व्यस्क मताधिकार उमेश कुमार गुप्ता

व्यस्क मताधिकार
                                                  
        भारतीय संबिधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार कोई भी व्यक्ति केवल धर्म मूलबंश जाति लिंग या इनमें से किसी भी आधार पर नामावली में सम्मलित होने से अपात्र नहीं समझा जावेगा । संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार 18 वर्ष की अवस्था से कमनहीं है । निर्वाचक मतदाता के रूप में शामिल होने का हकदार है,। व्यस्क मताधिकार एक विधि द्वारा प्रदत्त कानूनी अधिकार  है। जो मूल अधिकार से अलग है इस पर विधि अनुसार मानसिंक चित्त विकृति , अपराध ,भ्रष्ट आचरण,या अबैध आचरण के आधार पर  रोक लगाई जा सकती है । इसी कारण जेल में सजा भुगत रहे केदी अथवा पुलिस अभिरक्षा में रह रहे व्यकित लोक प्रतिविधिक अधिनियम की धारा 62-5 के अंतर्गत रोक लगाई जा सकती है ।
        मान्नीय सर्वोच्य न्यायालय के द्वारा प्रत्याशी के पूर्व चरित्र जानने का अधिकार मतदाता को प्रदान किया गया है और प्रत्येक प्रत्याशी को अपना नामांकन भरते समय अपना रिकार्ड ,संपति ओर शैक्षणिक योग्यता के संबंध में जानकारी देने का पूर्ण अधिकार  बना दिया है ।
        मान्नीय सर्वोच्य न्यायालय के द्वारा मतदाता को सूचना का अधिकार संबिधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के मूल अधिकार का एक अभिन्न अंग है । प्रत्याशी को नामांकन भरते समय निम्नलिखित पांच सूचनाऐं देना अनिवार्य किया गया है:-
    1-    क्या प्रत्याशी को पहले किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया है ,दोषमुक्त             किया गया है,अथवा बरी किया यदि ऐसा है तो क्या उसे जेल की सजा या जुर्माना             किया गया है ।
    2-    नामांकन पत्र भरने से 6मास पहले क्या प्रत्याशी किसी ऐसे अपराध के मामले मेे             आरोपी ठहराया गया है जिसमंे दो या दो से अधिक वर्ष के कारावास की सजा का             प्रावधान है और जिसमें आरोप तय किये गये हो या न्यायालय द्वारा संज्ञान लिया गया         हो यदि ऐसा है तो उसका विवरण ।
    3-    प्रत्याशी या उसके पति या पत्नि तथा आश्रितों की परिसंपतियॉ चल,अचल,बैंक बेलेन्स         आदि ।
    4-    प्रत्याशियों की दैनदारियॉ और विशेषकर क्या किसी सार्वजनिक वित्तीय संस्थान अथवा         सरकार की देनदारियॉ बाकी हैं ।
    5-    प्रत्याशियों के शैक्षणिक योग्यता की जानकारी ।

        लोगो का मानना है कि भारत में भीड़तंत्र है, यहां पर भीड़ के द्वारा भीड़ में से भीड़ जैसे लोग दंबगता के आधार पर चुने जाते हैं । अधिकांश मतदाता अशिक्षित हैं । इसलिये प्रत्येक व्यक्ति के मतदान का उसकी शिक्षा के आधार पर मूल्यांकन होने पर ही बेदाग छबि वाले लोग चुने जा सकते हैं । दागदार छबि वाले लोग बाहूबल, धनबल, गनबल के आधार पर चुनकर आते हैं । जिसके कारण स्वच्छ और निर्मल छबि वाले लोग उनका सामना चुनाव में नहीं कर पाते इस कारण स्वच्छ छवि वाले लोग चुनकर नहीं आते हैं ।
        भारतीय संबिधान में समानता का अधिकार दिया गया है ओर वर्ग विशेष के व्यक्तियों के मध्य समानता के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है । भारतीय संबिधान  में शिक्षा के आधार पर विभेद बिहार राज्य विरूद्व बिहार राज्य प्रवकता संघ ए0आई0आर0 2007 एस0सी0 1948 जे0के0 मोहन विरूद्व भारत संघ एवं ए0आई0आर0 2008 एस0सी0-308 के अनुसार शिक्षा के आधार पर विभेद किया जाना युक्तियुक्त है वह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लघंन नहीं करता है ।
        ऐसी स्थिति मंे यदि भारतीय संबिधान में संशोधन द्वारा शिक्षा के आधार पर विभेद करते हुये बोट की गिनती की जाये तो भीड़तंत्र को लोकतंत्र में  बदला जा सकता हे । हमारे संबिधान में राष्टृपति के चुनाव के लिये अप्रत्यक्ष प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसमें
वोट विधान सभा, संसद के निर्वाचित सदस्य और जन संख्या के आधार पर विभेद करते हुये राष्टृपति का चुनाव किया जाता है ।
        भारतीय सबिधान में ऐसे कई उदाहरण है जहां शिक्षा और शिक्षा के आधार पर विभेद किया जाता है यदि बोट की गिनती भी शिक्षा के आधार पर की जावे तो बेदाग छबि वाले लोग सामने आयेगें और लोगो का शिक्षा के प्रति रूझान बड़ेगा । लोग अपने वोट के महत्व को समझते हुये अधिक से अधिक शिक्षा प्राप्ति का प्रयास करेंगे । लंेकिन इसके लिये एक लम्बी कानूनी बहस और कानूनी जंग की आवश्यक्ता है ।
                                   
                                    उमेश कुमार गुप्ता
                                 

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