जाली लाइसेंस एंव बीमा कम्पनी का क्षति पूर्ति हेतु उत्तरदायित्व
इस तथ्य के प्रति सजग है कि जाली अनुज्ञप्ति का नवीनीकरण अनुज्ञप्ति को वेध नहीं बना सकेगा तथा ऐसा उच्चतम न्यायालय के अनेक विनिश्चयों में अभिनिर्धारित किया गया है जिनमें निम्नलिखित विनिश्चय सम्मिलित है-
2001 भाग-4 एस0सी0सी0 342 न्यू इंडिया इन्श्योरेंस कम्पनी, शिमला बनाम कमला एंव अन्य इत्यादि,
2007 भाग-3 एस0सी0सी0 700ः 2007 भाग-2 दु0मु0प्र0 68 नेशनल इंश्योरंेस कम्पनी लि0 बनाम लक्ष्मी नारायण धुत
2009 भाग-4 एस0सी0सी0 751ः2009 भाग-2 दु0मु0प्र0 311 नेशनल इंश्योरंेस कम्पनी लि0 बनाम सज्जन कुमार अग्रवाला
2007 भाग-5 एस0सी0सी0 428 ओरिएण्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम मीना वरियाल एंव अन्य
मान्नीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रेम कुमारी के मामले में नकली लाइसेंस के मामले में बीमा कम्पनी को उत्तरदायी नहीं ठहराया है ।
2003 भाग-3 एस0सी0सी0 338ः 2003 भाग-2 दु0मु0प्र0 124, यूनाइटेेड इण्डिया इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम लेहरू एंव अन्य,
2004 भाग-3 एस0सी0सी0 नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम स्वर्ण सिंह,
2007 भाग-3 एस0सी0सी0 700, 2007 भाग-2 दु0मु0प्र0 382 नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम लक्ष्मी नारायण धूत,
2007 भाग-5 स्केल 269 ओरिएण्टल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम मीना वरियाल एंव अन्य,
1977 भाग-2 एस0सी0सी0 886 मीनू बी0 मेहता एंव एक अन्य बनाम बालकृष्ण राम चन्द्र नयन एंव एक अन्य,
1987 भाग-3 एस0सी0सी0 234 गुजरात राज्य सडक परिवहन निगम अहमदाबार बनाम रमन भाई प्रभात भाई एंव अन्य,
2007 भाग-7 स्केल 753 ओरिएण्टल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम बृज मोहन एंव अन्य,
2007 भाग-8 एस0सी0सी0 698 यूनाइटेड इण्यिा इंश्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम देवेन्द्र सिंह,
े2008 भाग-1 स्केल 531 प्रेम कुमार व अन्य बनाम प्रहलाद देव व अन्य,
2008 भाग-1 स्केल 727 ओरिएण्टल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम पृथ्वीराज,
2008 भाग-3 दु0मु0प्र0 150 उत्तराखण्ड यूनियन आफ इण्डिया एंव अन्य बनाम विजय कपिल,
2008 भाग-3 दु0मु0प्र0 145 सुप्रीम कोर्ट नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम गीता भट्ट एंव अन्य
2008 ए0सी0जे0 776ः2008 भाग-3 दु0मु0प्र0 प्रेम कुमारी बनाम प्रहलाद देव,
2007 भाग-2 एम0पी0एच0टी0 417 डी0बी0 श्रीमती सुनीताजैन बनाम कुंवर सिंह उर्फ राजू विश्वकर्मा,
2010 भाग-3दु0मु0प्र0500 म0प्र0 राजीलाल विरूद्ध पदमचन्द्रगुप्ता एंव अन्य ,
2008 भाग-1 ए0सी0सी0डी0 132 एस0सी0 प्रेमकुमारी एंव अन्य विरूद्ध प्रहलाद देव एंव अन्य
2010 भाग-3दु0मु0प्र0500 म0प्र0 राजीलाल विरूद्ध पदमचन्द्रगुप्ता एंव अन्य
,2008 भाग-1 ए0सी0सी0डी0 132 एस0सी0 प्रेमकुमारी एंव अन्य विरूद्ध प्रहलाद देव एंव अन्य
यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमि0 विरूद्ध सुजाता अरोरा एंव अन्य सी0ए0नंबर-231/2012 सुप्रीम कोर्ट
2008 भाग-1 ए0सी0सी0डी0 132 एस0सी0 प्रेमकुमारी एंव अन्य विरूद्ध प्रहलाद देव एंव अन्य न्यायदृष्टांत में अभिनिर्धारित दिशा निर्देशों के अनुसार जाली लाइसेंस पाये जाने पर बीमा कम्पनी क्षति पूर्ति हेतु उत्तरदायी नहीं है ।
इसके अलावा बीमा कम्पनी के यह भी तर्क है कि जाली लाइसेंस है इसलिए बीमा कम्पनी को पै-एण्ड रीकवर सिद्धांत के अंतर्गत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है
यह समान रीति से सुस्थापित विधि है कि बीमा कम्पनी को अपनी प्रतिरक्षा में सफल होने के लिए अभिलेख पर निर्णायक रूप में यह स्थापित करना होगा कि बीमित व्यक्ति ने जानबूझकर अपने वाहन को ऐसे व्यक्ति को चलाने को अनुमति देकर जिसके पास वैध एंव प्रभावी चालन अनुज्ञप्ति नहीं थी, बीमा पालिसी की शर्तो का स्वैच्छिक उल्लंघन कारित किया था ।
इस प्रकार बीमित व्यक्ति के द्वारा पालिसी की शर्ता के स्वैच्छिक भंग को साबित करने हेतु यह स्पष्ट है कि बीमाकर्ता के द्वारा स्वैच्छिक भंग के उसके अभिकथन को साबित करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत किया जाना होगा । यदि बीमाकर्ता यह स्थापित करने में सक्षम होता है कि बीमित व्यक्ति ने चालक के द्वारा धारित अनुज्ञप्ति की वास्तविकता या अन्यथा को सत्यापित कराने के लिए पर्याप्त सावधानी और सतर्कता नहीं बरती थी तो बीमाकर्ता की प्रतिरक्षा को सफल होना चाहिए।
बीमित व्यक्ति यह दर्शित करने में सक्षम हो जाता है कि उसने वाहन का प्रयोग सम्यक रूप से अनुज्ञप्ति चालक के द्वारा किये जाने के विषय में पालिसी की शर्त की पूर्ति के मामले युक्तियुक्त सावधानी बरती थी, तो बीमाकर्ता की प्रतिरक्षा अनिवार्थतः असफल होगी ।
बीमा कम्पनी संविदा के निर्बन्धन के भंग का परिवाद करती है, जो उसे बीमा की संविदा के अधीन अपने दायित्व से बचने की अनुमति प्रदान करेगा । यदि संविदा के निर्बन्धन का भंग संविदा के पक्षकार को संविदा का अनुपालन न करने की अनुभूति प्रदान करता है, तो भार व्यापक रूप में उसी पक्षकार पर होगा जो भंग का परिवाद करें,यह साबित करने हेतु कि संविदा के अन्य पक्षकार के द्वारा भंग कारित किया गया है । ऐसी परिस्थिति में परीक्षण यह होगा कि यदि कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो कौन असफल होगा ।
2004 भाग-3 एस0सी0सी0 नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम स्वर्ण सिंह,
स्वर्णसिंह के अनुसार बीमा कम्पनी का प्राथमिक आधार यह है कि वाहन को चला रहे व्यक्ति के पास वैध चालन अनुज्ञप्ति नहीं थी। स्वर्ण सिंह के मामले में निम्नलिखित स्थितियों पर विचार किया गया -
1. चालक के पास अनुज्ञप्ति थी किन्तु वह फर्जी थी,
2. चालक के पास केाई अनुज्ञप्ति नहीं थी,
3. चालक के पास मूलतः एक वैध अनुज्ञप्ति थी परन्तु दुर्घटना के दिनांक को वह समाप्त हो चुकी थी एंव उसका नवीनीकरण नहीं हुआ था,
4 अनुज्ञप्ति उस श्रेणी के वाह हेतु थी जो बीमाकृत वाहन से भिन्न था,
5. अनुज्ञप्ति एक प्रशिक्षु अनुज्ञप्त् िथी।
श्रेणी क में दो प्रकार की स्थितियां हो सकती है ।
प्रथम स्वयं अनुज्ञप्ति ही फर्जी हो,
दूसरी जहां मूलतः अनुज्ञप्ति फर्जी हो किन्तु बाद में विधिवत कराया गया हो ।
2003 भाग-3 एस0सी0सी0 338 यूनाइटेड इण्डिया इन्श्योरेंस कं.लि. बनाम लेहरू एंव अन्य में इस न्यायलाय के निर्णय पर बल दिया गया था । उक्त र्णिय में प ुराने मोटरयान अधिनियम की धारा-96 -2 ख दो और समान प्रावधान अर्थात मोटर यान अधिनियम 1988 की धारा-149-2क दोपर विचार करने के पश्चात इस न्यायालय ने निम्नलिखि निर्णय दिया था।
इस प्रकार उपधारा-1 के अधीन बीमा कम्पनी को डिक्री के लाभ के हकदार व्यक्ति को इस बात के होते हुए भी भुगतान करना चाहिए कि वह पालिसी को परिवर्जित करने या रदद करने का हकदार हो गया था । परिवर्जित अथवा रदद कर सका होगा । शब्दो इस धारा के प्रावधानो के अध्यधीन का तात्पर्य यह है कि बीमा कम्पनी केवल धारा 149 में उपवर्णित आधारो पर ही दायित् से छुटकारापा सकती है । उपधारा 7 जिस पर विश्वास व्यक्त किया गया है अपेक्षाकृत कुछ भी अधिक अधिकथित नहीं करती या बीमा कम्पनी को कोई उच्चतर अधिकार प्रदान नहीं करती । इसके प्रतिकुल उपधारा 7 की शब्दावली अर्थात ऐसा कोई भी बीमाकर्ता जिसको उपधारा 2 या उपधारा 3 में निर्दिष्टनोटिस दी गई है अपने दायित्व को परिवर्जित करने का हकदार नहीं होगा । यही निर्दिष्ट करती है कि विधानमण्डल स्पष्ट रूप से यही निर्दिष्ट करना चाहता था कि बीमा कम्पनी को तब तक भुगतान करना चाहिए । जब तक कि उन्हे उपधारा-2 में विनिर्दिष्ट आधारो पर दायित्व से अभियुक्त नहीं कर दिया जाता । इसके अतिरिक्त उपधारा-4 से स्पष्ट है कि जो यह समादेश देती हे कि बीमा पालिसी की शर्ते जो बीमा को निबंन्धित करने के लिए तात्पर्यित है उनका तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा यदि वे उपधारा 2 में विनिर्दिष्ट प्रकृति के नहीं है । इससे तो यही दर्शित होता है कि बीमा कम्पनी को पर पक्षकार को तो भुगतान करना ही है, किन्तु वह उस व्यक्ति से उसकी वसूली कर सकता है जो प्राथमिक रूप से भुगतान करने के लिए दाययी था । भुगतान करने के बीमा कम्पनी के दायित्व पर अग्रेसर उपधारा 5 द्वारा भ्ज्ञी बल दिया गया है । उससे भी यही दर्शित होता है कि बीमा कम्पनी को पहलंे भुगतान करना चाहिए इसके पश्चात वह उसकी वसूली कर सकता है । यदि धारा 149 को पूर्ण रूप में पढा जाता है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उपधारा 7 बीमा कम्पनी को कोई अतिरिक्त अधिकार प्रदान नहीं कर रही है । इसके प्रतिकूल वह इस पर बल दे रही है कि बीमा कम्पनी उपधारा-2 में वर्णित सीमित आधारो पर के सिवाय अपने दायित्व से नहीं बच सकती ।
न्यायदृष्टांत 2011 भाग-3 दु0मु0प्र0 366 दिल्ली न्यू इंडिया एश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड विरूद्ध रणबीर सिंह शास्त्री एंव अन्य मे अभिनिर्धारित किया गयाहै कि बीमा पालिसी का स्वेच्छिक भंग का दोषी नहीं है । चालक के लाइसेंस की जांच कराना उसका कर्तव्य नही है ।
चालक वाहन चलाना जानता था इसलिए उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशगण के द्वारा 2004 भाग-3 एस0सी0सी0 297 नेश्नल इंश्योरेंस के0लि0 बनाम स्वर्ण सिंह एंव अन्य के मामले में प्रतिपादित दिशा निर्देशों के अनुसार लाइसेंस न होने की दशा में भी बीमा कम्पनी पै-एण्ड रिकवर के लिए उत्तरदायी है । अतः बीमा कम्पनी पर क्षतिपूर्ति का उत्तरदायित्व स्वर्ण सिंह मामले के अनुसार डाला जाये क्यो कि इसे अभी बडी खण्ड पीठ के द्वारा समाप्त नहीं किया गया है।
2008 भाग-3 दु0मु0प्र0 145 सु0को0 नेश्नल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम गीता भट्ट एंव अन्य मे अभिनिर्धारित किया गया है कि जहां पर पक्षकार ने दावा किया हो वहां पर स्वर्ण सिंह का मामला लागू होगा और जहां पर वाहन के स्वामी या वाहन के अन्य यात्रियों द्वारा दावा किया गया हो वहां स्वर्ण सिंह का मामला लागू नहीं होता है।
प्रेम कुमार के मामले में अधिनस्थ न्यायालय के निर्णय की पुष्टि की गई है और पर पक्षकार की दशा में पै-एण्ड रिकवर सिंद्धात को मान्यता दी गई है । अतः उसके द्वारा प्रस्तुत गीता भट्ट न्यायदृष्टांत में अभिनिर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार फर्जी चालन अनुज्ञप्ति का होना बीमाकर्ता को तृतीय पार्टी के पक्ष में अधिनिर्णाीत धनराशि की प्रतिपूर्ति वाहन स्वामी को करने के दायित्व से मुक्त नहीं करता । दावेदारो के पक्ष में अधिनिर्णीत धनराशि के भुगतान हेतु बीमाकम्पनी निर्देशित, इस छूट के साथ कि वह उसे वाहन के स्वामी और चालक से वसूल कर सकती है । इसको ध्यान में रखते हुए बीमा कम्पनी को उत्तरदायी ठहराया जाये ।
विधि के सुस्थापित सिद्वांत अनुसार लायसेंस का न होना मूलभूत विखण्डन नहीं है । ऐसी स्थिति में स्वर्ण सिंह वाले मामले में प्रतिपादित दिशा निर्देशानुसार अनावेदक क्रमांक-1 वाहन चलाना जानता था। केवल उसके पास वैध एंव प्रभावी लायसेंस नहीं था ।
न्यायदृष्टांत 2011 भाग-3 दु0मु0प्र0 366 दिल्ली न्यू इंडिया एश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड विरूद्ध रणबीर सिंह शास्त्री एंव अन्य के अनुसार बीमा पालिसी की शर्त के स्वैच्छिक भंग का दोषी नहीं माना जा सकता है ।
इसलिए बीमा कम्पनी 2004 भाग-3 एस0सी0सी0 297 नेश्नल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम स्वर्ण सिंह एंव अन्य में प्रतिपादित दिशा निर्देशो के अनुसार पै-एण्ड रिकवर के अनुसार क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है ।
मोटरयान अधिनियम के प्रावधान लोकहित संबधी प्रावधान है और मान्नीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इस संबंध में समय-समय पर दिशा निर्देश जारी किये है जो अनुच्छेद 141 के अनुसार विधि का रूप रखते है और सभी न्यायालयो अधिकरण पर बंधनकारी है। ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी के इस तर्क को मान्यता प्रदान नहीं की जा सकती कि न्यायालय को पै-एण्ड रिकवर आदेश की अधिकारिता प्राप्त नहीं है ।
इस तथ्य के प्रति सजग है कि जाली अनुज्ञप्ति का नवीनीकरण अनुज्ञप्ति को वेध नहीं बना सकेगा तथा ऐसा उच्चतम न्यायालय के अनेक विनिश्चयों में अभिनिर्धारित किया गया है जिनमें निम्नलिखित विनिश्चय सम्मिलित है-
2001 भाग-4 एस0सी0सी0 342 न्यू इंडिया इन्श्योरेंस कम्पनी, शिमला बनाम कमला एंव अन्य इत्यादि,
2007 भाग-3 एस0सी0सी0 700ः 2007 भाग-2 दु0मु0प्र0 68 नेशनल इंश्योरंेस कम्पनी लि0 बनाम लक्ष्मी नारायण धुत
2009 भाग-4 एस0सी0सी0 751ः2009 भाग-2 दु0मु0प्र0 311 नेशनल इंश्योरंेस कम्पनी लि0 बनाम सज्जन कुमार अग्रवाला
2007 भाग-5 एस0सी0सी0 428 ओरिएण्टल इंश्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम मीना वरियाल एंव अन्य
मान्नीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रेम कुमारी के मामले में नकली लाइसेंस के मामले में बीमा कम्पनी को उत्तरदायी नहीं ठहराया है ।
2003 भाग-3 एस0सी0सी0 338ः 2003 भाग-2 दु0मु0प्र0 124, यूनाइटेेड इण्डिया इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम लेहरू एंव अन्य,
2004 भाग-3 एस0सी0सी0 नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम स्वर्ण सिंह,
2007 भाग-3 एस0सी0सी0 700, 2007 भाग-2 दु0मु0प्र0 382 नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम लक्ष्मी नारायण धूत,
2007 भाग-5 स्केल 269 ओरिएण्टल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम मीना वरियाल एंव अन्य,
1977 भाग-2 एस0सी0सी0 886 मीनू बी0 मेहता एंव एक अन्य बनाम बालकृष्ण राम चन्द्र नयन एंव एक अन्य,
1987 भाग-3 एस0सी0सी0 234 गुजरात राज्य सडक परिवहन निगम अहमदाबार बनाम रमन भाई प्रभात भाई एंव अन्य,
2007 भाग-7 स्केल 753 ओरिएण्टल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम बृज मोहन एंव अन्य,
2007 भाग-8 एस0सी0सी0 698 यूनाइटेड इण्यिा इंश्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम देवेन्द्र सिंह,
े2008 भाग-1 स्केल 531 प्रेम कुमार व अन्य बनाम प्रहलाद देव व अन्य,
2008 भाग-1 स्केल 727 ओरिएण्टल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम पृथ्वीराज,
2008 भाग-3 दु0मु0प्र0 150 उत्तराखण्ड यूनियन आफ इण्डिया एंव अन्य बनाम विजय कपिल,
2008 भाग-3 दु0मु0प्र0 145 सुप्रीम कोर्ट नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम गीता भट्ट एंव अन्य
2008 ए0सी0जे0 776ः2008 भाग-3 दु0मु0प्र0 प्रेम कुमारी बनाम प्रहलाद देव,
2007 भाग-2 एम0पी0एच0टी0 417 डी0बी0 श्रीमती सुनीताजैन बनाम कुंवर सिंह उर्फ राजू विश्वकर्मा,
2010 भाग-3दु0मु0प्र0500 म0प्र0 राजीलाल विरूद्ध पदमचन्द्रगुप्ता एंव अन्य ,
2008 भाग-1 ए0सी0सी0डी0 132 एस0सी0 प्रेमकुमारी एंव अन्य विरूद्ध प्रहलाद देव एंव अन्य
2010 भाग-3दु0मु0प्र0500 म0प्र0 राजीलाल विरूद्ध पदमचन्द्रगुप्ता एंव अन्य
,2008 भाग-1 ए0सी0सी0डी0 132 एस0सी0 प्रेमकुमारी एंव अन्य विरूद्ध प्रहलाद देव एंव अन्य
यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमि0 विरूद्ध सुजाता अरोरा एंव अन्य सी0ए0नंबर-231/2012 सुप्रीम कोर्ट
2008 भाग-1 ए0सी0सी0डी0 132 एस0सी0 प्रेमकुमारी एंव अन्य विरूद्ध प्रहलाद देव एंव अन्य न्यायदृष्टांत में अभिनिर्धारित दिशा निर्देशों के अनुसार जाली लाइसेंस पाये जाने पर बीमा कम्पनी क्षति पूर्ति हेतु उत्तरदायी नहीं है ।
इसके अलावा बीमा कम्पनी के यह भी तर्क है कि जाली लाइसेंस है इसलिए बीमा कम्पनी को पै-एण्ड रीकवर सिद्धांत के अंतर्गत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है
यह समान रीति से सुस्थापित विधि है कि बीमा कम्पनी को अपनी प्रतिरक्षा में सफल होने के लिए अभिलेख पर निर्णायक रूप में यह स्थापित करना होगा कि बीमित व्यक्ति ने जानबूझकर अपने वाहन को ऐसे व्यक्ति को चलाने को अनुमति देकर जिसके पास वैध एंव प्रभावी चालन अनुज्ञप्ति नहीं थी, बीमा पालिसी की शर्तो का स्वैच्छिक उल्लंघन कारित किया था ।
इस प्रकार बीमित व्यक्ति के द्वारा पालिसी की शर्ता के स्वैच्छिक भंग को साबित करने हेतु यह स्पष्ट है कि बीमाकर्ता के द्वारा स्वैच्छिक भंग के उसके अभिकथन को साबित करने के लिए साक्ष्य प्रस्तुत किया जाना होगा । यदि बीमाकर्ता यह स्थापित करने में सक्षम होता है कि बीमित व्यक्ति ने चालक के द्वारा धारित अनुज्ञप्ति की वास्तविकता या अन्यथा को सत्यापित कराने के लिए पर्याप्त सावधानी और सतर्कता नहीं बरती थी तो बीमाकर्ता की प्रतिरक्षा को सफल होना चाहिए।
बीमित व्यक्ति यह दर्शित करने में सक्षम हो जाता है कि उसने वाहन का प्रयोग सम्यक रूप से अनुज्ञप्ति चालक के द्वारा किये जाने के विषय में पालिसी की शर्त की पूर्ति के मामले युक्तियुक्त सावधानी बरती थी, तो बीमाकर्ता की प्रतिरक्षा अनिवार्थतः असफल होगी ।
बीमा कम्पनी संविदा के निर्बन्धन के भंग का परिवाद करती है, जो उसे बीमा की संविदा के अधीन अपने दायित्व से बचने की अनुमति प्रदान करेगा । यदि संविदा के निर्बन्धन का भंग संविदा के पक्षकार को संविदा का अनुपालन न करने की अनुभूति प्रदान करता है, तो भार व्यापक रूप में उसी पक्षकार पर होगा जो भंग का परिवाद करें,यह साबित करने हेतु कि संविदा के अन्य पक्षकार के द्वारा भंग कारित किया गया है । ऐसी परिस्थिति में परीक्षण यह होगा कि यदि कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो कौन असफल होगा ।
2004 भाग-3 एस0सी0सी0 नेशनल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम स्वर्ण सिंह,
स्वर्णसिंह के अनुसार बीमा कम्पनी का प्राथमिक आधार यह है कि वाहन को चला रहे व्यक्ति के पास वैध चालन अनुज्ञप्ति नहीं थी। स्वर्ण सिंह के मामले में निम्नलिखित स्थितियों पर विचार किया गया -
1. चालक के पास अनुज्ञप्ति थी किन्तु वह फर्जी थी,
2. चालक के पास केाई अनुज्ञप्ति नहीं थी,
3. चालक के पास मूलतः एक वैध अनुज्ञप्ति थी परन्तु दुर्घटना के दिनांक को वह समाप्त हो चुकी थी एंव उसका नवीनीकरण नहीं हुआ था,
4 अनुज्ञप्ति उस श्रेणी के वाह हेतु थी जो बीमाकृत वाहन से भिन्न था,
5. अनुज्ञप्ति एक प्रशिक्षु अनुज्ञप्त् िथी।
श्रेणी क में दो प्रकार की स्थितियां हो सकती है ।
प्रथम स्वयं अनुज्ञप्ति ही फर्जी हो,
दूसरी जहां मूलतः अनुज्ञप्ति फर्जी हो किन्तु बाद में विधिवत कराया गया हो ।
2003 भाग-3 एस0सी0सी0 338 यूनाइटेड इण्डिया इन्श्योरेंस कं.लि. बनाम लेहरू एंव अन्य में इस न्यायलाय के निर्णय पर बल दिया गया था । उक्त र्णिय में प ुराने मोटरयान अधिनियम की धारा-96 -2 ख दो और समान प्रावधान अर्थात मोटर यान अधिनियम 1988 की धारा-149-2क दोपर विचार करने के पश्चात इस न्यायालय ने निम्नलिखि निर्णय दिया था।
इस प्रकार उपधारा-1 के अधीन बीमा कम्पनी को डिक्री के लाभ के हकदार व्यक्ति को इस बात के होते हुए भी भुगतान करना चाहिए कि वह पालिसी को परिवर्जित करने या रदद करने का हकदार हो गया था । परिवर्जित अथवा रदद कर सका होगा । शब्दो इस धारा के प्रावधानो के अध्यधीन का तात्पर्य यह है कि बीमा कम्पनी केवल धारा 149 में उपवर्णित आधारो पर ही दायित् से छुटकारापा सकती है । उपधारा 7 जिस पर विश्वास व्यक्त किया गया है अपेक्षाकृत कुछ भी अधिक अधिकथित नहीं करती या बीमा कम्पनी को कोई उच्चतर अधिकार प्रदान नहीं करती । इसके प्रतिकुल उपधारा 7 की शब्दावली अर्थात ऐसा कोई भी बीमाकर्ता जिसको उपधारा 2 या उपधारा 3 में निर्दिष्टनोटिस दी गई है अपने दायित्व को परिवर्जित करने का हकदार नहीं होगा । यही निर्दिष्ट करती है कि विधानमण्डल स्पष्ट रूप से यही निर्दिष्ट करना चाहता था कि बीमा कम्पनी को तब तक भुगतान करना चाहिए । जब तक कि उन्हे उपधारा-2 में विनिर्दिष्ट आधारो पर दायित्व से अभियुक्त नहीं कर दिया जाता । इसके अतिरिक्त उपधारा-4 से स्पष्ट है कि जो यह समादेश देती हे कि बीमा पालिसी की शर्ते जो बीमा को निबंन्धित करने के लिए तात्पर्यित है उनका तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा यदि वे उपधारा 2 में विनिर्दिष्ट प्रकृति के नहीं है । इससे तो यही दर्शित होता है कि बीमा कम्पनी को पर पक्षकार को तो भुगतान करना ही है, किन्तु वह उस व्यक्ति से उसकी वसूली कर सकता है जो प्राथमिक रूप से भुगतान करने के लिए दाययी था । भुगतान करने के बीमा कम्पनी के दायित्व पर अग्रेसर उपधारा 5 द्वारा भ्ज्ञी बल दिया गया है । उससे भी यही दर्शित होता है कि बीमा कम्पनी को पहलंे भुगतान करना चाहिए इसके पश्चात वह उसकी वसूली कर सकता है । यदि धारा 149 को पूर्ण रूप में पढा जाता है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उपधारा 7 बीमा कम्पनी को कोई अतिरिक्त अधिकार प्रदान नहीं कर रही है । इसके प्रतिकूल वह इस पर बल दे रही है कि बीमा कम्पनी उपधारा-2 में वर्णित सीमित आधारो पर के सिवाय अपने दायित्व से नहीं बच सकती ।
न्यायदृष्टांत 2011 भाग-3 दु0मु0प्र0 366 दिल्ली न्यू इंडिया एश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड विरूद्ध रणबीर सिंह शास्त्री एंव अन्य मे अभिनिर्धारित किया गयाहै कि बीमा पालिसी का स्वेच्छिक भंग का दोषी नहीं है । चालक के लाइसेंस की जांच कराना उसका कर्तव्य नही है ।
चालक वाहन चलाना जानता था इसलिए उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशगण के द्वारा 2004 भाग-3 एस0सी0सी0 297 नेश्नल इंश्योरेंस के0लि0 बनाम स्वर्ण सिंह एंव अन्य के मामले में प्रतिपादित दिशा निर्देशों के अनुसार लाइसेंस न होने की दशा में भी बीमा कम्पनी पै-एण्ड रिकवर के लिए उत्तरदायी है । अतः बीमा कम्पनी पर क्षतिपूर्ति का उत्तरदायित्व स्वर्ण सिंह मामले के अनुसार डाला जाये क्यो कि इसे अभी बडी खण्ड पीठ के द्वारा समाप्त नहीं किया गया है।
2008 भाग-3 दु0मु0प्र0 145 सु0को0 नेश्नल इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम गीता भट्ट एंव अन्य मे अभिनिर्धारित किया गया है कि जहां पर पक्षकार ने दावा किया हो वहां पर स्वर्ण सिंह का मामला लागू होगा और जहां पर वाहन के स्वामी या वाहन के अन्य यात्रियों द्वारा दावा किया गया हो वहां स्वर्ण सिंह का मामला लागू नहीं होता है।
प्रेम कुमार के मामले में अधिनस्थ न्यायालय के निर्णय की पुष्टि की गई है और पर पक्षकार की दशा में पै-एण्ड रिकवर सिंद्धात को मान्यता दी गई है । अतः उसके द्वारा प्रस्तुत गीता भट्ट न्यायदृष्टांत में अभिनिर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार फर्जी चालन अनुज्ञप्ति का होना बीमाकर्ता को तृतीय पार्टी के पक्ष में अधिनिर्णाीत धनराशि की प्रतिपूर्ति वाहन स्वामी को करने के दायित्व से मुक्त नहीं करता । दावेदारो के पक्ष में अधिनिर्णीत धनराशि के भुगतान हेतु बीमाकम्पनी निर्देशित, इस छूट के साथ कि वह उसे वाहन के स्वामी और चालक से वसूल कर सकती है । इसको ध्यान में रखते हुए बीमा कम्पनी को उत्तरदायी ठहराया जाये ।
विधि के सुस्थापित सिद्वांत अनुसार लायसेंस का न होना मूलभूत विखण्डन नहीं है । ऐसी स्थिति में स्वर्ण सिंह वाले मामले में प्रतिपादित दिशा निर्देशानुसार अनावेदक क्रमांक-1 वाहन चलाना जानता था। केवल उसके पास वैध एंव प्रभावी लायसेंस नहीं था ।
न्यायदृष्टांत 2011 भाग-3 दु0मु0प्र0 366 दिल्ली न्यू इंडिया एश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड विरूद्ध रणबीर सिंह शास्त्री एंव अन्य के अनुसार बीमा पालिसी की शर्त के स्वैच्छिक भंग का दोषी नहीं माना जा सकता है ।
इसलिए बीमा कम्पनी 2004 भाग-3 एस0सी0सी0 297 नेश्नल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम स्वर्ण सिंह एंव अन्य में प्रतिपादित दिशा निर्देशो के अनुसार पै-एण्ड रिकवर के अनुसार क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है ।
मोटरयान अधिनियम के प्रावधान लोकहित संबधी प्रावधान है और मान्नीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इस संबंध में समय-समय पर दिशा निर्देश जारी किये है जो अनुच्छेद 141 के अनुसार विधि का रूप रखते है और सभी न्यायालयो अधिकरण पर बंधनकारी है। ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी के इस तर्क को मान्यता प्रदान नहीं की जा सकती कि न्यायालय को पै-एण्ड रिकवर आदेश की अधिकारिता प्राप्त नहीं है ।
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