ग्राम न्यायालय
भारत120करोड़वालादेशहैजहांपरअधिकांशआबादी गांव में
रहकर अपना जीवनयापन करती है । अशिक्षित, परम्परावादी, रूढीवादी होने के कारण इनमें आपस में विवाद होते रहते हैं । प्राचीन परम्पराओं के चलते गांव के मामले गांव में निपट जाते थे । गॉव में पंचायत व्यवस्था थी । पंच को परमेश्वर मानकर विवादो का निपटारा हो जाता था । पंच भी जुम्मन शेख और अलगू चौधरी के बीच में हिन्दु,मुस्लिम, सिख, इसाई का अंतर न रखते हुए जाति, धर्म, भाषा का भेदभाव भुलाकर न्यायोचित फैसला देते थे ।
लेकिन गांव शहर से दूर होने के कारण वह न्याया प्राप्त करने से वंचित रह जाते थे । इस कारण न्याय तक आम व्यक्ति की पहंुच सरल बनाये जाने हेतु एंव साधारण जनस्तर पर सामान्य व्यक्ति को त्वरित, सस्ता और सारवान न्याय उपलब्ध कराये जाने हेतु । भारत के विधि आयोग ने ग्राम न्यायालय की स्थापना के संबंध में अपनी 114वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी ।
सरकार ने विधि आयोग की उक्त सिफारिशों को प्रभावी करने के लिए, 15 मई-2007 को राज्य सभा में ग्राम न्यायालय विधेयक 2007 पुरःस्थापित किया था। उक्त विधेयक कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय मंत्रालय से संबंधित विभाग संबंधी संसदीय स्थायी समिति को निर्दिष्ट किया गया था । उक्त स्थायी समिति द्वारा की गई सिफारिशें सारवान् प्रकृति की होने के कारण सरकार ने उसकी अधिकांश सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है ।
इसके अलावा सरकार ने 1 जनवरी 2008 को राज्य के विधि मंत्रियों, विधि सचिवों और उच्च न्यायालयों के महारजिस्ट्र्ारों का एक सम्मेलन भी, उक्त विधेयक के विभिन्न उपबंधों पर उनके विचार जानने के लिए आयोजित किया था । विधि आयोग की सिफारिश और विचार विमर्श के बाद यह विधेयक प्रस्तुत किया गया है ।
जो ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के रूप में पारित हुआ । अधिनियम के अंतर्गत राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के बाद अधिसूचना द्वारा किसी जिले में माध्यमिक स्तर पर प्रत्येक पंचायत या पंचायतो के समूह या ग्राम पंचायतो के समूह के लिये एक ग्राम न्यायालय स्थापित करेगी । जिसका मुख्यालय उस पंचायत में स्थित होगा । प्रत्येक न्यायालय के लिये न्याय अधिकारी के रूप में प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी को नियुक्त किया जावेगा जिसमें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति स़्त्री तथा अन्य वर्ग के समुदाय के सदस्यों को बराबर का प्रतिनिधित्व दिया जावेगा ।
उद्देश्य-
01. इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य को निर्धन को उनके घरों के नजदीक न्याय प्रदान करना और उस स्थान तक पहुंचकर ग्रामीण क्षेत्रों की जनता को त्वरित, वहनीय और सारवान न्याय प्रदान करना है ।
02. गांव के लोग गांव में ही न्याय प्राप्त कर सकें और उन्हें न्याय पाने के लिये अपनेे दिन भर का काम-धंधा छोड़कर शहर के चक्कर न काटने पड़े।
03. नागरिकों को उनके घरों तक न्याय उपलब्ध हो । इस प्रयोजन से ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अंतर्गत ग्राम न्यायालय की स्थापना की गई है ।
04. ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 में इस बात का ध्यान रखा गया है कि किसी भी नागरिक को सामाजिक, आर्थिक या अन्य निःशक्त्ता के कारण न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित नहीं किया जाए ।
05. इसके लिए अधिनियम में विधिक सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है ।
न्याय अधिकारी के कर्तव्य-
01. न्याय अधिकारी का कर्तव्य होगा कि वह अपनी अधिकारिता के अंतर्गत आने वाले ग्रामों के अंदर दौरा करें ।
02. ऐसे स्थान पर विचारण या कार्यवाही संचालित करे जिसे वह उस स्थान से निकट समझते हो जहां पक्षकार निवास करते हो ,
03. ग्राम न्यायालय को मुख्यालय से बाहर चलित न्यायालय लगाने की भी शक्ति प्राप्त है ।
04. गाम न्यायालय को सिविल ओर दांडिक दोनो प्रकरणों की अधिकारिता प्रदान की गई है ।
05. ग्राम न्यायालय में अधिनियम की अनुसूची-1 के अनुसार दिये गये दांडिक प्रकरणों का है ।
06. दूसरी अनुसूची में दिये गये सिविल प्रकरणों का निराकरण किया जावेगा ।
ग्राम न्यायालय के विचारण की शक्तियां-
1. दांडिक मामलो का विचारण करते समय ग्राम न्यायालय दं0प्र0सं0 मेंदी गई संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुुसरण करेगें और संक्षिप्त प्रक्रिया अपनाते हुये मामलों का निपटारा करेगें।
2. इस संबंध में सौदा अभिवाक् से संबंधित अध्याय 21क दं0प्र0सं0 के प्रावधान पूर्णतः ग्राम न्यायालय को लागू होगें ।
3. सरकार की तरफ से ग्राम न्यायालय में दांडिक मामलो का संचालन करने के लिये सहायक लोक अभियोजन अधिकारी कार्य कर सकेंगे और न्यायालय की इजाजत से परिवादी अपना अधिवक्ता नियुक्त कर सकते हैं ।
4. ग्राम न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से पक्षकारो को निशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध करायेगी ।
5. मामले के निर्णय की निःशुल्क प्रति तत्काल दोनो पक्षकारो को दी जावेगी ।
6. निर्णय विचारण समाप्ति के 15 दिन के अन्दर सुनाया जाएगा ।
ग्राम न्यायालय में साक्ष्य अभिेलेखन की प्रक्रिया ।
7. ग्राम न्यायालय में भारतीय साक्ष्य अधिनियम कठोरता से लागू नहीं की जाएगी ।
8. साक्षियों की साक्ष्य विस्तार से अभिलिखित न कर संक्षेप में लिपिबद्ध की जाएगी ।
9. औपचारिक प्रकृृति की साक्ष्य को शपथ पत्र पर प्रकट किए जाने की अनुमति दी जाएगी।
10. ग्राम न्यायालय द्वारा प्रत्येक सिविल विवादो में विशेष प्रक्रिया का पालन किया जावेगा, 100/-कोर्टफीस के साथ दावा ग्राम न्यायालय में प्रस्तुत किया जावेगा ।
ग्राम न्यायालय के निर्णय-
11. सिविल वाद का निराकरण 6 माह की अवधि के अंदर किया जावेगा और तर्क सुनने के ठीक 15 दिन के अंदर निर्णय पारित किया जावेगा
12. निर्णय की प्रतिलिपि तीन दिन के अंदर निःशुल्क दी जावेगी ।
13. ग्राम न्यायालय द्वारा पारित निर्णय डिक्री का निष्पादन सिविल प्रक्रिया के तहत होगा ।
14. लेकिन इसमें नैसर्गिक न्याय के सिद्वांतो का अनुरण किया जावेगा ।
15. ग्राम न्यायालय प्रथम दो अवसर पर यह प्रयास करेगी कि प्रत्येक वाद या कार्यवाही समझौते से निपटाई जावे ।
16. पक्षकारो के बीच समझौता कराये जाने का प्रयास किया जायेगा ।
17. इसके लिये सुलाहदारों की नियुक्ति जिला मजिस्ट्ेट के परामर्श से की जावेगी ।
18. ग्राम न्यायालय की भाषा अंग्रेजी से भिन्न राज्य भाषाओं में से एक राज्य भाषा होगी ।
19. भारत के संविधान की अनुसूची-8 में 22 भाषा राज्य भाषा के रूप में शामिल हैं। जिनमें असमी, बांगला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी, कोकंडी मैथली, मलयालयम्, मणीपुरी, मराठी, नेपाली, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलगु, उर्दू, शामिल है ।
ग्राम न्यायालय के आदेश के विरूद्ध अपील-
20. ग्राम न्यायालय के किसी भी निर्णय दंडाज्ञा या आदेश के विरूद्ध अपील सेंशन न्यायालय में 30 दिन के अंदर होगी ।
21. जिसे सेंशन न्यायालय 6 माह के अंदर निपटाएगी ।
22. सेंशन न्यायालय के निर्णय या विश्लेषण के विरूद्व अपील नहीं होगी रिट याचिका को वर्जित नहीं किया गया है ।
23. अपराधिक प्रकरण में यदि आरोपी ने अपराध स्वीकार किया है तो उस दोषसिद्धी के विरूद्ध अपील नहीं होगी ।
24. इसी प्रकार ग्राम न्यायालय एक हजार रूपये से कम का जुर्माना किया है तो उसके विरूद्ध अपील नहीं होगी ।
25. सिविल मामलो में अन्तर्वती आदेश को छोड़कर अंतिम आदेश के विरूद्ध जिला न्यायाधीश के न्यायालय में 30 दिन के अंदर अपील होगी।
ग्राम न्यायालय की भाषा-
26. जिला न्यायालय 6 माह के अंदर सिविल अपील का निपटारा करेंगे ।
27. अपील न्यायालय के आदेश के विरूद्ध कोई अपील या पुनरीक्षण नहीं होगी ।
28. सिविल मामलों में यदि कोई आदेश पक्षकारो की सहमति से पारित किया गया है तो विवादित विषय वस्तु का मूल्य एक हजार रूपये से कम है तो वहां अपील नहीं होगी ।
29. यदि विवादित विषय वस्तु का मूल्य पांच हजार रूपये से कम है तो विधि के प्रश्न पर अपील होगी ।
ग्राम न्यायालय एंव पुलिस सहायता-
30. ग्राम न्यायालय पुलिस सहायता प्राप्त कर सकेगी अपने कृत्यों के निर्वहन के लिये राजस्व अधिकारियों, सरकारी सेवक की सहायता प्राप्त कर सकती हैं ।
31. न्यायाधिकारी और कर्मचारी को लोक सेवक समझा जावेगा।
32. प्रत्येक 6 माह में एक बार ग्राम न्यायालय का वरिष्ठ अधिकारी निरीक्षण करेगें
इस प्रकार न्याय प्राणाली को मजबूत करने और जन स्तर तक न्याय पहुंचाने के लिये तथा समाज के व्यक्तियों को त्वरित और सस्ता सुलभ न्याय उपलब्ध हो सके इसके लिये ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 की स्थापना की गई है।
उमेश कुमार गुप्ता
Gram Nyayalayas Act, 2008 -
भारत120करोड़वालादेशहैजहांपरअधिकांशआबादी गांव में
रहकर अपना जीवनयापन करती है । अशिक्षित, परम्परावादी, रूढीवादी होने के कारण इनमें आपस में विवाद होते रहते हैं । प्राचीन परम्पराओं के चलते गांव के मामले गांव में निपट जाते थे । गॉव में पंचायत व्यवस्था थी । पंच को परमेश्वर मानकर विवादो का निपटारा हो जाता था । पंच भी जुम्मन शेख और अलगू चौधरी के बीच में हिन्दु,मुस्लिम, सिख, इसाई का अंतर न रखते हुए जाति, धर्म, भाषा का भेदभाव भुलाकर न्यायोचित फैसला देते थे ।
लेकिन गांव शहर से दूर होने के कारण वह न्याया प्राप्त करने से वंचित रह जाते थे । इस कारण न्याय तक आम व्यक्ति की पहंुच सरल बनाये जाने हेतु एंव साधारण जनस्तर पर सामान्य व्यक्ति को त्वरित, सस्ता और सारवान न्याय उपलब्ध कराये जाने हेतु । भारत के विधि आयोग ने ग्राम न्यायालय की स्थापना के संबंध में अपनी 114वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी ।
सरकार ने विधि आयोग की उक्त सिफारिशों को प्रभावी करने के लिए, 15 मई-2007 को राज्य सभा में ग्राम न्यायालय विधेयक 2007 पुरःस्थापित किया था। उक्त विधेयक कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय मंत्रालय से संबंधित विभाग संबंधी संसदीय स्थायी समिति को निर्दिष्ट किया गया था । उक्त स्थायी समिति द्वारा की गई सिफारिशें सारवान् प्रकृति की होने के कारण सरकार ने उसकी अधिकांश सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है ।
इसके अलावा सरकार ने 1 जनवरी 2008 को राज्य के विधि मंत्रियों, विधि सचिवों और उच्च न्यायालयों के महारजिस्ट्र्ारों का एक सम्मेलन भी, उक्त विधेयक के विभिन्न उपबंधों पर उनके विचार जानने के लिए आयोजित किया था । विधि आयोग की सिफारिश और विचार विमर्श के बाद यह विधेयक प्रस्तुत किया गया है ।
जो ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के रूप में पारित हुआ । अधिनियम के अंतर्गत राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के बाद अधिसूचना द्वारा किसी जिले में माध्यमिक स्तर पर प्रत्येक पंचायत या पंचायतो के समूह या ग्राम पंचायतो के समूह के लिये एक ग्राम न्यायालय स्थापित करेगी । जिसका मुख्यालय उस पंचायत में स्थित होगा । प्रत्येक न्यायालय के लिये न्याय अधिकारी के रूप में प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी को नियुक्त किया जावेगा जिसमें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति स़्त्री तथा अन्य वर्ग के समुदाय के सदस्यों को बराबर का प्रतिनिधित्व दिया जावेगा ।
उद्देश्य-
01. इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य को निर्धन को उनके घरों के नजदीक न्याय प्रदान करना और उस स्थान तक पहुंचकर ग्रामीण क्षेत्रों की जनता को त्वरित, वहनीय और सारवान न्याय प्रदान करना है ।
02. गांव के लोग गांव में ही न्याय प्राप्त कर सकें और उन्हें न्याय पाने के लिये अपनेे दिन भर का काम-धंधा छोड़कर शहर के चक्कर न काटने पड़े।
03. नागरिकों को उनके घरों तक न्याय उपलब्ध हो । इस प्रयोजन से ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अंतर्गत ग्राम न्यायालय की स्थापना की गई है ।
04. ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 में इस बात का ध्यान रखा गया है कि किसी भी नागरिक को सामाजिक, आर्थिक या अन्य निःशक्त्ता के कारण न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित नहीं किया जाए ।
05. इसके लिए अधिनियम में विधिक सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है ।
न्याय अधिकारी के कर्तव्य-
01. न्याय अधिकारी का कर्तव्य होगा कि वह अपनी अधिकारिता के अंतर्गत आने वाले ग्रामों के अंदर दौरा करें ।
02. ऐसे स्थान पर विचारण या कार्यवाही संचालित करे जिसे वह उस स्थान से निकट समझते हो जहां पक्षकार निवास करते हो ,
03. ग्राम न्यायालय को मुख्यालय से बाहर चलित न्यायालय लगाने की भी शक्ति प्राप्त है ।
04. गाम न्यायालय को सिविल ओर दांडिक दोनो प्रकरणों की अधिकारिता प्रदान की गई है ।
05. ग्राम न्यायालय में अधिनियम की अनुसूची-1 के अनुसार दिये गये दांडिक प्रकरणों का है ।
06. दूसरी अनुसूची में दिये गये सिविल प्रकरणों का निराकरण किया जावेगा ।
ग्राम न्यायालय के विचारण की शक्तियां-
1. दांडिक मामलो का विचारण करते समय ग्राम न्यायालय दं0प्र0सं0 मेंदी गई संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुुसरण करेगें और संक्षिप्त प्रक्रिया अपनाते हुये मामलों का निपटारा करेगें।
2. इस संबंध में सौदा अभिवाक् से संबंधित अध्याय 21क दं0प्र0सं0 के प्रावधान पूर्णतः ग्राम न्यायालय को लागू होगें ।
3. सरकार की तरफ से ग्राम न्यायालय में दांडिक मामलो का संचालन करने के लिये सहायक लोक अभियोजन अधिकारी कार्य कर सकेंगे और न्यायालय की इजाजत से परिवादी अपना अधिवक्ता नियुक्त कर सकते हैं ।
4. ग्राम न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से पक्षकारो को निशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध करायेगी ।
5. मामले के निर्णय की निःशुल्क प्रति तत्काल दोनो पक्षकारो को दी जावेगी ।
6. निर्णय विचारण समाप्ति के 15 दिन के अन्दर सुनाया जाएगा ।
ग्राम न्यायालय में साक्ष्य अभिेलेखन की प्रक्रिया ।
7. ग्राम न्यायालय में भारतीय साक्ष्य अधिनियम कठोरता से लागू नहीं की जाएगी ।
8. साक्षियों की साक्ष्य विस्तार से अभिलिखित न कर संक्षेप में लिपिबद्ध की जाएगी ।
9. औपचारिक प्रकृृति की साक्ष्य को शपथ पत्र पर प्रकट किए जाने की अनुमति दी जाएगी।
10. ग्राम न्यायालय द्वारा प्रत्येक सिविल विवादो में विशेष प्रक्रिया का पालन किया जावेगा, 100/-कोर्टफीस के साथ दावा ग्राम न्यायालय में प्रस्तुत किया जावेगा ।
ग्राम न्यायालय के निर्णय-
11. सिविल वाद का निराकरण 6 माह की अवधि के अंदर किया जावेगा और तर्क सुनने के ठीक 15 दिन के अंदर निर्णय पारित किया जावेगा
12. निर्णय की प्रतिलिपि तीन दिन के अंदर निःशुल्क दी जावेगी ।
13. ग्राम न्यायालय द्वारा पारित निर्णय डिक्री का निष्पादन सिविल प्रक्रिया के तहत होगा ।
14. लेकिन इसमें नैसर्गिक न्याय के सिद्वांतो का अनुरण किया जावेगा ।
15. ग्राम न्यायालय प्रथम दो अवसर पर यह प्रयास करेगी कि प्रत्येक वाद या कार्यवाही समझौते से निपटाई जावे ।
16. पक्षकारो के बीच समझौता कराये जाने का प्रयास किया जायेगा ।
17. इसके लिये सुलाहदारों की नियुक्ति जिला मजिस्ट्ेट के परामर्श से की जावेगी ।
18. ग्राम न्यायालय की भाषा अंग्रेजी से भिन्न राज्य भाषाओं में से एक राज्य भाषा होगी ।
19. भारत के संविधान की अनुसूची-8 में 22 भाषा राज्य भाषा के रूप में शामिल हैं। जिनमें असमी, बांगला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कन्नड, कश्मीरी, कोकंडी मैथली, मलयालयम्, मणीपुरी, मराठी, नेपाली, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलगु, उर्दू, शामिल है ।
ग्राम न्यायालय के आदेश के विरूद्ध अपील-
20. ग्राम न्यायालय के किसी भी निर्णय दंडाज्ञा या आदेश के विरूद्ध अपील सेंशन न्यायालय में 30 दिन के अंदर होगी ।
21. जिसे सेंशन न्यायालय 6 माह के अंदर निपटाएगी ।
22. सेंशन न्यायालय के निर्णय या विश्लेषण के विरूद्व अपील नहीं होगी रिट याचिका को वर्जित नहीं किया गया है ।
23. अपराधिक प्रकरण में यदि आरोपी ने अपराध स्वीकार किया है तो उस दोषसिद्धी के विरूद्ध अपील नहीं होगी ।
24. इसी प्रकार ग्राम न्यायालय एक हजार रूपये से कम का जुर्माना किया है तो उसके विरूद्ध अपील नहीं होगी ।
25. सिविल मामलो में अन्तर्वती आदेश को छोड़कर अंतिम आदेश के विरूद्ध जिला न्यायाधीश के न्यायालय में 30 दिन के अंदर अपील होगी।
ग्राम न्यायालय की भाषा-
26. जिला न्यायालय 6 माह के अंदर सिविल अपील का निपटारा करेंगे ।
27. अपील न्यायालय के आदेश के विरूद्ध कोई अपील या पुनरीक्षण नहीं होगी ।
28. सिविल मामलों में यदि कोई आदेश पक्षकारो की सहमति से पारित किया गया है तो विवादित विषय वस्तु का मूल्य एक हजार रूपये से कम है तो वहां अपील नहीं होगी ।
29. यदि विवादित विषय वस्तु का मूल्य पांच हजार रूपये से कम है तो विधि के प्रश्न पर अपील होगी ।
ग्राम न्यायालय एंव पुलिस सहायता-
30. ग्राम न्यायालय पुलिस सहायता प्राप्त कर सकेगी अपने कृत्यों के निर्वहन के लिये राजस्व अधिकारियों, सरकारी सेवक की सहायता प्राप्त कर सकती हैं ।
31. न्यायाधिकारी और कर्मचारी को लोक सेवक समझा जावेगा।
32. प्रत्येक 6 माह में एक बार ग्राम न्यायालय का वरिष्ठ अधिकारी निरीक्षण करेगें
इस प्रकार न्याय प्राणाली को मजबूत करने और जन स्तर तक न्याय पहुंचाने के लिये तथा समाज के व्यक्तियों को त्वरित और सस्ता सुलभ न्याय उपलब्ध हो सके इसके लिये ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 की स्थापना की गई है।
उमेश कुमार गुप्ता
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