आदेष 41 नियम 27 (1)(ए)

भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha
                                             आदेष 41 नियम 27 (1)(ए)
1.....दुर्गाप्रसाद विरूद्ध कलेक्टर, 1996 (5) एस.सी.सी. 618

2... उत्तर प्रदेश राज्य विरूद्ध अमरसिंह आदि, 1997 (1) एस.सी.सी. 734 

 राजस्व अभिलेखों में अथवा जमाबंदी पंजी में स्वत्व विषयक् की जाने वाली प्रविष्टिया मूलतः राजस्व संग्रह के उद्देश्य से की जाती है तथा न तो उनके आधार पर स्वत्व अर्जित किया जा सकता है और न ही ऐसी प्रविष्टिया स्वत्व का हरण कर सकती है अर्थात स्वत्व का अर्जन, अंतरण व  हरण संपत्ति अंतरण अधिनियम अथवा म.प्र.भू-राजस्व संहिता 1959 में विहित प्राविधानों  के अनुसार ही संभव है, अन्यथा नहीं ।

3....नेषनल इंष्योरेंस कंपनी विरूद्ध श्रीमती सूरज 1996(2) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 231 में यह प्रतिपादन किया गया है कि जहा महत्वपूर्ण प्रलेख पक्षकार की संवेदनाहीन उपेक्षा के कारण न्यायालय के समक्ष समय पर प्रस्तुत नहीं किये गये, वहा ऐसे प्रलेखों को साक्ष्य में ग्रहण कर ऐसी उपेक्षा को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिये और न ही ऐसी दषा में अपीलार्थी को कमी दूर करना अनुज्ञात किया जा सकता है। 

4......लक्ष्मीनारायण विरूद्ध मोहरसिंह आदि 1989 जे.एल.जे. -271  जहा लोक प्रलेखों की प्रमाणित प्रतिया असावधानी के कारण विचारण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई, वहा अपील में उन्हें ग्रहण करने से इंकार करना उचित है।

5.......अषोक कुमार विरूद्ध लक्ष्मी किराना स्टोर 1996 (2) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 169 में मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों में ’निर्णायक प्रलेखों’ की प्रमाणित प्रतिलिपि को अभिलेख पर लिया जाना उचित माना गया।

6......रामगोपाल विरूद्ध एम.पी.एस.आर.टी.सी 1994(2) एम.पी.डब्ल्यू.एन.-165 में ऐसे सुसंगत दस्तावेजों को, जो विचारण न्यायालय में उपलब्ध नहीं थे, साक्ष्य में ग्रहण करने की अनुमति दी गई। 

7.....सुंदरबाई विरूद्ध मूलचंद अग्रवाल 1985 एम.पी.आर.सी.जे.-171 के मामले में यह ठहराया गया कि जब पूर्व में साक्ष्य की खोज नहीं हो सकी तथा साक्ष्य निर्णायक प्रकृति का है तब उसे ग्राह्य किया जा सकता है। 

8......विजय किराना स्टोर्स विरूद्ध मे.जनता कोल डिपो 1993(1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 206 में यह प्रतिपादित किया गया कि यदि सम्यक् प्रयासों के बावजूद प्रलेख प्रस्तुत नहीं किया जा सका है तो उसे आदेष 41 नियम 27 (1)(ए) के अंतर्गत ग्रहण किया जा सकता है। 

9......श्यामगोपाल बिंदाल विरूद्ध लैण्ड एक्यूजिषन अधिकारी ए.आई.आर. 2010 एस.सी. 690 में वादी की मृत्यु हो जाने के कारण स्वत्व संबंधी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किये जा सके थे अतः अपील में उन्हें स्वीकार्य ठहराया गया।

        उक्त न्याय दृष्टांतों के परिप्रेक्ष्य में यह विधिक स्थिति उभरकर सामरने आती है कि सम्यक् तत्परता के बावजूद प्रलेख उपलब्ध न होने अथवा प्रष्नगत प्रलेख के निर्णायक स्वरूप का होने की दषा में ही उसे अपील के प्रक्रम पर साक्ष्य में ग्रहण किया जा सकता है।

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umesh gupta