भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha
प्रतिकूल आधिपत्य
1........प्रतिकूल आधिपत्य से सम्बन्धित यह विधिक स्थिति ध्यान देने योग्य है कि प्रतिकूल आधिपत्य का दावा करने वाले व्यक्ति को यह प्रमाणित करना चाहिये कि वास्तविक स्वामी के विरूद्ध आधिपत्य स्वतंत्र स्वामी के रूप में प्रतिकूलतः दर्षाया गया।
सहस्वामियों के मध्य सामान्यतया एक दूसरे के विरूद्ध प्रतिकूल आधिपत्य नहीं हो सकता है क्योंकि विभाजन न होने की दषा में प्रत्येक सहस्वामी द्वारा धारित आधिपत्य अन्य सहस्वामियों के लिये भी होता है।
मात्र लम्बे समय तक एकल आधिपत्य प्रतिकूल आधिपत्य का परिचायक नहीं है।
2...... नंदकिषोर विरूद्ध रमेषचंद्र एवं एक अन्य 2003(4)
एम.पी.एच.टी.-114।
3....... अनूप सिंह आदि विरूद्ध शोभाजी 2002 राजस्व निर्णय 34
4... पी.लक्ष्मी रेड्डी विरूद्ध एल.लक्ष्मी रेडड्डी ए.आई.आर.1957 सुप्रीम कोर्ट -314
5..... दर्षनसिंह विरूद्ध गुज्जरसिंह 2002(1) ए.एन.जे.-सुप्रीम कोर्ट 370
सहस्वामियों के बीच, स्पष्ट विरोधी आधिपत्य के दावे के साथ-साथ ’’वनेजमत’’ एवं एकल आधिपत्य का प्रमाण होना चाहिये क्योंकि उपधारणा यह है कि एक सहस्वामी का आधिपत्य दूसरे सहस्वामी का आधिपत्य है
7.......... जहा तक प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर स्वत्व अर्जन का प्रष्न है, प्रतिकूल आधिपत्य के लिये यह प्रमाणित किया जाना आवष्यक है कि संबंधित व्यक्ति ने खुले तौर पर सम्पत्ति के वास्तविक स्वामी के विरूद्ध अपने आपको स्वामी अभिकथित करते हुये अधिनियमित अवधि तक निरंतर सम्पत्ति का उपभोग किया। जहा आधिपत्य उक्त प्रकृति का नहीं है, वहादीर्घ अवधि का होने के बावजूद उसे प्रतिकूल आधिपत्य नहीं माना जा सकता है।
8..... देवा विरूद्ध सज्जन कुमार (2003) 7 एस.सी.सी.-481,
9वीरेन्द्र नाथ विरूद्ध मो.जमील, (2004) 6 एस.सी.सी.-140,
10... रामसिंह विरूद्ध रामचंद्र, 2004 राजस्व निर्णय-72
11...... टी.अंजनप्पा विरूद्ध सोमलिंगाप्पा (2006) 7 एस.सी.सी.-570
टी.अंजनप्पा के मामले में यह प्रतिपादित किया गया है कि जहा प्रतिकूल आधिपत्य का दावा करने वाले को यही विदित नहीं है कि वास्तविक भू-स्वामी कौन है, वहा प्रतिकूल आधिपत्य का प्रष्न ही पैदा नहीं होता है।
12...... प्रतिकूल आधिपत्य के विषय में यह विधि सुस्थापित है कि प्रतिकूल आधिपत्य स्थापित करने के लिये स्पष्ट रूप से यह अभिवचन किया जाना चाहिये कि ऐसा आधिपत्य कब प्रारम्भ हुआ। मूल स्वामी के विरूद्ध खुले रूप से अधिनियमित अवधि तक निरंतर बेरोकटोक आधिपत्य स्थापित किये जाने की दषा में ही प्रतिकूल आधित्य के आधार पर स्वत्व का सृजन हो सकता है,
13.... अन्ना साहेब विरूद्ध बलवंत ए.आई.आर.1995-एस.सी.-895
14..... एम.सी. शर्मा विरूद्ध राजकुमारी शर्मा ए.आई.आर. 1996-एस.सी.-869.
15....प्रतिकूल आधिपत्य के द्वारा स्वत्व अर्जन के लिये यह प्रमाणित किया जाना आवष्यक है कि आधिपत्य सजग, चैतन्य, वास्तविक स्वामी की जानकारी में तथा खुले तौर पर उसके स्वत्वों को चुनौती देते हुये किया गया। बिना यह जाने की वास्तव में जिस भूमि पर आधिपत्य है, वह भूमि किसके स्वत्व स्वामित्व की है, एक पक्ष का अचेतन आधिपत्य उसे ऐसी भूमि के संबंध में प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर स्वत्व अर्जन नहीं करा सकता है।
16.. देवा विरूद्ध सज्जन कुमार, (2003) 7 एस.सी.सी. 481 सुसंगत एवं अवलोकनीय है, जिसमें प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर स्वत्व अर्जन की स्थिति के विषय में सुसंगत विधिक स्थिति का विस्तृत उल्लेख किया गया है।
प्रतिकूल आधिपत्य
1........प्रतिकूल आधिपत्य से सम्बन्धित यह विधिक स्थिति ध्यान देने योग्य है कि प्रतिकूल आधिपत्य का दावा करने वाले व्यक्ति को यह प्रमाणित करना चाहिये कि वास्तविक स्वामी के विरूद्ध आधिपत्य स्वतंत्र स्वामी के रूप में प्रतिकूलतः दर्षाया गया।
सहस्वामियों के मध्य सामान्यतया एक दूसरे के विरूद्ध प्रतिकूल आधिपत्य नहीं हो सकता है क्योंकि विभाजन न होने की दषा में प्रत्येक सहस्वामी द्वारा धारित आधिपत्य अन्य सहस्वामियों के लिये भी होता है।
मात्र लम्बे समय तक एकल आधिपत्य प्रतिकूल आधिपत्य का परिचायक नहीं है।
2...... नंदकिषोर विरूद्ध रमेषचंद्र एवं एक अन्य 2003(4)
एम.पी.एच.टी.-114।
3....... अनूप सिंह आदि विरूद्ध शोभाजी 2002 राजस्व निर्णय 34
4... पी.लक्ष्मी रेड्डी विरूद्ध एल.लक्ष्मी रेडड्डी ए.आई.आर.1957 सुप्रीम कोर्ट -314
5..... दर्षनसिंह विरूद्ध गुज्जरसिंह 2002(1) ए.एन.जे.-सुप्रीम कोर्ट 370
सहस्वामियों के बीच, स्पष्ट विरोधी आधिपत्य के दावे के साथ-साथ ’’वनेजमत’’ एवं एकल आधिपत्य का प्रमाण होना चाहिये क्योंकि उपधारणा यह है कि एक सहस्वामी का आधिपत्य दूसरे सहस्वामी का आधिपत्य है
7.......... जहा तक प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर स्वत्व अर्जन का प्रष्न है, प्रतिकूल आधिपत्य के लिये यह प्रमाणित किया जाना आवष्यक है कि संबंधित व्यक्ति ने खुले तौर पर सम्पत्ति के वास्तविक स्वामी के विरूद्ध अपने आपको स्वामी अभिकथित करते हुये अधिनियमित अवधि तक निरंतर सम्पत्ति का उपभोग किया। जहा आधिपत्य उक्त प्रकृति का नहीं है, वहादीर्घ अवधि का होने के बावजूद उसे प्रतिकूल आधिपत्य नहीं माना जा सकता है।
8..... देवा विरूद्ध सज्जन कुमार (2003) 7 एस.सी.सी.-481,
9वीरेन्द्र नाथ विरूद्ध मो.जमील, (2004) 6 एस.सी.सी.-140,
10... रामसिंह विरूद्ध रामचंद्र, 2004 राजस्व निर्णय-72
11...... टी.अंजनप्पा विरूद्ध सोमलिंगाप्पा (2006) 7 एस.सी.सी.-570
टी.अंजनप्पा के मामले में यह प्रतिपादित किया गया है कि जहा प्रतिकूल आधिपत्य का दावा करने वाले को यही विदित नहीं है कि वास्तविक भू-स्वामी कौन है, वहा प्रतिकूल आधिपत्य का प्रष्न ही पैदा नहीं होता है।
12...... प्रतिकूल आधिपत्य के विषय में यह विधि सुस्थापित है कि प्रतिकूल आधिपत्य स्थापित करने के लिये स्पष्ट रूप से यह अभिवचन किया जाना चाहिये कि ऐसा आधिपत्य कब प्रारम्भ हुआ। मूल स्वामी के विरूद्ध खुले रूप से अधिनियमित अवधि तक निरंतर बेरोकटोक आधिपत्य स्थापित किये जाने की दषा में ही प्रतिकूल आधित्य के आधार पर स्वत्व का सृजन हो सकता है,
13.... अन्ना साहेब विरूद्ध बलवंत ए.आई.आर.1995-एस.सी.-895
14..... एम.सी. शर्मा विरूद्ध राजकुमारी शर्मा ए.आई.आर. 1996-एस.सी.-869.
15....प्रतिकूल आधिपत्य के द्वारा स्वत्व अर्जन के लिये यह प्रमाणित किया जाना आवष्यक है कि आधिपत्य सजग, चैतन्य, वास्तविक स्वामी की जानकारी में तथा खुले तौर पर उसके स्वत्वों को चुनौती देते हुये किया गया। बिना यह जाने की वास्तव में जिस भूमि पर आधिपत्य है, वह भूमि किसके स्वत्व स्वामित्व की है, एक पक्ष का अचेतन आधिपत्य उसे ऐसी भूमि के संबंध में प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर स्वत्व अर्जन नहीं करा सकता है।
16.. देवा विरूद्ध सज्जन कुमार, (2003) 7 एस.सी.सी. 481 सुसंगत एवं अवलोकनीय है, जिसमें प्रतिकूल आधिपत्य के आधार पर स्वत्व अर्जन की स्थिति के विषय में सुसंगत विधिक स्थिति का विस्तृत उल्लेख किया गया है।
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