भारतीय न्याय व्यवस्था
भागीदारी फर्म
1.....बाबूलाल बिरला विरूद्ध रामप्रकाष शर्मा आई.एल.आर. 2008 एम.पी. 2646
मूल किरायेदार भागीदारी फर्म की न होकर मूल भवन स्वामी तथा एक अन्य व्यक्ति के मध्य थी तथा बाद मं विविच्छित रूप से भागीदार फर्म, जो निरंतर किराया अदा कर रही थी, सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 111 जो पट्टा समाप्ति के विषय में है, के आधार पर किरायेदार बन गई।
जहा भागीदार फर्म किरायेदार है तथा फर्म को प्रतिवादी के रूप में संयोजित नहीं किया गया है वहा निष्कासन का वाद उचित रूप से संधारणीय नहीं माना जायेगा।
2....लक्ष्मीबाई विरूद्ध रामलाल 1985 वीकली नोट-95
यदि सह किरायेदार को प्रतिवादी के रूप में संयोजित नहीं किया गया है तो निष्कासन वाद संधारणीय नहीं होगा।
भागीदारी फर्म
1.....बाबूलाल बिरला विरूद्ध रामप्रकाष शर्मा आई.एल.आर. 2008 एम.पी. 2646
मूल किरायेदार भागीदारी फर्म की न होकर मूल भवन स्वामी तथा एक अन्य व्यक्ति के मध्य थी तथा बाद मं विविच्छित रूप से भागीदार फर्म, जो निरंतर किराया अदा कर रही थी, सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 111 जो पट्टा समाप्ति के विषय में है, के आधार पर किरायेदार बन गई।
जहा भागीदार फर्म किरायेदार है तथा फर्म को प्रतिवादी के रूप में संयोजित नहीं किया गया है वहा निष्कासन का वाद उचित रूप से संधारणीय नहीं माना जायेगा।
2....लक्ष्मीबाई विरूद्ध रामलाल 1985 वीकली नोट-95
यदि सह किरायेदार को प्रतिवादी के रूप में संयोजित नहीं किया गया है तो निष्कासन वाद संधारणीय नहीं होगा।
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