ले जाना और बहलाकर ले जाना तथा चले जाना
धारा- 363,366,376, भा.द.वि. के अपराध के प्रमाणन के लिए प्रार्थीया की आयु महत्वपूर्ण स्थान रखती है । यदि प्रार्थीया की उम्र 18 वर्ष से कम है तो ऐसे अपराधो मे उसकी सम्मति कोई महत्व नहीं रखती है और यह साबित हो जाता है कि प्रार्थीया 18 वर्ष से कम उम्र की है तो उसके विधिपूर्ण संरक्षण होने की दशा में सरंक्षण की सम्मति के बिना ले जाने या फुसलाकर ले जाने पर धारा-363 का अपराध प्रमाणित माना जाता है ।
विधिपूर्ण संरक्षण के अंतर्गत ऐसे व्यक्ति आते है जिस पर ऐसे अवयस्क या व्यक्ति की देखरेख या अभिरक्षा का भार न्यस्त किया जाता है । धारा-361 भा.द.सं. में विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण परिभाषित किया गया है और धारा-363 भा.द.वि. में इसे दण्डित किया गया है ।
जहां तक आयु प्रमाणन की बात है । इस संबंध में सुस्थापित सिद्धंात है कि उसे माता पिता के कथन स्कूल का प्रवेश रजिस्टर तथा नगर पालिका का जन्म रजिस्टर के द्वारा उसे प्रमाणित किया जाता है । इस प्रकार की साक्ष्य चिकित्सीय साक्ष्य से अधिक विश्वसनीय होती है क्यों कि चिकित्सीय साक्ष्य जलवायु के परिवर्तन, खानपान, वंश, परम्परा तथा अन्य बातो पर निर्भर करती है।
इसलिए आयु निर्धारण का कोई मानक निर्धारित नहीं किया जा सकता। परन्तु ऐसी परिस्थितियों में आयु का निश्चयात्मक साक्ष्य उसका आयु प्रमाण पत्र होता है। प्रस्तुत प्रकरण में पेश मार्कशीट को प्रमाणित नहीं किया गया है । इसलिए आयु के सबंध में मौखिक साक्ष्य और अस्थि परीक्षण रिपोर्ट पर विश्वास किया जाना उचित है ।
चिकित्सीय न्यायशास्त्र में अस्थि विकास परीक्षण का आयु निर्धारण के लिए एक्स-रे परीक्षण किया जाता है और आयु निर्धारण में अस्थि विकास परीक्षण को सर्वाधिक मान्यता प्रदान की गई है ।
.
विधिपूर्ण संरक्षकता में से ऐसे सरक्षण की सम्मति के बिना ले जाना या बहलाकर ले जाने के कारण को दंडनीय माना गया है औरले जाना शब्द या बहलाकर ले जाने का कार्य किसी लालच प्रलोभन या बल के द्वारा किया जा सकता है किन्तु ले जाने के लिए किसी बल की अपेक्षा नहीं की गई है ।
शिवनाथ गयार विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन 1998(1) करंट क्रिमिनल जजमेंट एम.पी. 196,
प्रदीप मंगल विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन 1996 करंट क्रिमिनल रिपोर्टर एम.पी. 158
मध्य प्रदेश राज्य विरूद्ध नरेन्द्र कुमार 2000(1)करंट क्रिमिनल जजमेंट 263 एम.पी.
ले जाना और बहलाकर ले जाना तथा चले जाना को यदि हम देखे तो जब तक कि आरोपी की ओर से कोई ऐसा सक्रिय कार्य ना किया जाए जिससे कोई लडकी उसके साथ जाने का विचार बनाए या आरोपी उसे ना बहकाये तो ऐसी दशा में आरोपी को लडकी ले जाने की परिकल्पना की जा सकती है
आरोपी की तरफ से वास्तव में ऐसा लालच दिया जाए जिससे उसका मस्तिष्क परिवर्तित हो जाए तो उसे बहकाकर ले जाना कहते है ।
किन्तु यदि लडकी की इच्छाओ के विरूद्ध आरोपी कोई कार्य करता है तो वह चले जाना कहलाएगा और उसे दोषी ठहराया नही जा सकता ।
इस प्रकार ले जाने मे अल्प वयस्क की इच्छा कोई महत्व नहीं रखती है ।
जब कि बहकाकर ले जाने या फुसलाने में अवयस्क की इच्छा अपना प्रभाव रखती है और आरोपी के कार्य के साथ ही साथ भागने वाली की इच्छा का भी उसमें समावेश होता है । जो लालच, धमकी, भय, छल-कपट आदि से प्राप्त किया जाता है ।
जब कि ले जाने में अवयस्क की सहमति बिलकुल नहीं होती ।
. इस प्रकार ले जाने के शब्द के अंतर्गत व्यक्ति की इच्छा की कमी और इच्छा की अनुपस्थित में शामिल रहते हैं और बहकाकर ले जाने में आरोपी की मानसिक अवस्था को आरोपी द्वारा प्रेरणा, प्रलोभन, लोभ-लालच उत्पे्रेरित किया जाता है । जिससे उसके साथ जाने की अवयस्क के मन मे आशा और इच्छा जाग्रत होती है ।
धारा-361 भा.द.वि. का उद्देश्य अवयस्क को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करने की धारा-361 में दण्डित किये जाने के पूर्व बालिका की समक्ष उसकी बौद्धिक क्षमता तथा मामले की परिस्थिति पर विचार किया जाना चाहिए।
यदि आरोपी के अनुनेय विनय पर बालिका आरोपी के साथ जाने के लिए स्वयं तैयार हो जाती है तो तब भी व्यपहरण का अपराध होता है । इसमें लडकी का चाल चलन और चरित्र हीनता का बचाव नहीं किया जा सकता है
और यदि आरोपी सक्रिय भूमिका अदा करता है तो व्यपहरण का अपराध होता है ।
धारा- 363,366,376, भा.द.वि. के अपराध के प्रमाणन के लिए प्रार्थीया की आयु महत्वपूर्ण स्थान रखती है । यदि प्रार्थीया की उम्र 18 वर्ष से कम है तो ऐसे अपराधो मे उसकी सम्मति कोई महत्व नहीं रखती है और यह साबित हो जाता है कि प्रार्थीया 18 वर्ष से कम उम्र की है तो उसके विधिपूर्ण संरक्षण होने की दशा में सरंक्षण की सम्मति के बिना ले जाने या फुसलाकर ले जाने पर धारा-363 का अपराध प्रमाणित माना जाता है ।
विधिपूर्ण संरक्षण के अंतर्गत ऐसे व्यक्ति आते है जिस पर ऐसे अवयस्क या व्यक्ति की देखरेख या अभिरक्षा का भार न्यस्त किया जाता है । धारा-361 भा.द.सं. में विधिपूर्ण संरक्षकता में से व्यपहरण परिभाषित किया गया है और धारा-363 भा.द.वि. में इसे दण्डित किया गया है ।
जहां तक आयु प्रमाणन की बात है । इस संबंध में सुस्थापित सिद्धंात है कि उसे माता पिता के कथन स्कूल का प्रवेश रजिस्टर तथा नगर पालिका का जन्म रजिस्टर के द्वारा उसे प्रमाणित किया जाता है । इस प्रकार की साक्ष्य चिकित्सीय साक्ष्य से अधिक विश्वसनीय होती है क्यों कि चिकित्सीय साक्ष्य जलवायु के परिवर्तन, खानपान, वंश, परम्परा तथा अन्य बातो पर निर्भर करती है।
इसलिए आयु निर्धारण का कोई मानक निर्धारित नहीं किया जा सकता। परन्तु ऐसी परिस्थितियों में आयु का निश्चयात्मक साक्ष्य उसका आयु प्रमाण पत्र होता है। प्रस्तुत प्रकरण में पेश मार्कशीट को प्रमाणित नहीं किया गया है । इसलिए आयु के सबंध में मौखिक साक्ष्य और अस्थि परीक्षण रिपोर्ट पर विश्वास किया जाना उचित है ।
चिकित्सीय न्यायशास्त्र में अस्थि विकास परीक्षण का आयु निर्धारण के लिए एक्स-रे परीक्षण किया जाता है और आयु निर्धारण में अस्थि विकास परीक्षण को सर्वाधिक मान्यता प्रदान की गई है ।
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विधिपूर्ण संरक्षकता में से ऐसे सरक्षण की सम्मति के बिना ले जाना या बहलाकर ले जाने के कारण को दंडनीय माना गया है औरले जाना शब्द या बहलाकर ले जाने का कार्य किसी लालच प्रलोभन या बल के द्वारा किया जा सकता है किन्तु ले जाने के लिए किसी बल की अपेक्षा नहीं की गई है ।
शिवनाथ गयार विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन 1998(1) करंट क्रिमिनल जजमेंट एम.पी. 196,
प्रदीप मंगल विरूद्ध मध्य प्रदेश शासन 1996 करंट क्रिमिनल रिपोर्टर एम.पी. 158
मध्य प्रदेश राज्य विरूद्ध नरेन्द्र कुमार 2000(1)करंट क्रिमिनल जजमेंट 263 एम.पी.
ले जाना और बहलाकर ले जाना तथा चले जाना को यदि हम देखे तो जब तक कि आरोपी की ओर से कोई ऐसा सक्रिय कार्य ना किया जाए जिससे कोई लडकी उसके साथ जाने का विचार बनाए या आरोपी उसे ना बहकाये तो ऐसी दशा में आरोपी को लडकी ले जाने की परिकल्पना की जा सकती है
आरोपी की तरफ से वास्तव में ऐसा लालच दिया जाए जिससे उसका मस्तिष्क परिवर्तित हो जाए तो उसे बहकाकर ले जाना कहते है ।
किन्तु यदि लडकी की इच्छाओ के विरूद्ध आरोपी कोई कार्य करता है तो वह चले जाना कहलाएगा और उसे दोषी ठहराया नही जा सकता ।
इस प्रकार ले जाने मे अल्प वयस्क की इच्छा कोई महत्व नहीं रखती है ।
जब कि बहकाकर ले जाने या फुसलाने में अवयस्क की इच्छा अपना प्रभाव रखती है और आरोपी के कार्य के साथ ही साथ भागने वाली की इच्छा का भी उसमें समावेश होता है । जो लालच, धमकी, भय, छल-कपट आदि से प्राप्त किया जाता है ।
जब कि ले जाने में अवयस्क की सहमति बिलकुल नहीं होती ।
. इस प्रकार ले जाने के शब्द के अंतर्गत व्यक्ति की इच्छा की कमी और इच्छा की अनुपस्थित में शामिल रहते हैं और बहकाकर ले जाने में आरोपी की मानसिक अवस्था को आरोपी द्वारा प्रेरणा, प्रलोभन, लोभ-लालच उत्पे्रेरित किया जाता है । जिससे उसके साथ जाने की अवयस्क के मन मे आशा और इच्छा जाग्रत होती है ।
धारा-361 भा.द.वि. का उद्देश्य अवयस्क को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करने की धारा-361 में दण्डित किये जाने के पूर्व बालिका की समक्ष उसकी बौद्धिक क्षमता तथा मामले की परिस्थिति पर विचार किया जाना चाहिए।
यदि आरोपी के अनुनेय विनय पर बालिका आरोपी के साथ जाने के लिए स्वयं तैयार हो जाती है तो तब भी व्यपहरण का अपराध होता है । इसमें लडकी का चाल चलन और चरित्र हीनता का बचाव नहीं किया जा सकता है
और यदि आरोपी सक्रिय भूमिका अदा करता है तो व्यपहरण का अपराध होता है ।
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