विवाह का रजिस्ट्र्शन
केन्द्र सरकार ने जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण कानून में संशोधन करते हुए सभी धर्मो के लिए शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है । मान्नीय उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2006 में सिविल याचिका क्रमांक-291/2005 सीमा बनाम अश्विनी कुमार के मामले में दिशा निर्देश दिये गये थे कि सभी धर्मो के लिये विवाह पंजीकरण कानून बनाया जाये । मान्नीय उच्चतम न्यायलाय के निर्देश थे कि व्यक्ति किसी भी धर्म से संबंधित हों उन सभी का विवाह पंजीयन अनिवार्य होना चाहिये ।
विवाह के रजिस्ट्र्ेशन से विवाह का प्रमाण प्राप्त होगा और महिलाओं को विवाह का सबूत देने के लिए भटकना नहीं होगा।बाल विवाह जैसी समस्याओं से भी निजात मिलेगी । गैर कानूनी बहुविवाह पर रोक लगाने में मदद मिलेगी । विवाह के लिए न्यूनतम आयु की पावंदी लागू की जा सकेगी ।विवाहित स्त्रियों को अपने ससुराल में रखने का हक हांसिल करने में आसानी होगी। संबंधित पक्षों को अंधेरे में रख कर होने वाली शादियों पर पावंदी लगेगी । वैवाहिक मामलों में महिलाओं को उत्पीडन से बचाया जा सकेगा ।
इस प्रकार विवाह के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन से बाल विवाह, बहू विवाह, अनमेल विवाह, पर रोक लगेगी और विवाहित स्त्री आसानी से अपने विवाह को प्रमाणित कर सकेगी । नये कानून के आने पर सभी धर्मोके लोगों के लिए एक ही कानून जन्म, मृत्यु एवं विवाह पंजीयन अधिनियम के तहत् शादी पंजीकृत की जाएगी ।इससे उनके धार्मिक अधिकारों और प्रक्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा ।शादी संबंधी किसी भी विवाद का निपटारा उनके अपने अपने धर्मो के विवाह कानूनों के अंतर्गत तथा व्यक्तिगत विधि के अंतर्गत ही होगा ।
मध्य प्रदेश सरकार ने मान्नीय उच्चतम न्यायालय ने अंतरण याचिका सिविल क्रमांक-291/2005 श्रीमती सीमा विरूद्ध अश्वनी कुमार में पारित आदेश के अनुसार विवाहो का अनिवार्य रजिष्ट्रीकरण हेतु मध्य प्रदेश विवाहो का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण नियम 2008 बनाया है । जो 23.01.2008 से प्रभावशील है ।
नियम की निम्नलिखित विशेषताएं-
1- ये नियम विवाह के अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण के लिए लागू होगे ।
2- विशेष विवाह अधिनियम की धारा-4 से 14 के साथ सहपठित 50 में दी गई शक्तियों के अंतर्गत नियम बनाये गये हैं ।
3- विवाह से अभिप्रेत है एक पुरूष तथा एक स्त्री के बीच पक्षकारो के धर्म याजाति को विचार में लाये बिना अनुष्ठापित संपादित या संविदाकृत समस्त विवाह तथा इसमें सम्मिलित हैं वे विवाह जो किसी विधि रूढि, प्रथा या किसी परम्परा के अनुसार सम्पादित हो ।
4- इसमें पुनर्विवाह भी सम्मिलित है ।
5- विवाह के अरजिस्ट्रीकरण का प्रभाव विवाह, विवाह के निश्चायक सबूत नहीं समझे जाएगें ।
6- राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा, ग्राम पंचायत या नगरपालिका या नगर निगम या छावनी बोर्ड क्षेत्रों में विवाह रजिस्ट्रार के रूप में ऐसे विवाह अधिकारी नियुक्त करेगी।
7- अन्य दशा में जन्म तथा मृत्यु रजिस्ट्रीकृत करने के लिए सक्षम अधिकारी स्थानीय क्षेत्र के लिए विवाह रजिस्ट्रार होगा ।
8- विवाहो के प्रत्येक रजिस्ट्रार का अपना कार्यालय, नाम, पदाभिधान होगा ।
9- वह हिन्दी भाषा में समस्थ कार्य करेगा ।
10- विवाह रजिस्ट्रीकरण के लिए विवाह की तारीख से तीस दिन की कालावधि के भीतर पक्षकारो द्वारा दो प्रतियों में आवेदन उस क्ष्ेात्र के विवाह रजिस्ट्रार को जिसके क्षेत्र में विवाह सम्पादित हुआ है, दिया जायेगा ।
11- आवेदन रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भी भेजा जा सकता है
।
12- विवाह रजिस्ट्रार विवाह के दो माह बाद भी आवेदन स्वीकार कर सकता है । यदि विलम्ब का पर्याप्त कारण दर्शाया जाता है ।
13- विवाह रजिस्ट्रार आवेदन और प्रस्तुत दस्तावेजो की जांच के बाद आवेदन प्रस्तुति दिनांक से दो माह के अंदर विवाह का रजिस्ट्रीकरण करेगा ।
14- विवाह रजिस्ट्रार यदि पक्षकारो के बीच विवाह तत्सम प्रवृत किसी विधि के अनुसार सम्पादित नहीं हुआ है । तो आवेदन निरस्त कर देगा ।
15- विवाह रजिस्ट्रार यदि पक्षकारो के बीच विवाह स्वीय विधि के अनुसार संपादित नहीं हुआ है । तो आवेदन निरस्त कर देगा ।
16- विवाह रजिस्ट्रार यदि पक्षकारो या साक्षियों या पक्षकारो की पहचान प्रमाण्ति करने वाले व्यक्ति की पहचान और विवाह का अनुष्ठान युक्तियुक्त संदेह से परे सिद्ध नहीं होता तो आवेदन निरस्त कर देगा ।
17- विवाह रजिस्ट्रार यदि उसके समक्ष प्रस्तुत किये गये दस्तावेज पक्षकारो की वैवाहिक प्रास्थिति साबित नही ंकरते है तो वह पक्षकारो को सुनने और कारणो को लेखबद्ध करने के पश्चात विवाह को रजिष्ट्रीकृत करने से इंकार कर देगा ।
18- विवाह रजिस्ट्रार के आदेश के विरूद्ध आदेश प्राप्ति दिनाक से तीस दिन के अंदर जिला न्यायाधीश को अपील की जा सकेगी । जिनका आदेश अंतिम होगा ।
19- विवाह रजिस्ट्रार पक्षकारो से ऐसी अतिरिक्त जानकारी या दस्तावेज प्रस्तुत करने की अपेक्षा कर सकेगा जैसी कि पक्षकारो और साक्षियों की पहचान उसे प्रस्तुत की गई जानकारी या दस्तावेजो की शुद्धता सिद्ध करने के लिए आवश्यक समझी जायेगी।
20- विवाह रजिस्ट्रार यदि आवश्यक समझे तो कागज पत्रों को स्थानीय पुलिस स्टेशन को जिसकी अधिकारिता के भीतर पक्षकार निवास करता है । उसका सत्यापन करने के लिए भेज सकता है ।
21- विवाह रजिस्ट्रार विवाह के रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र को नगद तीस रूपये भुगतान प्राप्त कर प्रमाण पत्र हिन्दी में देगा ।
22- विवाह रजिस्ट्रार रजिस्ट्रीकरण डाक से प्रभार अदा किये जाने पर प्रमाण पत्र रजिस्ट्री करण डाक से भेज सकेगा
।
23- विवाह की स्थिति में कोई भी नियोजक शासकीय या अर्द्ध शासकीय प्राधिकारी कम्पनी सार्वजनिक उत्क्रम अपने अभिलेख मंे बिना विवाह रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र के कोई परिवर्तन नहीं करेगा ।
24- विवाह रजिस्ट्रार लोकसेवक समझा जायेगा ।
25- विवाह के ज्ञापन में मिथ्या कथन करने पर प्रचलित विधि के अनुसार अपराधिक कार्यावाही की जायेगी ।
उमेश कुमार गुप्ता
केन्द्र सरकार ने जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण कानून में संशोधन करते हुए सभी धर्मो के लिए शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है । मान्नीय उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 2006 में सिविल याचिका क्रमांक-291/2005 सीमा बनाम अश्विनी कुमार के मामले में दिशा निर्देश दिये गये थे कि सभी धर्मो के लिये विवाह पंजीकरण कानून बनाया जाये । मान्नीय उच्चतम न्यायलाय के निर्देश थे कि व्यक्ति किसी भी धर्म से संबंधित हों उन सभी का विवाह पंजीयन अनिवार्य होना चाहिये ।
विवाह के रजिस्ट्र्ेशन से विवाह का प्रमाण प्राप्त होगा और महिलाओं को विवाह का सबूत देने के लिए भटकना नहीं होगा।बाल विवाह जैसी समस्याओं से भी निजात मिलेगी । गैर कानूनी बहुविवाह पर रोक लगाने में मदद मिलेगी । विवाह के लिए न्यूनतम आयु की पावंदी लागू की जा सकेगी ।विवाहित स्त्रियों को अपने ससुराल में रखने का हक हांसिल करने में आसानी होगी। संबंधित पक्षों को अंधेरे में रख कर होने वाली शादियों पर पावंदी लगेगी । वैवाहिक मामलों में महिलाओं को उत्पीडन से बचाया जा सकेगा ।
इस प्रकार विवाह के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन से बाल विवाह, बहू विवाह, अनमेल विवाह, पर रोक लगेगी और विवाहित स्त्री आसानी से अपने विवाह को प्रमाणित कर सकेगी । नये कानून के आने पर सभी धर्मोके लोगों के लिए एक ही कानून जन्म, मृत्यु एवं विवाह पंजीयन अधिनियम के तहत् शादी पंजीकृत की जाएगी ।इससे उनके धार्मिक अधिकारों और प्रक्रियाओं पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा ।शादी संबंधी किसी भी विवाद का निपटारा उनके अपने अपने धर्मो के विवाह कानूनों के अंतर्गत तथा व्यक्तिगत विधि के अंतर्गत ही होगा ।
मध्य प्रदेश सरकार ने मान्नीय उच्चतम न्यायालय ने अंतरण याचिका सिविल क्रमांक-291/2005 श्रीमती सीमा विरूद्ध अश्वनी कुमार में पारित आदेश के अनुसार विवाहो का अनिवार्य रजिष्ट्रीकरण हेतु मध्य प्रदेश विवाहो का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण नियम 2008 बनाया है । जो 23.01.2008 से प्रभावशील है ।
नियम की निम्नलिखित विशेषताएं-
1- ये नियम विवाह के अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण के लिए लागू होगे ।
2- विशेष विवाह अधिनियम की धारा-4 से 14 के साथ सहपठित 50 में दी गई शक्तियों के अंतर्गत नियम बनाये गये हैं ।
3- विवाह से अभिप्रेत है एक पुरूष तथा एक स्त्री के बीच पक्षकारो के धर्म याजाति को विचार में लाये बिना अनुष्ठापित संपादित या संविदाकृत समस्त विवाह तथा इसमें सम्मिलित हैं वे विवाह जो किसी विधि रूढि, प्रथा या किसी परम्परा के अनुसार सम्पादित हो ।
4- इसमें पुनर्विवाह भी सम्मिलित है ।
5- विवाह के अरजिस्ट्रीकरण का प्रभाव विवाह, विवाह के निश्चायक सबूत नहीं समझे जाएगें ।
6- राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा, ग्राम पंचायत या नगरपालिका या नगर निगम या छावनी बोर्ड क्षेत्रों में विवाह रजिस्ट्रार के रूप में ऐसे विवाह अधिकारी नियुक्त करेगी।
7- अन्य दशा में जन्म तथा मृत्यु रजिस्ट्रीकृत करने के लिए सक्षम अधिकारी स्थानीय क्षेत्र के लिए विवाह रजिस्ट्रार होगा ।
8- विवाहो के प्रत्येक रजिस्ट्रार का अपना कार्यालय, नाम, पदाभिधान होगा ।
9- वह हिन्दी भाषा में समस्थ कार्य करेगा ।
10- विवाह रजिस्ट्रीकरण के लिए विवाह की तारीख से तीस दिन की कालावधि के भीतर पक्षकारो द्वारा दो प्रतियों में आवेदन उस क्ष्ेात्र के विवाह रजिस्ट्रार को जिसके क्षेत्र में विवाह सम्पादित हुआ है, दिया जायेगा ।
11- आवेदन रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भी भेजा जा सकता है
।
12- विवाह रजिस्ट्रार विवाह के दो माह बाद भी आवेदन स्वीकार कर सकता है । यदि विलम्ब का पर्याप्त कारण दर्शाया जाता है ।
13- विवाह रजिस्ट्रार आवेदन और प्रस्तुत दस्तावेजो की जांच के बाद आवेदन प्रस्तुति दिनांक से दो माह के अंदर विवाह का रजिस्ट्रीकरण करेगा ।
14- विवाह रजिस्ट्रार यदि पक्षकारो के बीच विवाह तत्सम प्रवृत किसी विधि के अनुसार सम्पादित नहीं हुआ है । तो आवेदन निरस्त कर देगा ।
15- विवाह रजिस्ट्रार यदि पक्षकारो के बीच विवाह स्वीय विधि के अनुसार संपादित नहीं हुआ है । तो आवेदन निरस्त कर देगा ।
16- विवाह रजिस्ट्रार यदि पक्षकारो या साक्षियों या पक्षकारो की पहचान प्रमाण्ति करने वाले व्यक्ति की पहचान और विवाह का अनुष्ठान युक्तियुक्त संदेह से परे सिद्ध नहीं होता तो आवेदन निरस्त कर देगा ।
17- विवाह रजिस्ट्रार यदि उसके समक्ष प्रस्तुत किये गये दस्तावेज पक्षकारो की वैवाहिक प्रास्थिति साबित नही ंकरते है तो वह पक्षकारो को सुनने और कारणो को लेखबद्ध करने के पश्चात विवाह को रजिष्ट्रीकृत करने से इंकार कर देगा ।
18- विवाह रजिस्ट्रार के आदेश के विरूद्ध आदेश प्राप्ति दिनाक से तीस दिन के अंदर जिला न्यायाधीश को अपील की जा सकेगी । जिनका आदेश अंतिम होगा ।
19- विवाह रजिस्ट्रार पक्षकारो से ऐसी अतिरिक्त जानकारी या दस्तावेज प्रस्तुत करने की अपेक्षा कर सकेगा जैसी कि पक्षकारो और साक्षियों की पहचान उसे प्रस्तुत की गई जानकारी या दस्तावेजो की शुद्धता सिद्ध करने के लिए आवश्यक समझी जायेगी।
20- विवाह रजिस्ट्रार यदि आवश्यक समझे तो कागज पत्रों को स्थानीय पुलिस स्टेशन को जिसकी अधिकारिता के भीतर पक्षकार निवास करता है । उसका सत्यापन करने के लिए भेज सकता है ।
21- विवाह रजिस्ट्रार विवाह के रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र को नगद तीस रूपये भुगतान प्राप्त कर प्रमाण पत्र हिन्दी में देगा ।
22- विवाह रजिस्ट्रार रजिस्ट्रीकरण डाक से प्रभार अदा किये जाने पर प्रमाण पत्र रजिस्ट्री करण डाक से भेज सकेगा
।
23- विवाह की स्थिति में कोई भी नियोजक शासकीय या अर्द्ध शासकीय प्राधिकारी कम्पनी सार्वजनिक उत्क्रम अपने अभिलेख मंे बिना विवाह रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र के कोई परिवर्तन नहीं करेगा ।
24- विवाह रजिस्ट्रार लोकसेवक समझा जायेगा ।
25- विवाह के ज्ञापन में मिथ्या कथन करने पर प्रचलित विधि के अनुसार अपराधिक कार्यावाही की जायेगी ।
उमेश कुमार गुप्ता
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