धारा-24 हिन्दूु विवाह अधिनियम
बानी पति प्रकाश सिंह बनाम प्रकाश सिंह में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने निम्नानुसार अभिनिर्धारित किया है । निःसंदेह पत्नी इस राशि की वसूली के लिए आदेश 21 नियम 37 सी0पी0सी0 के तहत याचिका दाखिल कर सकती है और पति को पूर्वोक्त न्यायालयीन आदेश की अवज्ञा के लिए न्यायालय के अवमान के तहत दोषी ठहराया जा सकता है परन्तु अधिनियम की धारा 24 वैवाहिक न्यायला को वाद लंबित रहने के दौरान भरण पोषण के लिएऔर ऐसे पति या पत्नी जिसको आवश्यकता है और जो अकिंचन है को कार्यवाहियों के व्यय के लिए आदेश करने के लिए सशक्त करती है ।
यदि यह राशि आवेदक को उपलब्ध नहीं करायी जाती है तो इस उपबंध के उददेश्य एंव प्रयोजन पराजित होना स्थित है । पत्नी इस राशि की वसूली के लिए समय लगने वाली निष्पादन कार्यवाहियों को करने के लिए लगने वाली निष्पादन कार्यवाहियों को कहने के लिए विवश नहीं की जा सकती । प्रत्यर्थी पति का आचरणअवमानना समझा जाता है ।
विधि इतनी शक्तिविहिन नहीं है कि पति को अभियोजित नहीं किया जा सके यदि पति भरण पोषण और मुकदमें के व्यय का पत्नी को संदाय करने के लिए विफल हो चुका है तो उसकी प्रतिरक्षा समाप्त की जा सकती है ं निःसंदेह इस अपील में वह प्रत्यर्थी है । उसकी प्रतिरक्षा अधिनियम की धारा 13 के तहत दाखिल उसकी याचिका में अंतर्वलित है ।
इस न्यायालय के विभिन्न निर्णयों
श्रीमती स्वर्णो देवी बनाम प्यारा राम, 1975 हिन्दू एल.आर0 15
गुरूदेव कौर बनाम दलीप सिंह 1980 हिन्दू एल0आर0 240,
श्रीमती सुरिन्दर कोर बनाम बलदेव सिंह , 1980 हिन्द एल0आर0 541,
शीला देवी बनाम मदनलाल, 1981 हिन्दू एल0आ0 126
और सुमारती देवी बनाम जयप्रकाश 1985 भाग-1 हिन्दू एल0आर0 84
में यह ठहराया गया है कि जब पति पत्नी को भरण पोषण एंव मुकदमा व्यय संदाय करने में विफल हो जाता है तब उसकी प्रतिरक्षा समाप्त कर दी जानी चाहिए ।
बानी पति प्रकाश सिंह बनाम प्रकाश सिंह में उच्च न्यायला ने न केवल पति की अधिनियम की धारा-13 के तहत याचिका में प्रतिरक्षा समाप्त करना आदेशित किया है बल्कि विवाह विच्छेद के लिए डिक्री अपास्त करते हुए अपील भी मंजूर की है ।
वनमाला बनाम मारूति शम्भाजी हटकर में और बाम्बे उच्च न्यायालय ने भी यह अभिमत लिया है कि अधिनिमय की धार-24 के तहत पारित आदेश का अनुपालन नहीं करने पर व्यतिक्रमी पक्षकार की प्रतिरक्षा समाप्त की जा सकती है ।
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