व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 11 के अंतर्गत प्राड़ःन्याय

भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha 
                       व्यवहार प्रक्रिया संहिता  - प्राड़ःन्याय
1......व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 11 के अंतर्गत प्राड़ःन्याय का प्रभाव रखने के लिये प्रष्नगत निष्कर्ष ऐसा होना आवष्यक है जिसके बारे में विवाद विद्यमान था एवं जिसे उभय पक्ष की सुनवाई के बाद निराकृत किया गया। 


2... संजय कुमार पाण्डे विरूद्ध गुलबहार शेख ए.आई.आर.2004 एस.सी. 3354 में स्पष्ट रूप से यह अभिनिर्धारण किया है कि अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत संक्षिप्त स्वरूप के वाद का निराकरण किया जाता है क्योंकि ऐसे वाद में जाॅच का बिन्दु केवल आधिपत्य तथा विगत 6 माह में आधिपत्यच्युत किये जाने तक सीमित है तथा स्वत्व का विवाद ऐसे मामले में महत्वहीन है।


 अधिनियम की धारा 6(4) अपने आप में यह प्रावधित करती है कि यह धारा किसी व्यक्ति को स्वत्व के आधार पर आधिपत्य मांगने से प्रतिषिद्ध नहीं करेगी।
 3......... बिषाखा बाई विरूद्ध सीताबाई 1987(1) वीकली नोट 236 में इस आषय का स्पष्ट अभिनिर्धारण किया गया है कि धारा 6 के वाद में किया गया विनिष्चिय स्वत्व संबंधी वाद के लिये प्राड़ःन्याय का प्रभाव नहीं रखता है।


        उक्त विधिक स्थिति के प्रकाष में यह प्रकट है कि स्वत्व के आधार पर आधिपत्य के अनुतोष हेतु संस्थित  वाद अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत प्रस्तुत पूर्ववर्ती वाद के अंतिम निराकरण के बाबत् प्राड़ःन्याय के सिद्धांत से बाधित नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

भारतीय न्याय व्यवस्था nyaya vyavstha

umesh gupta