत्र व सुरक्षित रहने का अधिकार देता है, चाहे उस घर पर उनका मालिकाना हक हो या न हो।
5 न्यायालय प्रत्येक आवेदन की प्रथम सुनवाई की तारीख से 60 दिनों के अन्दर निपटारा करने का प्रयास करेगा।
6इस कानून के अनुसार महिला के साथ हुई घरेलू हिंसा के साक्ष्य के प्रमाण प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है। महिला द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों एवं बयानों को ही विश्वसनीय माना जावेगा तथा आधार पर ही न्यायाधीश आदेश दे सकते हैं कि हिंसा रोकी जावे और महिला को संरक्षण प्रदान किया जावे।
7 इस धारा-32 (2) पीडि़ता को, न्यायालय, संबंधित सभी आदेशों की प्रतियां निःशुल्क प्रदाय की जाएगी।
8 यदि न्यायाधीश ऐसा समझते हैं कि परिस्थितियों के कारण मामले की सुनवाई बंद कमरे में किया जाना बेहतर और आवश्यक है तो या पीडि़त पक्ष ऐसी मांग करे तो मामले की कार्यवाही बंद कमरे में की जा सकेगी।
9 यदि न्यायाधीश को पीडि़त व्यक्ति या दोषी से आवेदन प्राप्त होन पर यह समाधान हो जाता है कि परिस्थितियों में सुधार हुआ है तो पूर्व आदेश में परिवर्तन, संशोधन या निरस्त कर सकते हैं।
10 पीडि़ता के पूर्व में चल रहे अदालत के केस के अतिरिक्त भी इस कानून की धारा 18 से 22 तक संरक्षण एवं सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
11 घरेलू हिंसा के केस के साथ अन्य कानून अंतर्गत कार्यवाही भी एक साथ चल सकती है।
12 महिला घटना स्थल या वर्तमान में जहंा निवासरत है, वहां केस दर्ज करा सकती है। पीडि़ता जहंा उचित समझे उस क्षेत्र के मजिस्टेªट को आवेदन दे सकती है।
इस कानून के तहत् मिलने वाली राहत
1 परामर्श - न्यायाधीश यह समझता है कि नियम के तहत किसी पीडि़त व हिंसाकर्ता को अकेले या संयुक्त रूप से सेवा प्रदाता (पुलिस परिवार परामर्श केन्द्र) के किसी सदस्य को परामर्श देने की पात्रता और अनुभव रखते हों से परामर्श लेने का निर्देश दे सकते हैं। परामर्श में हुए समझौते की कार्यवाही अनुसार मजिस्टे््र्रट संरक्षण एवं सहायता के आदेश जारी कर सकते हैं।
2 संरक्षण आदेश (धारा 18) - यदि न्यायाधीश को लगता है कि घरेलू हिंसा हुई है और पीडि़त व्यक्ति को हिंसाकर्ता से आगे भी खतरा है, ऐसी स्थिति में संरक्षण हेतु निम्नलिखित व्यवहारों से रोकने के आदेश हिंसाकर्ता को देगाः-
अ- घरेलू हिंसा करने, हिंसा में सहयोग करने या प्रेरित करने से रोकना। पीडि़त द्वारा उपयोग किए जाने वाले घर में प्रवेश पर रोक, अगर पीडि़त की रिपोर्ट से जज को ऐसा लगता है कि पीडि़त को हिंसाकर्ता से आगे भी खतरा है, तो हिंसाकर्ता (पुरुष) को घर के बारह रहने का ओदश भी दे सकता है या घर के जिस भाग में पीडि़त व्यक्ति का निवास है या विद्यालय/महाविद्यालय में जाने से मना कर सकता है।
ब- किसी भी पुरुष से व्यक्तिगत, मौखिक, लिखित टेलीफोन या अन्य इलेक्ट्राॅनिक माध्यम से सम्पर्क करने से मना करना।
स- पीडि़त पर आश्रित व्यक्ति बच्चों या सहायता करने वाले व्यक्तियों पर हिंसा से रोकना। संयुक्त या
द- जिस संपत्ति पर पीडि़त का हक बनता है ऐसी संपत्तियों का लेन-देन या संचालन पर रोक। स्त्री धन, आभूषण, कपड़ों इत्यादि पर कब्जा देना।
क- आपसी विवाह के संबंध में बात करने या उनकी पसंद के किसी व्यक्ति से विवाह के लिए मजबूर न करना।
ख- दहेज की मांग के लिए परेशान करने से रोकना।
ग- न्यायालय के आदेश के बिना बैंक में संधारित लाॅकर्स एवं संयुक्त बैंक खातों से राशि, सामग्री नहींे निकाल सकेगा।
घ- पीडि़ता और उसके बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई अन्य उपाय।
3- निवास का आदेश (धारा 19) - पीडित का साझी गृहस्थी में रहना महिला का अधिकार है, चाहे उसमें उसका मालिकाना हक न हो। अगर जरूरत महसूस हो तो आदालत आरोपी को यह आदेश दे सकती है कि पीडिता जैसी सुविधा में साझे रूप में निवास कर रही थी वैसा ही किराए का घर उसे रहने के लिए उपलब्ध करावें। पीडिता एवं उसके बच्चे घर में या घर के किसी भाग में निवास करते हैं, या कर चुके हैं, तो उसे घर के उस भाग में रहने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। हिंसाकर्ता उस मकान को न तो बेच सकता है न उस पर ऋण ले सकता है न ही किसी के नाम से हस्तांतरित कर सकता है।
4- बच्चों की अभिरक्षा का आदेश (धारा 21) - न्यायालय पीडि़ता की मांग पर उसे उसके बच्चों को अभिरक्षा में देने का अस्थायी आदेश दे सकता है। पीडि़ता की रिपार्ट से न्यायाधीश यह समझते हैं कि हिंसाकर्ता के बच्चे से मिलने/भंेट करने से खतरा उत्पन्न हो सकता है तो वह हिंसाकर्ता को कहीं भी बच्चों से नहीं मिलने का ओदश दे सकते हैं।
5- आर्थिक राहत एवं क्षतिपूर्ति का आदेश - पीडिता और उसके बच्चों का भरण-पोषण, चिकित्सीय खर्च, कपड़े, हिंसा की वजह से हुए किसी सम्पत्ति का नुकसान या हटाए जाने के कारण हुए नुकसान का मुआवजा देने का ओदश देगा। अदालत मानसिक यातना और भावनात्मक पीड़ा जो रिस्पाडेंट द्वारा घरेलू हिंसा के कृत्याद्वार पहुंचायी गई है कि क्षतिपूर्ति और जीविका की क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए दोषी को आदेश दे सकेगी।
6-आश्रय गृह - सुरक्षा की दृष्टि से या अन्य कारणों से यदि पीडिता अपने परिवार के साथ रहना नहीं चाहती है, तो ऐसी स्थिति में राज्य शासन निःशुल्क आश्रय की सुविधा उपलब्ध करायेगा।
7- चिकित्सा सुविधा - शासन द्वारा अधिकृत चिकित्सा सुविधा प्रदाता पीडि़ता की प्रार्थना/आवेदन पर चिकित्सा सहायता उपलब्ध करायेगा। घरेलू हिंसा की रिपोर्ट न दर्ज होने पर भी चिकित्सा सहायता या परीक्षण के लिए चिकित्सक मना नहीं करेगा और उसकी रिपोर्ट स्थानीय पुलिस थाना एवं संरक्षण अधिकारी (परियोजना अधिकारी, महिला एवं बाल विकास) को भेजेगा।
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