गम्भीर और अचानक प्रकोपन की कसौटी
धारा-300 के अपवाद 1 के पठन मात्र से यह स्पष्ट है कि अपवाद का फायदा अभिप्राप्त करने के लिए यह साबित किया जाना चाहिए कि-
1- मृतक अभियुक्त को कार्यों या शब्दो द्वारा क्षति पहंुचाई और इस प्रकार प्रकोपन कारित किया ।
2- प्रकोपन को गम्भीर और अचानक दोनो होना चाहिए।
3- प्रकोपन ऐसा होना चाहिए जिससे कि युक्तियुक्त मनुष्य आत्म नियत्रण की शक्ति खो दे और यह कि इससे अभियुक्त ने वास्तव में अचानक और अस्थायी रूप से आत्म नियंत्रण खो दिया।
जांच करने के संबंध में भारतीय विधि
1- गम्भीर और अचानक प्रकोपन की कसौटी यह है कि क्या समाज के उसी वर्ग को होने वाला जिसका अभियुक्त है, कोई युक्तियुक्त मनुष्य उसी स्थिति में रख दिये जाने पर, जिसमें कि अभियुक्त था, उतना प्रकोपित हो जाएगा कि वह अपना आत्म विश्वास खो देगा ।
2- भारत मे ंशब्द और अंग विक्षेप भी कतिपय परिस्थितियों मे किसी अभ्यिुक्त को गम्भीर ओर अचानक प्रकोपन कारित कर सकते है जिससे कि उसका कृत्य भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 के प्रथम अपवाद के भीतर आ जाए।
3- घटना ग्रस्त व्यक्ति के पूर्व कृत्यों द्वारा सृष्ट मानसिक पृष्ठभूमि को अभिनिश्चित करने के लिए विचार में लिया जा सकता है कि क्या पश्चात्वर्ती कृत्य ने उस अपराध को करने के लिए गम्भीर और अचानक प्रकोपन कारित किया था।
4- घातक वार को उस प्रकोपन से उद्भूत रोष के प्रभाव से स्पष्टतः सम्बद्ध होना चाहिए न कि उस समय होना चाहिए, जब कि समय बीत जाने से रोष शान्त हो गया है या अन्या पूर्वाचिन्तन और विचारके लिए अवसर या गुंजाइश दिया । चांद सिंह बनाम राजस्थान राज्य निर्णय पत्रिका 1971 राजस्थान 261 ।
धारा-300 के अपवाद 1 के पठन मात्र से यह स्पष्ट है कि अपवाद का फायदा अभिप्राप्त करने के लिए यह साबित किया जाना चाहिए कि-
1- मृतक अभियुक्त को कार्यों या शब्दो द्वारा क्षति पहंुचाई और इस प्रकार प्रकोपन कारित किया ।
2- प्रकोपन को गम्भीर और अचानक दोनो होना चाहिए।
3- प्रकोपन ऐसा होना चाहिए जिससे कि युक्तियुक्त मनुष्य आत्म नियत्रण की शक्ति खो दे और यह कि इससे अभियुक्त ने वास्तव में अचानक और अस्थायी रूप से आत्म नियंत्रण खो दिया।
जांच करने के संबंध में भारतीय विधि
1- गम्भीर और अचानक प्रकोपन की कसौटी यह है कि क्या समाज के उसी वर्ग को होने वाला जिसका अभियुक्त है, कोई युक्तियुक्त मनुष्य उसी स्थिति में रख दिये जाने पर, जिसमें कि अभियुक्त था, उतना प्रकोपित हो जाएगा कि वह अपना आत्म विश्वास खो देगा ।
2- भारत मे ंशब्द और अंग विक्षेप भी कतिपय परिस्थितियों मे किसी अभ्यिुक्त को गम्भीर ओर अचानक प्रकोपन कारित कर सकते है जिससे कि उसका कृत्य भारतीय दण्ड संहिता की धारा 300 के प्रथम अपवाद के भीतर आ जाए।
3- घटना ग्रस्त व्यक्ति के पूर्व कृत्यों द्वारा सृष्ट मानसिक पृष्ठभूमि को अभिनिश्चित करने के लिए विचार में लिया जा सकता है कि क्या पश्चात्वर्ती कृत्य ने उस अपराध को करने के लिए गम्भीर और अचानक प्रकोपन कारित किया था।
4- घातक वार को उस प्रकोपन से उद्भूत रोष के प्रभाव से स्पष्टतः सम्बद्ध होना चाहिए न कि उस समय होना चाहिए, जब कि समय बीत जाने से रोष शान्त हो गया है या अन्या पूर्वाचिन्तन और विचारके लिए अवसर या गुंजाइश दिया । चांद सिंह बनाम राजस्थान राज्य निर्णय पत्रिका 1971 राजस्थान 261 ।
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